Tuesday, February 8, 2011

पुलिस ने हमें पेशाब पिलाया : रामजी गुप्‍ता

 

डॉ. लेनिन रघुवंशी पूर्वी उत्तरप्रदेश में ग़रीब और कमज़ोर लोगों पर पुलिसिया उत्‍पीड़न की कहानियां सरोकार को भेज रहे हैं. पेश है उस श्रृंखला की तीसरी कड़ी. इस बार पेश है एक वाहन चालक रामजी गुप्‍ता और उनके परिवार के साथ हुए भयानक पुलिस उत्‍पीड़न की दास्‍तान उन्‍हीं की जुबानी  :

मेरा नाम रामजी गुप्ता, उम्र-50 वर्ष है। पिता जी का नाम स्व. राम प्रसाद गुप्ता है और मैं सिपाह, मकान नं. 252, पोस्ट-सदर, थाना-कोतवाली, जिला-जौनपुर (उत्तर प्रदेश) का रहने वाला हूं। मेरे परिवार में आठ सदस्य हैं। मैं, मेरी पत्नी गायत्री देवी (46 वर्ष), चार बेटे विनोद कुमार (28 वर्ष), मनीष कुमार (26 वर्ष), चंदन कुमार (24 वर्ष), आशीष (21 वर्ष), बहू सीमा देवी (25 वर्ष) और एक पोता आदित्य कुमार (2 वर्ष) है।

मैं पेशे से ड्राइवर हूं, लेकिन अब शुगर की बीमारी के कारण कभी-कभी ही ड्राइवरी का कार्य करता हूं। मेरा बड़ा लड़का विनोद भी गाड़ी चलाता है। वह जौनपुर के ख्वाजा दोस्त के रहने वाले महेन्द्र सेठ का सेंट्रो कार चलाता था। 23 जनवरी को रात्रि 12.30 बजे पिण्डरा बाजार से लगभग 1 कि.मी. आगे एक गाड़ी ने ओवरटेक करके उसकी गाड़ी को रोका और चार बदमाश असलहा से लैस उतरे और सेठ के लड़के अजय सेठ व मेरे बेटे के साथ मार-पीट किये और लूट-पाट किये। मेरे लड़के को अपने साथ जबरन उठा भी ले गये। इस बात की सूचना मेरे मोबाइल नं0-9792731268 begin_of_the_skype_highlighting              0-9792731268      end_of_the_skype_highlighting पर सुबह लगभग 4 बजे महेन्द्र सेठ के फोन के द्वारा मिला. यह सुनकर मैं डर गया और मन में डरावने विचार आने लगे कि कहीं मेरे बेटे को बदमाश मार कर फेंक न दें! इसी आशं से मैंने सेठ जी को फोन किया और अजय सेठ के बारे में पूछा कि, ''वो कहां हैं?'' सेठ जी ने कहा, 'हम लोग थाने पर हैं और तुम्हारे बेटे की तलाश की जा रही है, अगर वह घर पहुंचे तो मुझे सूचना देना।' यह सुनकर पूरा परिवार चिंतित हो गया. बहू और मेरी पत्नी लगातार रो रही थी, जिसे देखकर मेरा पोता भी जोर-जोर से रोने लगा।

किसी तरह हम लोग सुबह होने का इंतजार करने लगे। इसी बीच करीब 5:30 बजे सुबह कोई दरवाजा खटखटाया। मेरा दूसरा लड़का जाकर पूछा और दरवाजा खोला. विनोद बाहर खड़ा था। वह जैसे ही घर पहुंचा, कुछ ही देर बाद फुलपुर थाना की पुलिस आ धमकी और यह कहकर उसे ले गयी कि पूछताछ करनी है। उसी दिन से उसे तरह-तरह की यातना दी गयी। उसकी दशा देखकर पूरा परिवार विक्षिप्त-सा हो गया है। पुलिस द्वारा उठा ले जाने के बाद मैं दौड़े-दौड़े थाने गया. वहां विनोद दिखाई नही दिया था.  हमने पुलिस वालों से पूछा भी, लेकिन उन लोगों ने डांटकर भगा दिया। यह सब देख- सोच कर दिमाग़ पागल-सा हो रहा था कि आखिर मेरे बेटे को वे लोग कहां ले गये. कहीं मार तो नहीं देंगे, किसी मुकदमे में फंसाकर पूरी जिंदगी बर्बाद न कर दें!

फिर मैंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली को फैक्स किया, स्थानीय पुलिस अधिकारियों को तार, इत्यादि भी किया. कई बार मैं थाने पर गया, लेकिन मुझे मेरे लड़के से मिलने नहीं दिया गया। मुझे हर बार वे डांटकर थाने से बाहर भगा देते थे। इसी तरह दौड़-धूप करते-करते मेरा शरीर थक-हार कर टूट गया। दिनांक 29 जनवरी, 2010 को शाम करीब 4 बजे फूलपुर (वाराणसी) एस.एच.ओ. का फोन आया, उन्होंने कहा ''आकर अपने लड़के को ले जाओ।'' वहां हम दोनों से हस्ताक्षर करवाया गया। उन्होंने किसी उच्चाधिकारी से बात की और बोला, 'अभी दो दिन विनोद को और रखेंगे, तीन मुजरिम पकड़े गये हैं, उनकी शिनाख्त करवानी है।' लेकिन किसी भी मुजरिम का शिनाख्त नहीं करवायी गयी। इस बीच उसे कठोर यातना दी गयी. और 1 फरवरी को नौ दिन बाद छोड़ा गया. पुलिस वाले बोले, ''बुलाने पर आना होगा।''

जब मेरे लड़के को मेरे हवाले किया तो उसकी हालत देखकर मैं रो पड़ा। घर लाकर इलाज शुरू करवाया. उसे कुछ राहत मिली और हमें थोड़ी शांति महसूस हुई। इसके बाद फिर 12 फरवरी की रात 12 बजे एस.ओ.जी. की पुलिस हमारे घर आयी और जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया। मेरा छोटा लड़का (मनीष) दरवाजे के पास जाकर पूछा कि कौन है। उन लोगो ने गाली देते हुए कहा, ''खोल दरवाजा, हम पुलिस वाले हैं।'' पूरा परिवार जग गया। हम सोचने लगे कि फिर से कुछ न कुछ करेंगे। मनीष ने दरवाजा खोला, करीब आधा दर्जन लोग घुस कर मारना-पीटना करने लगे। मेरी पत्नी बेहोश होकर गिर गयी। उस समय मुझे लगा कि मेरा हार्ट फेल हो जायेगा। मेरी पत्नी जब होश में आयी, तब उसको पुलिस वालों ने बूट से मारा और उसकी इज्जत पर हाथ डालना चाहा. लेकिन कुछ पुलिस वालों ने ऐसा करने से उन्हें मना किया। लेकिन वे लगातार मुंह से अश्लील बातें बक रहे थे। मेरी बहू को रखैल बनाकर नंगा नचवाने की बात तक कही. यह सब देख-सुन कर मुझे बहुत क्रोध आ रहा था कि इन सबके साथ क्या कर बैठूं. लेकिन मजबूर था. मेरे हाथ बार-बार कांप रहे थे, लग रहा कि हाथ छोड़ दें. लेकिन विवश होकर केवल हम गिड़गिड़ा रहे थे। घर का सारा सामान तितर-बितर कर दिया और पूरे परिवार सहित उठा ले गये। सिपाह पुलिस चैकी पर ले जाकर दुबारा सभी को मारना-पीटना शुरू कर दिया। जब ये लोग अपने साथ ले जा रहे थे, उस समय लगा कि पैंट में ही शौच हो जायेगा। मैं डरते-डरते उन लोगो से बोला भी. लेकिन उन्होंने कहा, ''चल साले, मैं तुझे कराता हूं।'' सिपाह पुलिस चैकी पर हाथ-डंडा से मारना शुरू किया. औरतों को जूता से मारा व साड़ी तक खींचा. उसके बाद तीनो मोबाइलें जब्त कर ली, जिनका नं0 9792731261 begin_of_the_skype_highlighting              0 9792731261      end_of_the_skype_highlighting (मेरा), 9305754951 begin_of_the_skype_highlighting              9305754951      end_of_the_skype_highlighting (मनीष) तथा 9336280429 begin_of_the_skype_highlighting              9336280429      end_of_the_skype_highlighting (चंदन) है।

मेरी पत्नी एवं तीन मासूम बच्चों को थाना कोतवाली (जौनपुर) में एक रात और एक दिन रखा. दूसरे दिन पत्नी को छोड़ दिया. लेकिन मेरे तीन मासूम बच्चों को मारते-पीटते पुलिस फूलपुर थाने ले गयी. जहां हमें और विनोद को लेकर आये थे। वहां बच्चों को दो दिन रखा गया, और जब इन दोनों का स्वास्थ्य बुरी तरह खराब होने लगा, तब छोड़ दिया गया। फिर मुझे व विनोद को अलग-अलग थाने में रखा गया था। हमें दो दिन चोलापुर में अकेले रखा गया। वहां हम विनोद के बारे में सोच रहे थे कि उसके साथ लोग क्या करे होंगे? हमें अलग क्यों रखा गया? यह सब सोचकर बेचैनी हो रही थी। दो दिन बाद विनोद और हमें सिंधौरा पुलिस चैकी तथा दो दिन फूलपुर थाने में रखा गया।

इतने दिनों में मेरी शारीरिक पीड़ा इतनी ज्यादा बढ़ गयी थी कि मन में आया आत्महत्या कर लूं, लेकिन यह सोचकर रुक गया कि मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा? मेरे और मेरे परिवार के साथ जो अश्लील हरकतें पुलिस वालों ने की तथा जो यातना दीं, वह असहनीय रहा। दिनांक 13 फरवरी को पुलिस लाइन (वाराणसी) में मारा-पीटा गया. यहां तक कि जबरदस्ती मेरे मुंह में पेशाब पिलाया गया और मेरे लड़के विनोद को भी पेशाब पिलाया गया तथा कान में पेट्रोल डाला गया। जिसकी घृणास्पद पीड़ा बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी।

अभी भी सोचकर घृणा से मन उल्टी जैसा होने लगता है, रोगटें खड़े हो जाते हैं। उसको याद करना नहीं चाहते हैं। यह सब सोचकर पागल हो जाता हूं कि जब इस बारे में लोग जानेंगे, तब लोग क्या सोचेंगे! 18 फरवरी तक वे लोग इधर-उधर नचाते रहे और इसी दिन रात में 8 बजे छोड़ा तथा कहा कि बाहर जाकर कोई कदम मत उठाना, नहीं तो किसी और मुकदमे में फंसा देंगे। वहां पर मैंने उनके हां में हां मिलाया, ''मैं कुछ भी नही करूंगा सर।'' लेकिन मुझे अपनी लड़ाई लड़नी है। मैने बाहर आकर अपनी लड़ाई लड़नी शुरू कर दी। मुझे न्याय व सुरक्षा चाहिए। परिवार सही सलामत रहे। मेरी रोजी-रोटी में कोई रुकावट पैदा न हो। इसके लिए मैं सरकार से गुहार लगाना चाहता हूं। छोड़ने के तीन-चार दिन बाद एस.ओ. फूलपुर का मेरे मोबाइल पर 11:30 बजे दिन में फोन आया.  बोले, ''विनोद को लेकर बाबतपुर चैराहे पर आ जाओ।'' जब हम फोन पर एस.ओ. साहब से बात कर रहे थे तब घर की महिलाएं बेचैन होकर रोने लगीं और बोली, ''फिर क्या हो गया, कहीं दुबारा बंद न कर दे!'' हम दोनों लगभग साढे चार बजे बाबतपुर पहुंचे. उन्होंने हमें जीप में बैठने को बोला और दोनो को लंका थाना (वाराणसी) लेकर आये। वहां पर सी.ओ. और एस.ओ.जी. वाले विनोद को गाली देते हुए कड़ी पूछताछ करने लगे। यह देखकर मैं घबरा गया कि कहीं फिर अंदर करके मारना-पीटना शुरू न कर दें। शरीर में सिहरन हो रही थी। अभी भी याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

पूछताछ के बाद लंका से फूलपुर थाने लाये और ट्रक पकड़ा दिया। छोड़ने से पहले बोला, 'तुम दोनों घर छोड़कर कहीं मत जाना।' हमलोग कहीं कुछ कर नहीं रहे हैं. घर पर ही पड़े रहते हैं, जिससे रोजी-रोटी पर मुसीबत आ पड़ी है। जब हमलोग घर पहुंचे तब परिवार वालो में खुशी की लहर दौड़ गई और उन्‍होंने भगवान को शुक्रिया किया।

सबसे ज्यादा आंतरिक पीड़ा 24 जनवरी को हुई, जब सेठ एफ.आई.आर. कराकर बिना कुछ कहे मेरे बेटे को थाना में छोड़कर चले गये और 12 फरवरी को औरतों व बच्चों के साथ मार-पीट किया गया। उसके बाद 13 फरवरी को मुझे पेशाब पिलाया गया, वह घटना सर्वाधिक तनाव उत्पन्न करती है। जीवन से घृणा-सी होने लगी है। आज भी नींद आधी रात के बाद आती है, अगर बीच में टूट गयी को तो फिर दुबारा नहीं आती. सारी रात एकटक छत को घूरता रहता हूं। दिमाग़ में वही सब बातें आने लगती हैं. नींद नहीं आती। चिंता व डर अभी भी रहता है कि रात में फिर से कहीं कोई न आ जाये और उठा ले जाये।

दूसरी तरफ सेठ जी लोग धमकाते हैं, यहां तक कि एस.पी. के सामने डाक बंग्ला में जान से मारने की धमकी व उठा लेने की बात कहते हैं। जिससे डरता हूं कि कुछ अनहोनी न हो जाए। हमारे विचार में यह है कि मुझे जिस प्रकार से प्रताड़ित किया गया है, उसके एवज़ में मुआवजा मिले और मान-सम्मान पहले की तरह बनी रहे। सच्चाई सभी के सामने आये और दोषियों पर न्यायोचित कार्यवाही हो। मैं खुद चाहता हूं कि मामले की न्यायिक जांच सीबीसीआईडी एवं सीबीआई से करायी जाए।

आपके द्वारा कहानी सुनाते हुए पल-पल की याद आ रही थी और वही बेचैनी व घबराहट हो रही थी। लेकिन ध्यान-योग करने के बाद शरीर में हल्कापन और दिमाग़ में तनाव कम हुआ है। सब कुछ ताजा-ताजा नजर आ रहा है. लग रहा है कि अभी नींद से जागे हैं, सुबह जैसा लग रहा है. इस दस मिनट के योग से बहुत परिवर्तन महसूस कर रहा हूं मन शांत है। मुझे परिवार पर हुए अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़नी है. मुझे न्याय मिले।

उपेन्द्र कुमार के साथ बातचीत पर आधारित.

विशेष सहयोग: बिपिनचन्‍द्र चतुर्वेदी

डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करेंगे, ऐसा उन्‍होंने वायदा किया है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

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Sunday, February 6, 2011

Thursday, February 3, 2011

ये तो पत्‍थर तोड़ते थे, पुलिस ने इन्‍हें क्‍यों तोड़ा

 

ये तो पत्‍थर तोड़ते थे, पुलिस ने इन्‍हें क्‍यों तोड़ा

लेनिन रघुवंशी

मेरा नाम रघूलाल, उम्र-23 वर्ष, पुत्र-श्री बिंदा बिंद। मैं गाँव-सागर सेमर, पोस्ट-हिनौती, थाना-पड़री, जिला-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) का निवासी हूँ। मैं पत्थर तोड़ने का काम करता हूँ, महीना में 10-15 दिन काम मिलता है। हमारे परिवार में चार सदस्य हैं-मैं और मेरी पत्नी उर्मिला, दो लड़का-लवकुश (3 वर्ष) व आशीष (1 वर्ष)।

हमारे साथ जिंदगी में यह पहली घटना घटी जिससे मैं शारीरिक व मानसिक रूप से क्षमता विहीन हो गया। उस घटना के कारण घर से बाहर निकलने में डर लगता है। अब काम-काज करने का हिम्मत ही नही करता। हमेशा चिन्ता व डर बनी रहती है कि दुबारा फिर से हमारे साथ अमानवीय व्यवहार व मार-पीट न किया जाए। इसलिए किसी से बातचीत करने में भी डर लगता है।

पुरवा हवा चलने पर पूरे शारीर में दर्द उठने लगता है, अब परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया है। रात में जब नींद टूट जाती है तो फिर नींद ही नही आती. सारी रात यह सोचते-सोचते कट जाती है कि जो मेरे साथ हुआ उससे अच्छा मर जाना ही उचित था।

हुआ यह कि मैं 28 मई, 2009 को अपने ससुराल साले जी की शादी में ग्राम-बहरामागंज, पोस्ट व थाना-चुनार, जिला-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) गया था। 29 मई को लगभग 10 बजे रात में हम बाजार से ससुराल (घर) चलने वाले थे कि चुनार थाना के जीप पर सवार वहाँ के दरोगा व सिपाही आये, हमें उठाकर गाड़ी में बिठा लिया। अचानक इस हरकत से मैं घबरा गया। रात का समय था, डर के मारे मैं उनसे कुछ पूछ भी नही सका। चोरी हुई जगह और मेरे घर घुमाते-फिराते थाना में लगभग 2.00 बजे रात में पहुँचे। उस समय 2 बल्ब दरोगा के कमरे में तथा तीन बाहर में जल रहे थे। हवालात में बल्ब नहीं था। हमें उसी हवालात में बंद कर दिया गया। कुछ समय बाद दो रोटी और सब्जी हमें भोजन के लिये दिया गया। अभी भोजन किये ही थे कि हमें फिर दो सिपाही हथकड़ी लगाकर बाहर लाये और जीप में बिठा दिया, यहाँ से वे लोग हमें सुदर्शन दरोगा के आराम करने वाले कमरे पर ले आये. वहाँ पर पहले से ही थाना से सम्बन्धित दो लोग उपस्थित थे। यहाँ से जीप में बिठाकर वे पाँचों लोग हमें डगमगपुर स्थित एक फैक्ट्री के पास ले गये और हमें डराते व धमकाते हुये पूछा कि बताओं तुम्हारे साथ कौन-कौन लोग थे। वह एक सुनसान क्षेत्र है. रात में पूरा सुन-सपाटा छाया हुआ था। डर के मारे पुरा शरीर पसीना से लथपथ  हो गया था. डर लग रहा था कि कही मारकर फेंक न दे। आज भी वह दिन याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। डराने व धमकाने के लगभग आधे घंटे बाद चुनार चौकी के समीप ही बिहारी ढ़ाबा है, वहाँ ले आये. अपने लिये वे लोग चाय मंगवाये और हमें कांच की गिलास में दारू पीने के लिये दिया। हमने कभी शराब नहीं पी थी. जब हमने शराब पीने के लिये मना कर दिया, तब गाली देते हुए सिपाही आया व मारने लगा और दूसरा सिपाही जबरदस्ती मुँह में लगाकर हमें दो गिलास शराब पिला दिया। उस समय हम मर जाना उचित समझते थे और यह ठीक भी रहता। शराब पिलाने के बाद उसी समय और लोगों के घर छापा मारा गया तथा 12 लोगों को पकड़ा। उसमें से कई लोग हमारे गांव व इलाके के रहने वाले थे।

30 मई, 09 को दिन में लगभग 12 बजे दरोगा हमें अपने दफ्तर में बुलाया तथा हमारे साथ मार-पीट करने लगा, हमारी दायां हथेली पर कुर्सी रखकर उस पर बैठ गया तथा बोला कि बताओ डकैती का समान कहाँ है, कौन-कौन से लोग इसमें शामिल हैं। हम बेकसुर थे. हम कुछ नही जानते थे. इसलिए हमने कुछ नहीं बोला., तब दरोगा ने सिपाहियों को बुलाया, सिपाही हमें कमरा के बाहर लाये तथा कम्पाउड में डंडे से पिटाई करने लगे तथा चोरी का हामी भरा रहे थे। सर छोड़कर पूरे शरीर पर आगे-पीछे, बेरहम की तरह पिटाई करने लगे. जिससे दांये हाथ के अंगूठा में जबरदस्त चोट आई, जो आज तक सूजा हुआ है। कुर्सी से कुचलने के कारण हथेली के ऊपरी हिस्से पर निशान अभी भी है तथा सूजा हुआ है। उस समय तो हम डर गये थे कि हथेली का हड्डी टूट गया है, लेकिन एक्स-रे करवाने पर पता चला कि हड्डी नहीं टूटी है, तब जाकर थोड़ा राहत महसूस हुआ। मार-पीट के बाद वे लोग हमें हवालात में डाल दिये। दिन भर हमें खाना भी नही दिया. शाम को 4 बजे घर से खाना आया तब खाना खाये। उसी दिन लगभग डेढ बजे रात में फिर सुदर्शन दरोगा अपने निवास पर बुलाया. कहा कि झूठ या सच कुछ तो बताओ? वहाँ पर हमें लगभग डेढ घंटे रखा.  उसके बाद सिपाही को बुलाया तथा हमें थाना ले जाने को बोला। वहीं पर सिपाही ने हमें दो डंडे मारे तथा जीप में बिठाया. जीप में हमें मारते हुए थाने ले आया। हवालात के सामने लगातार डंडे की बारिश हमारे ऊपर करने लगे. जब हम गिर गये तब हवालात में 15 कैदियों के साथ बंद कर दिया। रात में खाना भी नहीं दिया।

अगले दिन फिर दरोगा अपने कार्यालय में बुलाया तथा थाना परिसर में रखी पत्थर पर बैठने को बोला, जो चारो-ओर से बिजली के तार से घिरा हुआ था. बैठने के बाद हमें दो बार बिजली का करेंट लगाया और करेंट देने लगा। उसी समय मेरा भाई ओम प्रकाश समोसा लेकर आया था. होमगार्ड ने उसे समोसा देने से मना किया तथा बोला कि इसके लिए चना और लाई लेते आओं। जब भाई खाने का समान दे रहा था, उस समय हम केवल इतना बोले कि हमें पानी-पिला दो, अब जिंदगी का कोई पता नही। उसने हमें पानी पिलाया। इसके बाद हमें तीसरी बार करेंट दिया, जिसके कारण हम बेहोश हो गये।

पाँच दिन बाद जब हमें होश आया, अपने को मैं सरकारी जिला अस्पताल मिर्जापुर में लेटा पाया. यह देखकर हम अचम्भित हो गये। हाथ के इशारा से मैंने अपने जीजा जी से पूछा, तब वे बोले कि आपकी हालत खराब हो गई थी, इसलिए आपको भर्ती किया गया है। दो दिन तक हमें कुछ याद नहीं रहा। बाद में धीरे-धीरे पता चला कि हमारे साथ पुलिस वाले क्या-क्या किये हैं।

सप्ताह भर हम अस्पताल में रहे, उसके बाद घर आये। पुलिस वाला हमें पूछने तक नहीं आये।  बाद में हमें पता चला कि लोगों ने चुनार व डगमकपुर के चौराहे पर चक्का जाम किया था. पडरी थाना के दरोगा जी व क्षेत्रीय विधायक भी हमसे अस्पताल में मिलने आये थे। अखबार वाले भी आये थे, जिन्होंने हमारी हालात व चुनार दरोगा के मनबढ़ी व अत्याचार पर खबर अखबार में छापे थे। बंदी के दौरान चुनार के दरोगा सुदर्शन हमारे ससुर श्री लक्ष्मण व भाई (जीतू) से 13,000 रुपये हमें छोड़ने के एवज् में लिया था।

मिर्जापुर अस्पताल में भर्ती होने के पहले हमें चुनार क्लिनिक में भर्ती करवाया गया था, जहाँ डाक्टरों ने हमारी स्थिति नाजूक देखते हुए मिर्जापुर जिला अस्पताल भेजने को बोला था। तब क्षेत्रीय विधायक जी के कहने पर एम्बुलेंस से मिर्जापुर अस्पताल लाया गया था. वहां हमारा सर व हाथ का एक्स-रे भी हुआ था।

बायीं तरफ पीछे की हिस्सो में दर्द अभी भी है। हमारे घर से पुलिस जो समान उठाकर ले गई थी, वह मिल गया है, लेकिन जो समान पटेल परिवार ले गये जैसे-हसुली पायल, बल्ला: नहीं मिला है।

मारपीट का याद आने पर मर-जाना उचित लगता है। अभी जब हम आपके कार्यालय आ रहे थे, तो बगल वाली जो मंदिर है वहाँ पुलिस को देखकर अंदर से सहम गये थे, मेरा मुँह सुखने लगा था।

जब से अस्पताल से आये हैं, घर छोड़कर कहीं नहीं जाते, एक-दो बार केवल दवा-ईलाज हेतु बाबू जी के साथ ही गये हैं। अपनी कहानी कहने व सुनाने के बाद डर पैदा होता है। दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही हो. जिससे वह भी सीख लें कि नाजायज व गैर कानूनी तरीकों से आम आदमी के साथ इस तरह से अमानवीय ढ़ंग से मार-पीट व गाली गलौज न करें। पटेल परिवार जो हमें डकैती में फँसाया है,  उसे भी दण्ड मिले।

आपको कहानी सुनाकर व यहां आकर धीरे-धीरे अब डर कम होने लगा है। गाँव व क्षेत्र में मेरी कहानी पढ़ी जाए। मार-पीट के कारण जो इज्जत गयी है, वह लौट तो नहीं सकती, लेकिन सभी हमारी कहानी को जाने कि पुलिस कैसे बेगुनाह के साथ अमानवीय व्यवहार करती है। दुनिया जाने की पुलिस का असली चेहरा क्या है तथा अखबार एवं समाचार में मेरा कहानी पढ़ा एवं प्रसारण किया जाय। अभी जब आपने हमारी कहानी पढ़कर सुनायी, हमें बहुत अच्छा लगा तथा अब पहले से बेहतर व अच्छा महसूस कर रहा हूँ.

उपेन्द्र कुमार से बातीचत पर आधारित

डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करेंगे, ऐसा उन्‍होंने वायदा किया है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

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Tuesday, February 1, 2011

Fwd: Threat and abusing call



---------- Forwarded message ----------
From: UP Police Computer Cetre Lucknow <uppcc-up@nic.in>
Date: Wed, Feb 2, 2011 at 10:17 AM
Subject: Fwd: Threat and abusing call
To: DIG Police ComplaintCell Lucknow <digcomplaint-up@nic.in>
Cc: PVCHR ED <pvchr.india@gmail.com>


Sir
The complaint from above email is being forwarded to your kind attention and response.
UPPCC


---------- Forwarded message ----------
From: PVCHR ED <pvchr.india@gmail.com>
To: uppcc@up.nic.in
Date: Wed, 02 Feb 2011 09:33:07 +0530
Subject: Threat and abusing call

Sir/Madam,

 

Greeting from Varanasi.

 

My name is Shruti Nagvanshi and residence of SA 4/2 A, Daulatpur, Varanasi,India.

 

I am working for rights of marginalized on grass root and managing trustee of Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR).

 

I received the call from +91-7499245228 to my mobile number Number +91-9935599330 nearly at 7.01 PM.I was at Narendra computers, Ghausabad,Varanasi. 

 

He offered the friendship first. I just avoided. He immediately started to abuse in very nasty manner. All his abuses are against the dignity of a woman. Then he cut the call. Again I called on his number and asked to him for reason of abuse. But he gain abused in very bad way. He knows my name also.

 

I am suffering with psychological stress. Please do needful for rule of law.

 

With regards,

Shruti Nagvanshi

 

PVCHR/JMN
Mobile:+91-9935599330
Hatred does not cease by hatred, but only by love; this is the eternal rule.
--The Buddha
 
"We are what we think. With our thoughts we make our world." - Buddha
 
 
This message contains information which may be confidential and privileged. Unless you are the addressee or authorised to receive for the addressee, you may not use, copy or disclose to anyone the message or any information contained in the message. If you have received the message in error, please advise the sender by reply e-mail to pvchr.india@gmail.com and delete the message. Thank you.


Threat and abusing call

Sir/Madam,

 

Greeting from Varanasi.

 

My name is Shruti Nagvanshi and residence of SA 4/2 A, Daulatpur, Varanasi,India.

 

I am working for rights of marginalized on grass root and managing trustee of Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR).

 

I received the call from +91-7499245228 to my mobile number Number +91-9935599330 nearly at 7.01 PM.I was at Narendra computers, Ghausabad,Varanasi. 

 

He offered the friendship first. I just avoided. He immediately started to abuse in very nasty manner. All his abuses are against the dignity of a woman. Then he cut the call. Again I called on his number and asked to him for reason of abuse. But he gain abused in very bad way. He knows my name also.

 

I am suffering with psychological stress. Please do needful for rule of law.

 

With regards,

Shruti Nagvanshi

 

PVCHR/JMN
Mobile:+91-9935599330
Hatred does not cease by hatred, but only by love; this is the eternal rule.
--The Buddha
 
"We are what we think. With our thoughts we make our world." - Buddha
 
 
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