Tuesday, November 17, 2015

“यातना का अंत-सामूहिक सरोकार” विषयक अंर्तराष्ट्रीय सम्मेलन

मानवाधिकार जननिगरानी समिति और समाजकार्य विभाग,  काशी विद्यापीठवाराणसी के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय (15-16 नवम्बर, 2015) यातना का अंत-सामूहिक  सरोकार”  विषयक अंर्तराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन गाँधी अध्ययन पीठ वाराणसी उत्तर प्रदेश में किया गया है | जिसमे नेपाल व भारत के उत्तर प्रदेश सहित बिहार, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, मणिपुर, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक से प्रतिनिधि शामिल हुए |
जिसके  बाद आज आखिरी दिन 16 नवम्बर, 2015 को प्रेस वार्ता गाँधी अध्ययन पीठ में आयोजित की गयी जिसको प्रोफ़ेसर अहमद सगीर इनाम शास्त्री, डा० महेंद्र प्रताप सिंह, इतिहासकार, डा0 लेनिन रघुवंशी, महासचिव, मानवाधिकार जननिगरानी समिति,श्रुति नागवंशी, मैनेजिंग ट्रस्टी मानवाधिकार जननिगरानी समिति, ने प्रेस वार्ता को संबोधित किया, जिसमे दो दिवसीय चले इस सम्मलेन की रिपोर्ट मीडिया के समक्ष रखते हुए बताया कि मानवाधिकार मूल्यों के परिपेक्ष्य में राज्य और आम ग़रीब नागरिकों के बीच बढ़ते अंतरराज्य द्वारा यातना रोकथाम एवं यातना के स्वरूप के पहचान न होने के कारण पूर्ण उदासीनता स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है | आज यह बात साबित हो गयी है कि किसी समुदाय या वर्ग को प्रभाव व दबाव में लेने के लिए यातना व हिंसा का सहारा लिया जाता है जिसके फलस्वरूप पीड़ित व समुदाय तनाव अवसाद हिंसा आत्मह्त्या,  चिंता व अनिद्रा जैसी भयंकर मनोवैज्ञानिक एवं मनोसामाजिक समस्याओं से जूझता है समाज के सभी तबके, समुदाय और शिक्षित, बुद्धिजीवी वर्ग में यातना के विभिन्न स्वरूप के रोक थाम के लिए सरकार एवं मानवाधिकार संस्थानों द्वारा अविलम्ब पहल करने की आवश्यकता है |
      इस दो दिवसीय संगोष्ठी में बुद्धिजीवियों एवं मानवधिकार कार्यकर्ताओं के द्वारा गहन चिंतन और मनन के बाद इस बात पर जोर दिया कि यातना सिर्फ़ शारीरिक नहीं होती है बल्कि बहुत ही गंभीर रूप में यह मानसिक मनोवैज्ञानिक एवं सांवेगिक रूप में होती है | यातना को ख़त्म करने व यातना मुक्त समाज की स्थापना के लिए कई बिन्दुओ पर चर्चा के बाद मुख्य सिफारिशे इस प्रकार रहे -
  • भारत सरकार संयुक्त राष्ट्र यातना विरोधी कन्वेंशन (UNCAT) का अनुमोदन करे, साथ ही जिनेवा कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करते हुए अनुमोदन करे  |
  • राज्य सभा में लम्बित यातना रोकथाम क़ानून को पारित कर लागू किया जाय |
  • साउथ एशिया ह्युमन राईट्स व्यवस्था (Mechanisim) सार्क के स्तर पर किया जाय |
  • पुलिस सुधार व जेल सुधार की सिफ़ारिशो को लागू किया जाय |
  • सभी शिक्षण संस्थानों में मानवाधिकार शिक्षा को एक विषय के रूप में लागू किया जाय |
  • माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले, भारत सरकार की विभिन्न कमेटियो की सिफारिशो एवं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत आर्म्स फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) गैर कानूनी और अमानवीय है जिस आधार पर भारत के विभिन्न राज्यों में लागू आर्म्स फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) को हटाते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ती इरोम शर्मिला का उपवास अविलम्ब समाप्त कराया जाय |
  • 9 अगस्त 2014 बनारस सम्मलेन में तय किये गए “बनारस घोषणा पत्र” को लागू किया जाय |
  • संसद में महिलाओ को 33% आरक्षण लागू किया जाय |
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ह्यूमन राईट डिफेंडर डेस्क को सक्रिय, मजबूत एवं प्रभावी बनाया जाय |
  • क़ानून के राज के तहत निष्पक्ष, सक्रिय व प्रभावी न्यायिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाय जिससे न्याय व्यवस्था, मानवाधिकार संरक्षण के लिए सम्बंधित संस्थान सक्रिय हो सके |
  • पीडितो एवं गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने का क़ानून पारित कर लागू किया जाय |
  • जेल में बन्द ऐसे बंदियों के लिए जिनके जमानतदार एवं जमानत राशि के अभाव में बन्द कैदियों को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता से उन्हें मुक्त कराया जाय | 
  • जेल में महिला बंदी एवं उनके बच्चो को अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण कार्यक्रम सुनिश्चित किया जाय |
  • भारत - नेपाल के रिश्ते को मानवीय, स्थायी करने के लिए अविलम्ब अति आवश्यक सामग्री यथा राशन, ईंधन, दवा की सप्लाई नेपाल को की जाय |
  • विस्थापन करने से पूर्व वहां के निवासियों की स्थिति का आकलन व उनकी आवश्यकताओ की पूर्ति करते हुए उनका पुनर्वासन किया जाय |  
  • यातना के रोकथाम व यातना कानूनी पीड़ित के मनोवैज्ञानिक, सामाजिक व पुनर्वासन की योजना भारत सरकार द्वारा शुरू किया जाय |

विदित हो कि जुलाई 2012 में दिल्ली में मानवाधिकार जननिगरानी समिति, यूरोपियन यूनियन और डिग्निटी: डेनिश इंस्टीटयूट अगेंस्ट टार्चर के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष माननीय के.जी. बालाकृष्णन जी ने भी भारत सरकार को UNCAT के अविलम्ब अनुमोदन के लिए अपील की थी | 
भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार परिषद् की दो यूनिवर्सल पीरियाडिक रिपोर्ट (UPR) रिपोर्ट में यह कहा है की वो UNCAT का अनुमोदन करेगी और तीसरी UPR रिपोर्ट अगले वर्ष से शुरू होने वाली है |   

आज की संगोष्ठी के आखिरी सत्र संगठित हिंसा, यातना के खिलाफ विभिन्न अभियानों के सन्दर्भ में चर्चा में प्रमुख रूप से उदय दशरा संस्था, संध्या-शिक्षर प्रशिक्षण संस्थान, प्रोफ़ेसर महेश विक्रम, प्रोफ़ेसर संजय, डा0 भावना वर्मा, डा0 शैला परवीन, डा0 भारती कुरील (महात्मा गांधी काशी विद्या पीठ), संतोष उपाध्याय-बंदी अधिकार आन्दोलन, ओवैस सुल्तान खान, डा0 महेंद्र प्रताप, नम्दीथियु पामेयी, ज्योति स्वरुप पाण्डेय –पूर्व पुलिस महानिदेशक, रागिब अली व डा0 इफ़्तेख़ार खान, शामिल रहे | इस सत्र का संचालन डा0 मोहम्मद आरिफ ने किया |   
इस दो दिवसीय चर्चा परिचर्चा से निकले सुझाव का संस्तुति पत्र स्थानीय निकाय, राज्य सरकार व भारत सरकार को भेजा जाएगा और पैरवी किया जायेगा | साथ ही आने वाले चुनाव में इन मुद्दों को हर पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल करने व लागू करने के लिए जन दबाव बनाया जाएगा | इस आशा के साथ कि समाज को यातना मुक्त बनाया जाय और सरकार UNCAT का अनुमोदन जल्द से जल्द करे जिससे समाज का हर व्यक्ति सम्मान के साथ गरिमापूर्ण जीवन यापन कर सके | इसके साथ ही पूरे विश्व में बढ़ रही हिंसा के क्रम में जो हाल में पेरिस, सीरिया, लेबनान व एनी देशो में हुए हिंसात्मक अमानवीय घटना में मारे गए लोगो के लिए 2 मिनट का मौन रखकर उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना के साथ यह भी प्रार्थना किया गया की आगे से ऐसी हिंसक घटनाये न हो |   



Sunday, November 1, 2015

Torture Of Dalits & The Underpriveleged

http://www.dalitcry.org/special_reports/torture-of-dalits-low-castes-in-india.htm#.VjTv67crLIX

Dalit Special Reports

Torture Of Dalits & The Underpriveleged

India has the status of largest democracy despite of this fact torture and organized violence against the marginalized remains entrenched in police department and it is a part of regular routine law –enforcement strategy.
Dalits, adhivasis and other backward low caste people suffer atrocities and discrimination in all spheres of life. In country like India where the caste system dictates the lives of India’s citizens, low deprived caste or untouchable communities are denied the right to be treated equally and the rights to have equal protection before law.
One of the most gruesome human rights violations the low caste people face from governmental bodies is the widespread use of torture by the police.
The torture is used for intimidating the victim to speak truth, or to push low caste torture victim to admit to false crimes.
The majority of low caste underprivileged people are targeted because of their inability to pay bribe to the police, insufficiency to fight a case for long and also because there is a general impression in Indian society that poor low caste dalits and tribals are not only do menial work but also from the major source of anti-social and criminal elements.
Because of these factors the low caste or untouchable community is an easy target for torture, the policemen who torture do not get sentenced for his heinous crime, and the mechanism of justice for the common man is lost.
There are two main aspects of police torture against low caste people. First, the historical, social and political factors that perpetuate police torture. Second, the condition the majority of the untouchable community lives in today and in what circumstances the torture is executed.

Historical Causes of Torture

There are two main causes for the rise and development of heinous crime like torture against deprived caste. First is impression of low or deprived caste people on rest of the society i.e. there is general impression in Indian society that poor dalits and tribals are not only do menial work but also form the major source of anti-social and criminal elements.
Secondly, thinking and tradition of upper caste people. Historically, a culture of silence has been permeated in Indian society. Privileged upper caste people believe that they are beyond the law and for governing underprivileged low caste or untouchable community laws are made.
Discrimination between low caste and upper caste people started from vedic and later vedic period and it is still continue in modern Indian society. This biased behavior prevalent in Indian society is also reflected in governmental bodies. That is why one finds most of the custodial tortures, violence and death are committed against marginalized and deprived caste.
Many dalits are tortured and subjected to humiliation and degrading treatment in public like garlanded with slippers and sandal, colouring their face black and white including force riding on donkey etc. Indian police practice community punishment to demoralize dalit community.
Demoralizing lower caste is very common to make them silent, so they cannot raise their voice. When aperson from upper caste commits crime, after trial the person is punished.
However, when it comes to the lower caste entire community is punished. This punishment does not originate from court of law, but carried out by upper caste in collusion with, police who provides sound support in punishing lower caste.

Situation today

Uttar Pradesh, for instance, constitutes more than 30% of the total population in India. The deprived caste people are discriminated daily because they are considered untouchables in country like India, where the caste system still dictates the lives of the population.
The caste system also leaves the Dalits and Tribals communities marginalized living on the outskirts of society. Because of the caste system and other forms of discrimination the majority of deprived low caste people live on the brink of poverty.
The children are not receiving proper education, and the income of families are from menial, low income jobs such as glass making, lock making and weaving, often in the cottage industry. Most deprived caste communities live in highly congested areas without proper drainage and electrical facilities.
The promises of development made by political parties are empty and little has been done to improve the economic and social standards of deprived caste people. The money allocated to these communities is instead filling the pockets of corrupt politicians. With no education and proper leadership the communities often fall for the same traps election after election.

How the torture happens

India’s National Human Rights Commission (NHRC) released figures recorded from 2008-201, showing that within the 4 years there were 4,034 custodial deaths and 1,836 cases of custodial torture registered in India.
The worst affected state was Uttar Pradesh, with 999 registered deaths and 1,552 registered cases of torture, but most of the cases go unregistered. The huge amount of the victims in these cases was deprived caste people. Police torture is so widespread in Uttar Pradesh, it is believed among many aid organization like PVCHR and NHRC that all policemen have directly or indirectly, been involved in police brutality and torture.
By definition, torture involves the dehumanization of the victim which is made easier if the victim is from a marginalized deprived class people. To enable torture, the lack of human sympathy is considered necessary for the torturer.
The torture by police officers often occurs in disclosed locations or unofficial rooms in police stations. When suspects and witnesses are picked up illegally by the police authority and tortured for a number of days or weeks, it is often not recorded until the victims of torture admit to criminal activity.
Methods for torture include assault, physical abuse, custodial death, threats, psychological humiliation, and deprivation of food, water, sleep, and medical attention.
For women, torture also includes practices such as custodial rape, molestation and other forms of sexual harassment. The most gruesome forms of torture usually occur in the course of the investigation and interrogation of the alleged suspects.
In 2009, the Human Rights watch analyzed the effectiveness of the Indian police forces and documented human rights abuses committed by police officers. For the report more than 80 officers and 60 victims of the police officer abuse were interviewed from 19 police stations in Uttar Pradesh, Karnataka, Himachal Pradesh, and Delhi. In the report many officers
Today where everyone pretend themselves as modern as technology of this period are but when it comes to the matter of deprived caste, this so called modern upper caste people become rudimentary and follower of tradition and culture.
Because of this caste system there is a legal, social, political and economic discrimination against deprived caste daily. Police torture is a manifestation of social discrimination. Therefore ending police torture goes hand in hand in socially, economically, and politically strengthening the deprived caste.
Today there are many organizations working towards helping the deprived community out of situations which breed violence and discrimination. Peoples’ Vigilance Committee on Human Rights a non- governmental organization who working towards these community from the grass roots level. They were not only providing psycho –legal support to the victims of these deprived community in their cases of police torture but also connect these communities with the various schemes launched by government for the welfare of the lower deprived caste people like MNREGA etc.
Suggestion
There is no doubt that PVCHR working incredibly towards the deprived caste victims by providing legal as well as psycho-social support. As an intern and observer of PVCHR I have a suggestion which hopefully enhance your effort towards the aim of making India as torture free country.

The very essence of Indian Law System is to provide compensation to victims with proper prosecution of wrongdoer who commit the crimes and it is a basic right of any victim who suffer violation of his rights. According to my observation in your case solving procedure it was missing.

by Ms. Nidhi Gupta (Student of National Law University & judicial academy)