Sunday, March 20, 2011

पुलिस ने मेरी पिटाई क्‍यों की

http://www.sarokar.net/2011/03/1429/


इस बार लेनिन रघुवंशी पेश कर रहे हैं पुलिस यातना के शिकार हरिश्‍चन्‍द की कहानी उनकी ही जुबानी


मेरा नाम हरिश्चन्द उर्फ भोथू, उम्र-लगभग 60 वर्ष, पुत्र-स्व सालीक राम, ग्राम-भेलखा, जैतपट्टी, पोस्ट-चमाऊ (तरना शिवपुर) थाना-बड़ागाँव, जिला-वाराणसी (उ0प्र0) का निवासी हूँ।

चार-पाँच साल पहले हम भट्टा मालिक प्रदीप, भेलखा को छप्पर छाजने के लिए सामग्री दिये थे, उसी का पैसा मांगने वहाँ गये हुये थे, वे वहाँ नही थे। उस समय भट्टा पर राँची के मजदूर थे, जो अपने पीने के लिए शराब बनाते थे। हम वहां अभी पहुँचे ही थे, देखे कि सभी भाग रहे हैं। हम बोले – क्यों भाग रहे हो ? तभी उनमें से एक ने हमें पीछे देखने को बोला। हम पीछे देखे। वहाँ दरोगा (हरहुआ चौकी इंचार्ज विरेन्द्र कुमार मिश्रा) खड़ा थे। हमने सलाम किया। इस पर वे गाली बकने लगे। हम बोले – साहब हम सलाम कर रहे हैं, आपसे उम्र में बड़े भी हैं और आप मां-बहन की गाली दे

                                                            विक्टिम हरिश्‍चन्‍द

रहे हैं। इतना सुनते ही वे तथा एक सिपाही (अमर नाथ सिंह यादव) हमें डण्डा व लात-घूसों से मारने लगे, जिसमें मेरे दाये हाथ की हड्डी टूट गयी, बायीं हाथ के बीच वाली अंगूली फट गयी और बायां पैर का घुटना का कटोरी (हड्डी) ही निकल गया तथा दाया पैर का अंगूठा फट गया था। उसी हालात में हमें बड़ागाँव थाना ले आए। रात में एसएचओ के कहने पर हमारा इलाज अस्पताल में करवाया। जहां केवल इन्जेक्‍शन और मरहम-पट्टी किया गया। उसके बाद रात भर हमें बड़ागाँव थाना में बंद कर दिया। रात भर हम असहनीय पीड़ा से कराह रहे थे, चिल्ला रहे थे। कोई सुनने वाला नहीं था।

सुबह फिर जीप में बैठाया और बाईपास पर हड्डी अस्पताल – शोभनाथ अस्पताल में भर्ती करवाया। वहाँ हम एक रात और एक दिन रहे। कच्चा प्लास्टर हुआ। अस्पताल में भर्ती कराकर वे लोग चले गये। फिर हम अपने रिश्‍तेदारों के साथ एसएसपी के बंगले पर गये। वहाँ एसएसपी साहब सिपाही के साथ कबीर चौरा अस्पताल भेजे। जहं मेरा इलाज हुआ। मेडिकल रिपोर्ट बना तथा रात भर पानी चढ़ा और अगले दिन प्लास्टर हुआ। तीन बार प्लस्टर किया गया, लेकिन हालात न सुधरने पर हाथ का ऑपरेशन किया गया तथा रॉड लगाया गया है। मैं आज तक नहीं जान पाया कि पुलिस ने हमें मारा क्‍यों.

हमने मानवाधिकार जन निगरानी समिति के सहयोग से मुकदमा भी किया, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। सुबह सोकर उठने पर हाथ-पैर का हड्डी सहलाना पड़ता है, दर्द रहता है, उसके बाद उठते हैं। जमीन पर बायां पैर ज्यादा देर तक नही रख सकते, क्योंकि सुन्न जैसा होने लगता है। अभी भी सारी बातें दिमाग़ में आती रहती है। नींद नहीं आती। कभी-कभी दवा का उपयोग करना पड़ता है।

हमारे आजीविका की स्थिति भी गम्भीर है। बच्चे पढ़ाई छोड़कर गारा-मिट्टी का काम कर रहे हैं। हमारा दस हथकरघा था। लेकिन अक्षमता के कारण सभी सड़ गया। बनारसी साड़ी बिनने का काम बंद हो गया है। हम शरीर से लाचार कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हम चाहते हैं कि मेरे द्वारा दायर मुकदमे में सुनवाई हो। हमें न्याय मिले तथा मुआवजा दिया जाए, जिससे कोई रोजगार-धंधा कर सकूँ।


उपेन्द्र कुमार के साथ बातचीत पर आधरित


डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.