Thursday, April 12, 2012

इसी तरह मुसहर लोगों के साथ होता आया है

                मेरा नाम टिंकू मुसहर, उम्र-30 वर्ष, पुत्र-पौहारी मुसहर है। मैं ग्राम-जाम, थाना-सिकरारा, जिला-जौनपुर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मेरे घर में माता-पिता व पत्नी सहित 9 सदस्य है। छः भाई, दो बहनों में मैं सबसे बड़ा हूँ। मेरी पत्नी-गुड्डी अभी गर्भवती है, जिसका नौवां महिना चल रहा है। मेरी शादी का दस वर्ष हो चुका है, यह हमारे लिए बहुत खुशी के बात है की हमारे घर पहला बच्चा पैदा होने वाला है। इसके लिए काफी जगह दौड़-धूप किया हूँ, मन हमेशा प्रफ्फूलित होता है कि मैं भी संतान वाला बन जाऊगा।


                मैं ईंट-भट्ठा पर ईंट पथाई (बनाने) का काम सपरिवार करता हूँ। इसी संदर्भ में दशमी के एक दिन बाद 7 जोड़ा मुसहर मजदूर अरविन्द यादव के ईंट-भट्ठा 'एस0बी0एफ0'' मार्का भट्ठा पर काम करने गया, जो पहाड़पुर-मुडि़यार, थाना-सैदपुर, जिला-गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में पड़ता है। हम लोगों को किराया व काम करने हेतु 13,000/- रुपया नगद अग्रिम (एडवांस) दिया। उसी समय 300/- रुपया प्रति हजार ईंट पथाई पर सौदा भी तय किया गया था, लेकिन भट्ठा मालिक अरविन्द यादव व उनके पार्टनर पप्पू यादव दो सप्ताह बाद पैसा देने में आना-कानी करने लगे तथा गाली-गलौज देते हुए मार-पीट भी करना शुरू कर दिया। इन दो सप्ताह के बीच में केवल सप्ताहिक खोराकी के लिए 250/- रुपया प्रति जोड़ी दे रहा था। दवा व भोजन पकाने के ईंधन तथा खर्च मांगने और हिसाब करने के लिए बोलने पर मुझे बांधकर अरविन्द यादव मारता था और मेरी बहन विट्टन, पत्नी-मक्कलू को कमरा में बंदकर मारपीट भी किया और रात भर उसे उसी में बंद रखा, सुबह देखे तो उसका कपड़ा फटा व अस्त-व्यस्त था। हम भाई अब क्या बताये, उस दृश्य को यादकर अपने-आप में लज्जा महसूस करता हूँ। किसी प्रकार वहां सप्ताह भर रहे और मौका पाकर 7 जोड़ा भाग गये। उस भट्ठा पर हम लोग लगभग तीन महीना काम किये है।


                वहां से भागने के बाद अपने गांव जाम गये, वहां किसी प्रकार छूपकर रहने लगे कि कहीं भट्ठा मालिक न आ जाए। वही हुआ जो डर था, आखिर तीसरा दिन दोनों भट्ठा मालिक और चार-पाच आदमी हमारे बस्ती में चार पहिया गाड़ी, जिससे कल मुझे लेकर वाराणसी आया था, पहुँच गया। मेरा छोटा भाई अखिलेश गाड़ी देखकर बताया, जब हम बगीचा के पास जो लगभग दो विघा की दूरी पर गाड़ी देखे, मेरा शरीर काॅप गया, कुछ सुझ नही रहा था की क्या किया जाए। तभी अन्य लोग भागने लगे, हम भी भागने लगे, मेरी गर्भवती पत्नी दूसरी रास्ता से भागी। एकाएक मेरा दिमाग ठनका की गुड्डी तो गर्भवती है, कही कुछ गड़बड़ न हो जाए, भाग पायेगी की नही, अगर वे लोग पकड़ लेगें, तब क्या होगा। यह सोचकर ही मेरा करेजा (दिल) की धड़कन अत्यधिक बढ़ गयी, शरीर में हदश पैदा हो गया। लगभग दिन घण्टा बाद 2 किमी0 दूर बर गुदर, लाला बाजार, सिकरारा के पास है वहां मिले, पत्नी को सही सलामत देखकर खुश हुये, वह कुछ बोल नही पा रही थी, उसका शरीर थर-थर कांप रहा था। उसे सांत्वना दिया और पानी के साथ कुछ खिलाया तब जाकर चार घंटा बाद उसके शरीर की कपकपी ठीक हुयी। वह बोली-हम गांव नही जायेगें, चाहे कछ हो जाए, हम बोले-चलो साढँू के पास छोड़ दे, फिर वहां से सभी लोग तिरछे रास्ता से 8 किमी0 की दूरी पर मडि़याहू लगभग शांम 700 बजे पहुँचे वहां से फिर लगभग रात में गाड़ी से सकरा मुसहर बस्ती अपने साढूँ के पास पहुँच गये, जो हमारे गांव से लगभग 60 किमी0 की दूरी पर है। वह दिन रविवार था। मेरा साढ़ूँ खरबोटन, पुत्र-श्याम लाल बनवासी, ग्राम-सकरा, थाना-रामपुर, जिला-जौनपुर भी हमारे साथ भागने में थे। भरत पुत्र-विशुनी के पूरा परिवार पकड़ा गया था, उसे पकड़कर ले गये।


                सकरा आने के बाद महातीम पुत्र-स्व0 राम किशन, जो वही के वासी है, मिले और हम लोगों को ढ़ाढ़स बधाया और सोमवार को मानवाधिकार जननिगरानी समिति, वाराणसी के कार्यालय में लेकर आये। जहां से हम लोगों ने जान-माल की सुरक्षा और बकाया मजदूरी 45,000 ईंटों के संदर्भ में हलफनामामय शपथ-पत्र श्रमायुक्त, वाराणसी मण्डल, वाराणसी और जिलाधिकारी-गाजीपुर को 20 दिसम्बर, 2011 को भेजे। किसी प्रकार की कार्यवाही नही हुयी, उल्टी भट्ठा मालिक मुझे और मेरे पिता पौहारी को खोज रहा था। हम लोग भागे-भागे फिर रहे थे, तभी चुनाव के समय वोट डालने अपने गाँव गये हुए थे, वहां भरत भी आया हुआ था, वह काफी रो रहा था और भट्ठा से छुटकारा पाने के लिए बोला, हम लोग उसे सकरा ले गये। इस बीच भट्ठा मालिक हमारे रिश्तेदारों-परिचित मुसहर को पकड़कर कागजातों पर हस्ताक्षर करवाता था की हम लोग पैसा लेकर भाग गये है।

               

  मेरे पिता जी भरत और उसकी पत्नी-नीलू को लेकर वाराणसी आये, उन्होने भी शपथ-पत्र सहायक, श्रमायुक्त, गाजीपुर और जिलाधिकारी-गाजीपुर को दिनांक 18 फरवरी, 2012 को जान-माल की सुरक्षा हेतु गुहार लगाये, लेकिन किसी प्रकार की कार्यवाही नही हुयी।


                इस बीच लगातार भट्ठा मालिक द्वारा हम लोगों को ढ़ूंढ़ा जा रहा था, तभी मार्च महीना में मेरे गाँव स्थित घर के ताला तोड़कर सारा सामान बिखेर दिया और छोटा-मोटा समान उठाकर ले गया। इसमें गांव के ही ठाकुर लोग साथ दिये। घर में शादी का सामान था, जो अपने भाई समरनाथ और अमरनाथ की शादी हेतु जुटाया गया था। हम लोग भागे-भागे फिर रहे थे, दूसरी तरफ भट्ठा मालिक का कहर जारी रहा। इसी संदर्भ में 2 मार्च, 2012 को पिता जी ने पुलिस अधीक्षक, जौनपुर को आवेदन-पत्र भी भेजे, लेकिन किसी प्रकार की राहत नही मिली।

                हम लोग कब तक बेकार बैठे रहते, बिना काम किये एक शाम चुल्हा नही जलता है, उसी बीच मौर्या जी के ईंट-भट्ठा, स्थान-सिंधौने गेट के पास, फजुलहा, थाना-रामपुर, जौनपुर काम करने लगा। वहां हम पांच लोग भरत व उसकी पत्नी, मै गुड्डी तथा पिताजी नगदी में काम करने लगे। वहां से लगभग एक-डेढ़ महीना काम किये, तभी किसी से सूचना पाकर 07 अप्रैल, 2012 को सबसे बड़ी आफत तब आयी, जब जमालापुर पुलिस चैकी के चार पुलिस वाले दो वर्दी में तथा दो सादा वर्दी में और तीन अन्य लड़का, जिसे हम पहचानते है, नाम नही जानते, वहां भट्ठा पर पहुँच गये। उस समय मैं मिट्टी भिगा रहा था। वे लोग वहां काम करते हुए लक्ष्मन बनवासी, सकरा निवासी से पूछे-भरत कौन है। लक्षमन हमसे पूछा-भरत कौन है। जब हम देखे, तब लड़कों को पहचान गये, तब तक भरत यह सब सुनकर भागने लगा। वहां और सभी साथ वाला भागने लगा हम भी भागने को सोचे, लेकिन हमें पकड़ लिया, क्योंकि मेरे पैर में मिट्टी लगा हुआ था। उसी समय सादा वर्दी वाला बोला हम पुलिस चैकी जमालापुर के एस00 है और भट्ठा मालिक के चार पहिया गाड़ी UP 78 CJ 9093 से पुलिस चैकी ले गया। वहां अरविन्द यादव बैठे थे, हमें देखते ही माॅ के गाली देते हुए धमकाने लगा और बोला हम देख लेगें, ''मानवाधिकार को, तुम्हें काट कर फेंक देगें।'' तभी एस00 हमें दो थप्पड़ मारा और बोला-अपने बाप को जल्दी बुलाओं और महातीम को भी बुलाओं। ''एस00 कहने वाला आदमी अपना मोबाइल फोन दिया, जिस पर हम 9795206189 पर फोन किये और महातीम भैया से बात-चीत हुयी। उसी समय फोन छिनकर अरविन्द यादव महातीम को भी गाली दिये कि मानवाधिकार के बाप बने हो, बहुत मन बढ़ गया है, नेता बनते हो, तुम्हें भी गुगतना पड़ेगा।'' एस00 बोला-''तुम मानवाधिकार का अधिकारी बन गये हो, हमसे बड़ा अधिकारी हो गये हो।'' वहां पुलिस चैकी में हम दो घण्टा रहे, इस बीच चैकी का साफ-सफायी और ईंट रखवाने का काम करवाये। फिर शाम लगभग 0500 बजे हमें उसी गाड़ी से अरविन्द यादव अपना घर ले आया। वहां हमें छोटा बंदूक देखाकर बोला-तुम्हारा बाप नही पकड़ाया, तब तुम्हारे .............. गोली मार देगें, धुआ फेक देगा।''


                वहां दस मिनट रूका और अपने मौसी के घर जो नदी के पहले लगभग दो विघा की दूरी पर चैराहा से दाहिना मुडि़यार के कुछ दूर आगे जाकर रूका। गाड़ी से उतारकर उस घर में ले गया और सीढ़ी के बगल वाली कमरा में बंद कर दिया, जहां गेहू, मूस, धान, आलू, चना इत्यादि रखा था। पूरा दो तल का मकान ईंटा के बाउंड्री से घिरा था, वहां नीम और बेल का पेड़ भी था और घर में कम चल रहा था। बाउंड्री में लोहा का फाटक लगा हुआ था। वहां एक लाल-काला रंग का कुत्ता भी था। हमें कुछ खाने को नही दिया, 1100 बजे रात को एक लगभग बुढ़ी औरत चटायी लाकर दी। उस कमरा के खिड़की के सामने घड़ी लगा था, उसी में समय देखे थे, जिसके लगभग एक हाथ छोड़के बिजली का बल्ब लगा हुआ था। उस समय बिजली थी, हमारे कमरा में कुछ भी नही जल रहा था। हमें डर भी लग रहा था कि अंधेरे में कुछ काट न ले। डर के मारे हमें निंद नही आयी। एक तो हदस और दूसरे कुछ कांटने का डर था

क्योंकि जमीन का सीमेंट से पलस्तर नही किया गया था।


                दूसरे दिन सुबह 500 बजे अरविन्द यादव आकर कमरा से बाहर निकाला और काम करवाने लगा। अभी भी याद करने पर डर लग रहा है। फिर शांम को 600 बजे बंदकर दिया, उसी समय केवल खाना दिया, फिर रातभर उसी तरह रहे। उस समय सोचते थे की कैसे भाग निकले। शौचालय करने हेतु भी हमें बोला की उसी में निपट लेना, बाहर नही आना है।


                9 तारीख सोमवार को 1200 बजे कचहरी, सैदपुर, गाजीपुर लाया और सादा कागज पर अंगुठा लगवाया, कचहरी में भी एक रजिस्टर पर अंगूठा लगवाया था। उसके पहले घर का काम करवाया। फिर लगभग 100 बजे उसी घर में ले गया और काम करवाने लगा, जैसे-ड्रम में पानी भरना, मिस्त्री को सीमेंट देने इत्यादि। फिर 600 बजे भोजन करवाकर कमरा में बंद कर दिया। इसी बीच कई बार पेशाब लगा, तब भूसा पर कर दिये और सुबह में घर के बाउण्ड्री के बाहर स्कूल के सामने में शौच करते थे, वहां पर दो छोटा-छोटा लड़का पहरेदारी करता था।


                फिर मंगलवार 10 तारीख को 530 बजे सुबह कमरा से निकाला और ड्रम में पानी भरवाया। फिर अपने मोबाईल से 9795206189 नम्बर पर हमारे घर फोन लगवाया, की अपने बाप को बुलाओ और 2 लाख रुपया मंगवाने। फोन लगने के बाद हमारी पत्नी फोन उठायी, हम बोले-किसी तरह से पैसा व्यवस्था करके हमरा छुड़ाव, नही तो हमारी जान चल जायेगा, इसी बीच हमें हाथ-पैर से मारने लगा, फोन कट गया। मारने के बाद फिर फोन लगाया और स्पीकर आॅन करके हमें दिया, फिर हमारी पत्नी फोन उठायी-वह वही बात बोले। वही बोली-हम कहां से पैसा लाये, हमें कौन पैसा देगा, वह भी फोन पर रो रही थी। इस बीच भट्ठा मालिक पत्नी को गाली दे रहा था कि तुम लोग चाल चल रहे हो। महातीम को भी देख लेगें। हमारा राज आ गया है, सरकार भी हमारा है। पैसा लाकर दे दो 2 लाख रुपया, तुम लोगो से मेरा कोई काम नही है, नही तो बाप-बेटा दोनो को जान से मारकर फेंक देगें।'' उसने फोन काट दिया। फिर हमें उसी कचहरी में उसी स्थान पर लाया, जहां गेट के पास ही अम्बेडकर जी की मूर्ति है वहां पर लाया। श्रम विभाग के सामने खड़ा होकर बयान करवाया की बोलो 2 लाख रुपया तुम्हारा बाप लिया है। उसके बाद बाहर निकालकर ड्राइवर के साथ गाड़ी में बंदकर दिया। अपने उसी विभाग में कुछ बातचीत किया। गाड़ी में आकर बोला-चलो, वाराणसी तुमको मानवाधिकार को सौंप देते है। उस समय लगभग शाम के 400 बज रहा था। गाड़ी में पप्पू यादव भी था जो वाराणसी आया। रास्ते भर हमको धमकी दे रहा था, कि चलो उसके बाद तुम्हारे पूरा परिवार को भट्ठा पर मजदूरी करवायेगंे। वहां से सीधे हम लोग मानवाधिकार जननिगरानी समिति के कार्यालय के आगे गली के सामने वाले मैदान में गाड़ी खड़ा कर दिया। उसके बाद पप्पू यादव और अरविन्द यादव चला गया। लगभग आधा घण्टा बाद गाड़ी में पहुचकर अरविन्द यादव बोला की चलो अब मौका मिला है तुमको मारने के लिए, ''गाड़ी से हम लोग गाजीपुर जाने लगे, तभी कार्यालय के गली को देखकर हम गाड़ी से कूद गये और भागकर कार्यालय में आ गये। पीछे-पीछे दोनो मालिक भी कार्यालय में आया और खोजने लगा, जब हम दिखायी नही पड़े, तब वे लोग कार्यालय में लिखकर सुर्पद कर दिया।


                हम छुपे हुए थे, सभी बाते सुन रहे थे, वह बोल रहा था की हम आपको उसे सौप देते है, लेकिन हमें 1 लाख 75000/- रुपया चाहिए। नही तो दूसरे लोगों के लिए जेल गये है, अगर अपने लिए भी चले जायेगें तो कोई दुःख नही है। लोकतंत्र में किसी को फांसी नही होती है। हम जा रहे है अब जैसा होगा, देखा जायेगा।


                भट्ठा मालिक के जाने के बाद हमें थोड़ी राहत मिली, नही तो उनकी बातों को सुनकर अत्यधिक डर लग रहा था कि फिर दुबारा हमें पकड़ न लें। कार्यालय में आने के बाद जान को राहत मिली और वहीं रातभर सुरक्षित रहे। अब हमें किसी प्रकार का डर नही लग रहा है। हमें न्याय मिलना चाहिए, हमार परिवार सुरक्षित रहे। भविष्य में इस प्रकार की घटना न घटे, इसी तरह मुसहर लोगों के साथ होता आया है, अब तो हमें जीने के लिए इंसाफ हो। हमें घर जाने में भी डर लग रहा है की कही फिर वही घटना न घट जाए।


                अपनी बातें बताये, कार्यालय के सहयोग एवं पैरवी के कारण धीरज बंध है। अपनी बाते बताकर मन का बोझ भी कम हुआ हैं, लेकिन घर जाने में खतरा है फिर भी पत्नी से मिलने की खुशी है।

 

                संघर्शरत पीडि़त                                    साक्षात्कारकर्ता

 

                (टिंकू मुसहर)                                      (उपेन्द्र कुमार)