मेरा नाम मुटना देवी उम्र-52 वर्ष, पति का नाम भोनू मुसहर ग्राम-खरगपुर, पोस्ट-झंझौर, थाना-फुलपुर, ब्लाक-पिण्डरा, जिला-वाराणसी की मूल निवासी हुँ ।
आज से दस बारह साल पहले की स्थिति मेरी ऐसी थी कि जब सोचती हुँ तो रुह काॅप जाता है । मेरे पति जेल में उस समय थे तो मैं पत्ता तोड़कर दोना-पत्तल का बनाकर बाजार में बेचती थी, तब जाकर बच्चों का भरण-पोषण करती थी। जो दोना-पत्तल हम बनाते थे तो ठाकुर ब्राह्नमण मेरे बने हुये दोना पत्तल पुजा पाठ करके पवित्र जीवन करते थे और हम लोगों से छुआ छूट की भावना रखते थे ।
पति के जेल रहने के कारण हमको अकेले हर काम देखना पड़ता था । कोट कचहरी, जेल में पति से मिलने जाना जब पति के मामले को लेकर कोट कचहरी जाते थे तो पहले पुलिस को देखकर डर लगता था, लेकिन जब से मानवाधिकार के लोग हमको मिले और साथ में हौसला देने लगे तो अन्दर धीरे हिम्मत होने लगी उस समय मुझे लगा कि मैं अकेली नही हुँ मेरे साथ भी लोग है । अब पुलिस वालों को देखती हुँ तो बिल्कुल डर नही लगता अगर बस्ती में पुलिस आ भी जाति है तो सोचती हुँ अपना काम करके चले जायेगे बहुत से पुलिस वाले पहचानते है तो हाल चाल भी पुछते है, इसलिए पुलिस को देखकर भागती भी नही हुँ और मैं खुद ही पुछती हुँ कि क्या काम है । पति के जेल में रहने के कारण मैं अपने बच्चों को कम पढ़ा पाई क्योंकि उस समय खाने को मिलता ही नही था पढ़ाई कहा से करा पाऊँगी। लेकिन अब हम अपने नाती-पोते को पढ़ाते भी है और पढ़ाते रहेगे ताकि हमारी नयी पिढ़ी अषिक्षित न रहे । अब तो हमको उच्च बिरादरी के लोग भी पुछते है ।
पहले की जिन्दगी हम लोगों का बहुत खराब था न कमाई थी, न कही उठन-बैठन था पुलिस ऊपर से परेषान करती थी लेकिन अब ऐसा नही है ।
अब मेरा जीवन जीने का मुख्य आधार केवल दोना-पत्तल था लेकिन अब मजदूरी का काम मिलता है । सरकारी योजनाओं का लाभ राषन, चीनी, तेल व गाँव में काम नरेगा जाॅब कार्ड पर भी काम मिलता है और ईट भट्ठे पर भी काम कर लेते है ।
अब तो गाँव में ही काम करने को मिल जाता है इसलिए दुर जाना नही पड़ता ।
आज से दस बारह साल पहले की स्थिति मेरी ऐसी थी कि जब सोचती हुँ तो रुह काॅप जाता है । मेरे पति जेल में उस समय थे तो मैं पत्ता तोड़कर दोना-पत्तल का बनाकर बाजार में बेचती थी, तब जाकर बच्चों का भरण-पोषण करती थी। जो दोना-पत्तल हम बनाते थे तो ठाकुर ब्राह्नमण मेरे बने हुये दोना पत्तल पुजा पाठ करके पवित्र जीवन करते थे और हम लोगों से छुआ छूट की भावना रखते थे ।
पति के जेल रहने के कारण हमको अकेले हर काम देखना पड़ता था । कोट कचहरी, जेल में पति से मिलने जाना जब पति के मामले को लेकर कोट कचहरी जाते थे तो पहले पुलिस को देखकर डर लगता था, लेकिन जब से मानवाधिकार के लोग हमको मिले और साथ में हौसला देने लगे तो अन्दर धीरे हिम्मत होने लगी उस समय मुझे लगा कि मैं अकेली नही हुँ मेरे साथ भी लोग है । अब पुलिस वालों को देखती हुँ तो बिल्कुल डर नही लगता अगर बस्ती में पुलिस आ भी जाति है तो सोचती हुँ अपना काम करके चले जायेगे बहुत से पुलिस वाले पहचानते है तो हाल चाल भी पुछते है, इसलिए पुलिस को देखकर भागती भी नही हुँ और मैं खुद ही पुछती हुँ कि क्या काम है । पति के जेल में रहने के कारण मैं अपने बच्चों को कम पढ़ा पाई क्योंकि उस समय खाने को मिलता ही नही था पढ़ाई कहा से करा पाऊँगी। लेकिन अब हम अपने नाती-पोते को पढ़ाते भी है और पढ़ाते रहेगे ताकि हमारी नयी पिढ़ी अषिक्षित न रहे । अब तो हमको उच्च बिरादरी के लोग भी पुछते है ।
पहले की जिन्दगी हम लोगों का बहुत खराब था न कमाई थी, न कही उठन-बैठन था पुलिस ऊपर से परेषान करती थी लेकिन अब ऐसा नही है ।
अब मेरा जीवन जीने का मुख्य आधार केवल दोना-पत्तल था लेकिन अब मजदूरी का काम मिलता है । सरकारी योजनाओं का लाभ राषन, चीनी, तेल व गाँव में काम नरेगा जाॅब कार्ड पर भी काम मिलता है और ईट भट्ठे पर भी काम कर लेते है ।
अब तो गाँव में ही काम करने को मिल जाता है इसलिए दुर जाना नही पड़ता ।