Wednesday, March 30, 2011

An on the spot fact finding inquiry has started in the case of Hari Lal

Case of Harilal and NHRC

The report furnished by DGP, UP is under the consideration of the Commission. The commission vide order dated 22/03/2011 has directed to send a team from the Commission to conduct an on the spot fact finding inquiry in the incident.


Please visit the given below URL for more information:

one step more in the case of illegal detention of Vinod Gupta and his father RamJi Gupta

SHRC and Ramji case


Two times camplain case no. 7430/24/39/2010/OC/M-3, 4420/24/72/2010/UC/M-2 was filed in National Human Rights Commission and the commission forwarded case to State Human Rights Commission, Uttar Pradesh. The explanation submitted by the Director General of Police, Uttar Pradesh in the first petiton and still it is under the consideration of SHRC. No action taken by the commission in the non -recipant of explanantion in the second case.

Please visit given below URL for more information:

Tuesday, March 29, 2011

हमारी जीत से ग़रीबों का मनोबल बढेगा : रामलाल पटेल

http://www.sarokar.net/2011/03/हमारी-जीत-से-ग़रीबों-का-मन/

इस बार लेनिन रघुवंशी पेश कर रहे हैं भर्जी मुठभेड़ में मारे गए संतोष के परिवार वालों की व्‍यथा कथा संतोष के बड़े भाषी रामलाल पटेल की जुबानी :

मेरा नाम रामलाल पटेल (उम्र-30 वर्ष), पुत्र-पंचमराम पटेल है। मैं ग्राम-पूरबपुर (अहरक), पोस्ट-रमईपट्टी, थाना-बड़ागाँव, विकासखण्ड- हरहुआं, जिला-वाराणसी का निवासी हूँ। हम पांच भाई थे। मेरा छोटा भाई संतोष पटेल (उम्र-20 वर्ष) एक सीधा-साधा लड़का था। उसके खिलाफ़ समाज में कोई ग़लत काम का उदाहरण नही़ था।


                                                                   रामलाल पटेल


 
 13 दिसम्बर, 2006 को संतोष के दोस्त मनोज यादव व बुल्लू यादव अपने घर में पार्टी पर बुलाया। संतोष इस बात का जिक्र पूरे परिवार में किया और घर से शाम पांच बजे निकला। जाने से पूर्व वह मुझसे कहा कि मुझे रात में वहाँ रूकने का मन नही हैं, उसके दोस्त जिद्द करके वहाँ रोक लिये थे। उसी रात 8.30 बजे मेरे बड़े भाई रामनरेश पटेल, जो पोस्ट ऑफिस कानपुर में कार्यरत है, उनके मोबाइल नम्बर-9451330615 पर फोन आया कि आप के भाई संतोष का दुर्घटना हो गया है। उसे प्रज्ञा अस्पताल (हरहुआं) में भर्ती कराया गया है। पड़ोस के गाँव के मोबिन खान नामक व्यक्ति द्वारा घर पर भी हमको सूचना दिया गया। इस सूचना से परिवार के लोग काफी भयभीत हो गये। उसके बाद मैं और मेरे भतीजे रामचन्द्र ( पुत्र-शारदा) ने प्रज्ञा अस्पताल जाकर पता लगाया। वहाँ के डाक्टर ने बताया कि ऐसा कोई केस मेरे यहाँ नही आया हैं। मैंने बड़े भाई को फोन करके बताया और हम दोनों भाइयों ने दोबारा उसी नम्बर पर फोन किया। वह मोबाइल बन्द था। उस समय हमको डर लग रहा था।

हम दोनों चाचा-भतीजा बाजार में खड़े होकर सोच रहे थे कि आखिर बात क्या है। उसी समय गाँव के इंस्पेक्टर सिंह जी मिले, उन्होंने मुझसे पूछा कि रात को यहाँ क्या कर रहे हो। उनसे पूरी घटना को बताया, उन्होंने अपने मोबाइल से किसी परिचीत सिपाही को फोन करके पूछा। तब सिपाही ने बताया कि हरहुआं बाजार में एक विधवा कलावती के घर में कुछ लोग लूट-पाट कर रहे थे, उसमे से एक मारा गया है और उसकी लाश पुलिस चौकी पर आ गयी है। यह सुनने के बाद तुरन्त हम लोगों ने पुलिस चौकी पर जाकर देखा तो मेरे भाई की लाश पड़ी थी। उसे देखते ही हम रोने लगे। पुलिस वाले बताये कि लूट में मारा गया है और बोले कि सुबह गाँव के प्रधान व अन्य को साथ लेकर आना तब शव को पोस्ट-मार्टम के लिए भेजा जायेगा। उस समय घबराते-रोते हम घर पहुँचे। घर के लोग काफी दुःखी बैठकर रोते-चिल्लाते रहे।

सुबह जब हम प्रधान व गाँव के लोगों के साथ चौकी पर गये तो पता चला कि भाई का शव पोस्ट-मार्टम करने उसी रात बीएचयु भेज दिया गया है। तब गाँव की जनता में आक्रोश आया और विरोध में रोड जाम कर दिया गया। उसी बीच कोलअसला के विधायक अजय राय आये और आश्‍वासन दिये कि पुलिस ने अन्याय किया है, मैं इसकी शिकायत विधान सभा में उठाऊँगा। उस समय लगा कि विधायक जी हम लोगों की मदद करेंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ और जाम तोड़वा दिये। हम और हमारे भाई बीएचयु गये तो वहाँ पर एस0ओ0 बैठा था। वहाँ से श्‍मशान घाट गये। जैसे ही लाश को जलाने के लिये अन्दर गये, उसी समय एस0ओ0 वहाँ से चला गया। जब घाट पर भाई की तस्वीर खिचवां रहे थे तब हमने देखा कि उसको काफी तकलीफ दी गयी है।

वहाँ से वापस आने पर मनोज व बुल्लू यादव के खिलाफ एफआईआर करने थाने में गये। तब एस0ओ0 महेन्द्र प्रताप यादव ने एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया। बाद में पता चला कि एस0ओ0 उनके रिश्‍तेदार हैं। पुलिस के रवैये से हम बुरी तरह से भयभीत होते गये। उसी स्थिति में न्याय की गुहार के लिये दौड़ते भी रहे। उसी बीच मानवाधिकार जन निगरानी समिति के कार्यकर्ताओं से सम्पर्क हुआ। उनसे सहयोग और साहस मिला। तब पुलिस के खिलाफ़ कोर्ट में गये और उनके खिलाफ कार्यवाही की गयी। पुलिस के दबाव के कारण हमारे गाँव व रिष्तेदारों द्वारा हमको पुलिस के खिलाफ़ लड़ने से मना किया जाने लगा। वे लोग बोलते थे कि आप अकेले हैं, पुलिस किसी की नहीं होती है, आप उनके खिलाफ कुछ मत करें। उस समय हमको भी डर लगने लगा था और सोचा कि पुलिस सीधा-साधा जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है। जिससे आज ग़रीब जनता पुलिस पर भरोसा नहीं करती है। हमने लोगों से बोला कि पुलिस ने आज जो हमारे भाई के साथ व्यवहार किया है, वह घटना हमारे दिलो-दिमाग़ में निरन्तर गूँजती रहती है। मन करता है कि हथियार उठाकर पुलिस के खिलाफ़ संर्घष करें या मर जायें। इस लड़ाई से अगर हमारी जीत हुई तो ग़रीबों का मनोबल बढ़ेगा।

उसके बाद मैंने घटना स्थल रामसिंहपुर गाँव जाकर वहां की जनता से घटना की जानकारी ली। उन लोगों ने बताया कि दिनांक 13 दिसम्बर, 2006 की शाम साढे सात बजे पुलिस एक गाड़ी में एक दोपहिया और एक आदमी जो अधमरा था लेकर आये थे। पुलिस वाले उसको गाड़ी से बाहर उठाकर फेंक दिये। गाँव वालों ने पुलिस वालो से पूछा भी था तब पुलिस वालों ने बताया कि लूट-पाट करते समय मारा गया है। इस पर जनता बोली कि अभी भी वह जिंदा है, इसे अस्पताल ले जायें, ठीक होने के बाद और अन्य लोगों का नाम बतायेगा, लेकिन पुलिसवालों ने गांववालों की बात नहीं सुनी।



                             पुलिसिया उत्‍पीड़न के शिकार व्‍यक्तियों के संघर्ष के सम्‍मान में

आज भी हमें खेत व अन्य काम करते समय भाई की याद आती है। उस समय थकान महसूस होती है। लूटपाट दो मोटे-तगड़े आदमी कर रहे थे और मूँह पर गमछा बाँधे थे, जबकि मेरा भाई लम्बा व पतला था। ये सभी बातें सुनकर दोस्तों और पुलिस से काफी डर लगने लगा है। रामसिंहपुर गाँव की जनता आँखों देखी घटना की गवाही कोर्ट में देने से इंकार कर दिये। बोले, ‘अगर गाँव में पूछताछ होती है, तब पूरी घटना हमलोग बता पायेंगे।’

मेरा परिवार सीधा-साधा सामाजिक जीवन जीता आया है। परिवार पर जो लूट-पाट का केस लगा है, उससे तमाम तरह की बातें समाज में हो रही हैं, जिससे पूरा परिवार मानसिक परेशानी से उबर नहीं पा रहा है। आज भी जब पूरा परिवार एकजुट होता है, तब भाई का न होना खलता है। जब कभी भाई जैसे शरीर व शक्‍ल-सूरत वाले व्यक्ति से मिलता हूँ, तब वह बहुत याद आता है और भाई की मौत की पूरी घटना दिलो-दिमाग को झकझोर देता है।

हम शरीर से खेत में मेहनत करते थे, मेरा भाई दिमाग़ व शरीर दोनों से मेहनत करता था और खेती अच्छी होती थी। घटना के साल हम लोगों ने सोचा था कि उसकी शादी कर देंगे। लेकिन ये अनहोनी घटना घट गयी, हम अपने भाई की फोटो रखे हैं, जब हमको न्याय मिलेगा यानी पुलिस अन्याय के खिलाफ़ जंग में सफलता मिलेगी तभी हम भाई का फोटो देखेंगे तथा घर में लगायेंगे। अब हमारा तथा परिवार का प्रमुख लक्ष्य इस घटना में पुलिस के अत्याचार को समाज के सामने लाना है तथा न्याय पाना है। जो समाज के लिये उदाहरण साबित हो, पुलिस के प्रति समाज में व्याप्त भय व आतंक को समाप्त किया जा सके। इस लड़ाई से मेरे वंशज को भी सीख मिलेगी। अपनी स्व-व्यथा सुनाते समय अभी तत्काल शांति व सुकून महसूस कर रहा हूँ। आज भी कभी भाई की याद आती है तो नींद नहीं आती है।

न्याय पाने के लिए हमने कई विभागों व कार्यालयों में आवेदन दिये, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। कोर्ट में मुकदमा भी चल रहा था। फिर हमारे पिताजी ने राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली को पूरे मामला का शिकायत का आवेदन पत्र न्याय के लिए भेजा। जिस पर दिनांक 10 फरवरी, 2011 को मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ को आयोग द्वारा पाँच लाख (5,00,000/-) रुपये का मुआवजा प्रदान करने का निर्देष दिया गया है। आयोग द्वारा 17 मार्च, 2011 तक दिये गये निर्देश पर अमल नहीं किया गया है।

हमने आयोग में मुआवजे के लिए शिकायत नहीं किया था, हमें भाई की हत्या के सम्बन्ध में न्याय चाहिए। आयोग द्वारा पाँच लाख रुपये का मुआवजा प्रदान कराने की बात से यह तो साफ़ हो गया कि पुलिस ने हमारे भाई की फर्जी मुठभेड़ में हत्या की है। उन दोषी पुलिस कर्मियों पर कानूनी कार्यवाही के तहत सजा हो। आज भी पुलिसकर्मी समझौता के लिए हमारे परिवार पर दबाव बना रही है। जिससे घर से बाहर निकलने में डर लग रहा है कि हमारे साथ भी कोई अनहोनी न हो जाए। एक तरफ़ आयोग द्वारा मुआवजा प्रदान कराने की बात से इंसाफ को लेकर खुशी है, वहीं दूसरी तरफ दोषियों को सजा नहीं मिलने के कारण निराशा व डर का महौल बना हुआ है।


(उपेन्द्र कुमार और विजय भारती के साथ बातचीत पर आधरित)



डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

Tags: पुलिस उत्‍पीड़न, बनारस, रामलाल पटेल

Sunday, March 27, 2011

People’s Tribunal hears tales of SHRC apathy in the face of rights violations

Lucknow, Mar 26: An Independent People’s Tribunal was organized today to look into the functioning of State Human Rights Commission with regard to addressing human rights issues brought to their notice by a number of victims from across the state. Over 40 victims, hailing from different parts of Uttar Pradesh, deposed before a jury comprising eminent persons like former Vice Chancellor of Lucknow University Roop Rekha Verma, former police officer S K Darapuri, human rights activsit Shruti Nagvanshi, Prof Pradeep Kumar from Ruhelkhand University and human rights activist Ram Kumar. ,

The tribunal was organized by Human Rights Law Network (HRLN) in collaboration with PVCHR, DAG, Jagriti Sewa Sansthan, Prawas Society, Mahila Mandal, Shahari Garib Sangharsh Morcha, Doaba Vikas Sangharsh Samiti, Mahila Adhikar Manch, UP Gramin aur Khetidhar Majdoor Sangthan and Youth for Democracy (Chaundauli)

Senior advocate and UP Director of HRLN, M r KK Roy, introducing the tribunal, said that the SHRC was established in UP only after a prolonged struggle by the civil society organizations. He lamented the fact that despite SHRC’s presence in UP, the state was topping the list of human rights violations which related to torture by police, witch-hunting of minorities, violations of rights of daliats, tribal, women, children and those displaced by developmental projects.

HRLN Executive Director Harsh Dobhal explained the objective of such a tribunal at a time when India was projecting its image abroad as the largest democracy committed to protection of human rights. He said such tribunals would be conducted in 18 states and at national level and a comprehensive report on the functioning of these commissions would either expose them to public scrutiny or create a pressure on these institutions and government to discharge their duties effectively.

Lenin Raghuvashi of PVCHR said that SHRC rarely replied to complaints compared to NHRC still responded in many cases. He alleged that SHRC UP had become a non-functional body which remained a showpiece on the paper.

Victim after victim, narrated horror tales of torture and other violations to the jury which was intermittently seeking clarification from the victims.

The tragic testimonies of 18 year old Veera from Banda, a tale of abduction and rape, was particularly poignant. “I was abducted by people known to me and was gangraped at gunpoint at different palces for 8 days. My father kept going to police stations but no FIR was filed. My father also filed a compaing to SHRC but no action was taken. On 8th day when my father got the information that I was kept at a place, again went to police and pleaded for my release from the custody of my tormentors. When my father refused to leave the police station despite being chased out, the Circle Officer finally intervened and got me released from them. A chargesheet has since been filed but not at the intervention of SHRC.”

In yet another moving tale of gross violation of rights, Pyari Devi from Chandauli said that she was the owner of a 3.3 dcml of agriculture land and she had also made a hut on the land. “the goons of Chandauli MLA Sharda Prasad set her place ablaze and forcibly grabbed her land. I made the complaint to the SHRC and also approached various authorities but no response has been given till date. I am living in a near starvation situation under constant threat by the musclemen of the MLA.” She has no means of livelihood as the only source was a small piece of land which has been illegally usurped by a powerful politician.

http://www.mediachargesheet.com/?p=483

Sunday, March 20, 2011

Vanishing Cultures Photography: Branded witch, these women are scarred forever

Vanishing Cultures Photography: Branded witch, these women are scarred forever

पुलिस ने मेरी पिटाई क्‍यों की

http://www.sarokar.net/2011/03/1429/


इस बार लेनिन रघुवंशी पेश कर रहे हैं पुलिस यातना के शिकार हरिश्‍चन्‍द की कहानी उनकी ही जुबानी


मेरा नाम हरिश्चन्द उर्फ भोथू, उम्र-लगभग 60 वर्ष, पुत्र-स्व सालीक राम, ग्राम-भेलखा, जैतपट्टी, पोस्ट-चमाऊ (तरना शिवपुर) थाना-बड़ागाँव, जिला-वाराणसी (उ0प्र0) का निवासी हूँ।

चार-पाँच साल पहले हम भट्टा मालिक प्रदीप, भेलखा को छप्पर छाजने के लिए सामग्री दिये थे, उसी का पैसा मांगने वहाँ गये हुये थे, वे वहाँ नही थे। उस समय भट्टा पर राँची के मजदूर थे, जो अपने पीने के लिए शराब बनाते थे। हम वहां अभी पहुँचे ही थे, देखे कि सभी भाग रहे हैं। हम बोले – क्यों भाग रहे हो ? तभी उनमें से एक ने हमें पीछे देखने को बोला। हम पीछे देखे। वहाँ दरोगा (हरहुआ चौकी इंचार्ज विरेन्द्र कुमार मिश्रा) खड़ा थे। हमने सलाम किया। इस पर वे गाली बकने लगे। हम बोले – साहब हम सलाम कर रहे हैं, आपसे उम्र में बड़े भी हैं और आप मां-बहन की गाली दे

                                                            विक्टिम हरिश्‍चन्‍द

रहे हैं। इतना सुनते ही वे तथा एक सिपाही (अमर नाथ सिंह यादव) हमें डण्डा व लात-घूसों से मारने लगे, जिसमें मेरे दाये हाथ की हड्डी टूट गयी, बायीं हाथ के बीच वाली अंगूली फट गयी और बायां पैर का घुटना का कटोरी (हड्डी) ही निकल गया तथा दाया पैर का अंगूठा फट गया था। उसी हालात में हमें बड़ागाँव थाना ले आए। रात में एसएचओ के कहने पर हमारा इलाज अस्पताल में करवाया। जहां केवल इन्जेक्‍शन और मरहम-पट्टी किया गया। उसके बाद रात भर हमें बड़ागाँव थाना में बंद कर दिया। रात भर हम असहनीय पीड़ा से कराह रहे थे, चिल्ला रहे थे। कोई सुनने वाला नहीं था।

सुबह फिर जीप में बैठाया और बाईपास पर हड्डी अस्पताल – शोभनाथ अस्पताल में भर्ती करवाया। वहाँ हम एक रात और एक दिन रहे। कच्चा प्लास्टर हुआ। अस्पताल में भर्ती कराकर वे लोग चले गये। फिर हम अपने रिश्‍तेदारों के साथ एसएसपी के बंगले पर गये। वहाँ एसएसपी साहब सिपाही के साथ कबीर चौरा अस्पताल भेजे। जहं मेरा इलाज हुआ। मेडिकल रिपोर्ट बना तथा रात भर पानी चढ़ा और अगले दिन प्लास्टर हुआ। तीन बार प्लस्टर किया गया, लेकिन हालात न सुधरने पर हाथ का ऑपरेशन किया गया तथा रॉड लगाया गया है। मैं आज तक नहीं जान पाया कि पुलिस ने हमें मारा क्‍यों.

हमने मानवाधिकार जन निगरानी समिति के सहयोग से मुकदमा भी किया, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। सुबह सोकर उठने पर हाथ-पैर का हड्डी सहलाना पड़ता है, दर्द रहता है, उसके बाद उठते हैं। जमीन पर बायां पैर ज्यादा देर तक नही रख सकते, क्योंकि सुन्न जैसा होने लगता है। अभी भी सारी बातें दिमाग़ में आती रहती है। नींद नहीं आती। कभी-कभी दवा का उपयोग करना पड़ता है।

हमारे आजीविका की स्थिति भी गम्भीर है। बच्चे पढ़ाई छोड़कर गारा-मिट्टी का काम कर रहे हैं। हमारा दस हथकरघा था। लेकिन अक्षमता के कारण सभी सड़ गया। बनारसी साड़ी बिनने का काम बंद हो गया है। हम शरीर से लाचार कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हम चाहते हैं कि मेरे द्वारा दायर मुकदमे में सुनवाई हो। हमें न्याय मिले तथा मुआवजा दिया जाए, जिससे कोई रोजगार-धंधा कर सकूँ।


उपेन्द्र कुमार के साथ बातचीत पर आधरित


डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

Tuesday, March 15, 2011

Monday, March 14, 2011