Tuesday, March 29, 2011

हमारी जीत से ग़रीबों का मनोबल बढेगा : रामलाल पटेल

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इस बार लेनिन रघुवंशी पेश कर रहे हैं भर्जी मुठभेड़ में मारे गए संतोष के परिवार वालों की व्‍यथा कथा संतोष के बड़े भाषी रामलाल पटेल की जुबानी :

मेरा नाम रामलाल पटेल (उम्र-30 वर्ष), पुत्र-पंचमराम पटेल है। मैं ग्राम-पूरबपुर (अहरक), पोस्ट-रमईपट्टी, थाना-बड़ागाँव, विकासखण्ड- हरहुआं, जिला-वाराणसी का निवासी हूँ। हम पांच भाई थे। मेरा छोटा भाई संतोष पटेल (उम्र-20 वर्ष) एक सीधा-साधा लड़का था। उसके खिलाफ़ समाज में कोई ग़लत काम का उदाहरण नही़ था।


                                                                   रामलाल पटेल


 
 13 दिसम्बर, 2006 को संतोष के दोस्त मनोज यादव व बुल्लू यादव अपने घर में पार्टी पर बुलाया। संतोष इस बात का जिक्र पूरे परिवार में किया और घर से शाम पांच बजे निकला। जाने से पूर्व वह मुझसे कहा कि मुझे रात में वहाँ रूकने का मन नही हैं, उसके दोस्त जिद्द करके वहाँ रोक लिये थे। उसी रात 8.30 बजे मेरे बड़े भाई रामनरेश पटेल, जो पोस्ट ऑफिस कानपुर में कार्यरत है, उनके मोबाइल नम्बर-9451330615 पर फोन आया कि आप के भाई संतोष का दुर्घटना हो गया है। उसे प्रज्ञा अस्पताल (हरहुआं) में भर्ती कराया गया है। पड़ोस के गाँव के मोबिन खान नामक व्यक्ति द्वारा घर पर भी हमको सूचना दिया गया। इस सूचना से परिवार के लोग काफी भयभीत हो गये। उसके बाद मैं और मेरे भतीजे रामचन्द्र ( पुत्र-शारदा) ने प्रज्ञा अस्पताल जाकर पता लगाया। वहाँ के डाक्टर ने बताया कि ऐसा कोई केस मेरे यहाँ नही आया हैं। मैंने बड़े भाई को फोन करके बताया और हम दोनों भाइयों ने दोबारा उसी नम्बर पर फोन किया। वह मोबाइल बन्द था। उस समय हमको डर लग रहा था।

हम दोनों चाचा-भतीजा बाजार में खड़े होकर सोच रहे थे कि आखिर बात क्या है। उसी समय गाँव के इंस्पेक्टर सिंह जी मिले, उन्होंने मुझसे पूछा कि रात को यहाँ क्या कर रहे हो। उनसे पूरी घटना को बताया, उन्होंने अपने मोबाइल से किसी परिचीत सिपाही को फोन करके पूछा। तब सिपाही ने बताया कि हरहुआं बाजार में एक विधवा कलावती के घर में कुछ लोग लूट-पाट कर रहे थे, उसमे से एक मारा गया है और उसकी लाश पुलिस चौकी पर आ गयी है। यह सुनने के बाद तुरन्त हम लोगों ने पुलिस चौकी पर जाकर देखा तो मेरे भाई की लाश पड़ी थी। उसे देखते ही हम रोने लगे। पुलिस वाले बताये कि लूट में मारा गया है और बोले कि सुबह गाँव के प्रधान व अन्य को साथ लेकर आना तब शव को पोस्ट-मार्टम के लिए भेजा जायेगा। उस समय घबराते-रोते हम घर पहुँचे। घर के लोग काफी दुःखी बैठकर रोते-चिल्लाते रहे।

सुबह जब हम प्रधान व गाँव के लोगों के साथ चौकी पर गये तो पता चला कि भाई का शव पोस्ट-मार्टम करने उसी रात बीएचयु भेज दिया गया है। तब गाँव की जनता में आक्रोश आया और विरोध में रोड जाम कर दिया गया। उसी बीच कोलअसला के विधायक अजय राय आये और आश्‍वासन दिये कि पुलिस ने अन्याय किया है, मैं इसकी शिकायत विधान सभा में उठाऊँगा। उस समय लगा कि विधायक जी हम लोगों की मदद करेंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ और जाम तोड़वा दिये। हम और हमारे भाई बीएचयु गये तो वहाँ पर एस0ओ0 बैठा था। वहाँ से श्‍मशान घाट गये। जैसे ही लाश को जलाने के लिये अन्दर गये, उसी समय एस0ओ0 वहाँ से चला गया। जब घाट पर भाई की तस्वीर खिचवां रहे थे तब हमने देखा कि उसको काफी तकलीफ दी गयी है।

वहाँ से वापस आने पर मनोज व बुल्लू यादव के खिलाफ एफआईआर करने थाने में गये। तब एस0ओ0 महेन्द्र प्रताप यादव ने एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया। बाद में पता चला कि एस0ओ0 उनके रिश्‍तेदार हैं। पुलिस के रवैये से हम बुरी तरह से भयभीत होते गये। उसी स्थिति में न्याय की गुहार के लिये दौड़ते भी रहे। उसी बीच मानवाधिकार जन निगरानी समिति के कार्यकर्ताओं से सम्पर्क हुआ। उनसे सहयोग और साहस मिला। तब पुलिस के खिलाफ़ कोर्ट में गये और उनके खिलाफ कार्यवाही की गयी। पुलिस के दबाव के कारण हमारे गाँव व रिष्तेदारों द्वारा हमको पुलिस के खिलाफ़ लड़ने से मना किया जाने लगा। वे लोग बोलते थे कि आप अकेले हैं, पुलिस किसी की नहीं होती है, आप उनके खिलाफ कुछ मत करें। उस समय हमको भी डर लगने लगा था और सोचा कि पुलिस सीधा-साधा जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है। जिससे आज ग़रीब जनता पुलिस पर भरोसा नहीं करती है। हमने लोगों से बोला कि पुलिस ने आज जो हमारे भाई के साथ व्यवहार किया है, वह घटना हमारे दिलो-दिमाग़ में निरन्तर गूँजती रहती है। मन करता है कि हथियार उठाकर पुलिस के खिलाफ़ संर्घष करें या मर जायें। इस लड़ाई से अगर हमारी जीत हुई तो ग़रीबों का मनोबल बढ़ेगा।

उसके बाद मैंने घटना स्थल रामसिंहपुर गाँव जाकर वहां की जनता से घटना की जानकारी ली। उन लोगों ने बताया कि दिनांक 13 दिसम्बर, 2006 की शाम साढे सात बजे पुलिस एक गाड़ी में एक दोपहिया और एक आदमी जो अधमरा था लेकर आये थे। पुलिस वाले उसको गाड़ी से बाहर उठाकर फेंक दिये। गाँव वालों ने पुलिस वालो से पूछा भी था तब पुलिस वालों ने बताया कि लूट-पाट करते समय मारा गया है। इस पर जनता बोली कि अभी भी वह जिंदा है, इसे अस्पताल ले जायें, ठीक होने के बाद और अन्य लोगों का नाम बतायेगा, लेकिन पुलिसवालों ने गांववालों की बात नहीं सुनी।



                             पुलिसिया उत्‍पीड़न के शिकार व्‍यक्तियों के संघर्ष के सम्‍मान में

आज भी हमें खेत व अन्य काम करते समय भाई की याद आती है। उस समय थकान महसूस होती है। लूटपाट दो मोटे-तगड़े आदमी कर रहे थे और मूँह पर गमछा बाँधे थे, जबकि मेरा भाई लम्बा व पतला था। ये सभी बातें सुनकर दोस्तों और पुलिस से काफी डर लगने लगा है। रामसिंहपुर गाँव की जनता आँखों देखी घटना की गवाही कोर्ट में देने से इंकार कर दिये। बोले, ‘अगर गाँव में पूछताछ होती है, तब पूरी घटना हमलोग बता पायेंगे।’

मेरा परिवार सीधा-साधा सामाजिक जीवन जीता आया है। परिवार पर जो लूट-पाट का केस लगा है, उससे तमाम तरह की बातें समाज में हो रही हैं, जिससे पूरा परिवार मानसिक परेशानी से उबर नहीं पा रहा है। आज भी जब पूरा परिवार एकजुट होता है, तब भाई का न होना खलता है। जब कभी भाई जैसे शरीर व शक्‍ल-सूरत वाले व्यक्ति से मिलता हूँ, तब वह बहुत याद आता है और भाई की मौत की पूरी घटना दिलो-दिमाग को झकझोर देता है।

हम शरीर से खेत में मेहनत करते थे, मेरा भाई दिमाग़ व शरीर दोनों से मेहनत करता था और खेती अच्छी होती थी। घटना के साल हम लोगों ने सोचा था कि उसकी शादी कर देंगे। लेकिन ये अनहोनी घटना घट गयी, हम अपने भाई की फोटो रखे हैं, जब हमको न्याय मिलेगा यानी पुलिस अन्याय के खिलाफ़ जंग में सफलता मिलेगी तभी हम भाई का फोटो देखेंगे तथा घर में लगायेंगे। अब हमारा तथा परिवार का प्रमुख लक्ष्य इस घटना में पुलिस के अत्याचार को समाज के सामने लाना है तथा न्याय पाना है। जो समाज के लिये उदाहरण साबित हो, पुलिस के प्रति समाज में व्याप्त भय व आतंक को समाप्त किया जा सके। इस लड़ाई से मेरे वंशज को भी सीख मिलेगी। अपनी स्व-व्यथा सुनाते समय अभी तत्काल शांति व सुकून महसूस कर रहा हूँ। आज भी कभी भाई की याद आती है तो नींद नहीं आती है।

न्याय पाने के लिए हमने कई विभागों व कार्यालयों में आवेदन दिये, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। कोर्ट में मुकदमा भी चल रहा था। फिर हमारे पिताजी ने राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली को पूरे मामला का शिकायत का आवेदन पत्र न्याय के लिए भेजा। जिस पर दिनांक 10 फरवरी, 2011 को मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ को आयोग द्वारा पाँच लाख (5,00,000/-) रुपये का मुआवजा प्रदान करने का निर्देष दिया गया है। आयोग द्वारा 17 मार्च, 2011 तक दिये गये निर्देश पर अमल नहीं किया गया है।

हमने आयोग में मुआवजे के लिए शिकायत नहीं किया था, हमें भाई की हत्या के सम्बन्ध में न्याय चाहिए। आयोग द्वारा पाँच लाख रुपये का मुआवजा प्रदान कराने की बात से यह तो साफ़ हो गया कि पुलिस ने हमारे भाई की फर्जी मुठभेड़ में हत्या की है। उन दोषी पुलिस कर्मियों पर कानूनी कार्यवाही के तहत सजा हो। आज भी पुलिसकर्मी समझौता के लिए हमारे परिवार पर दबाव बना रही है। जिससे घर से बाहर निकलने में डर लग रहा है कि हमारे साथ भी कोई अनहोनी न हो जाए। एक तरफ़ आयोग द्वारा मुआवजा प्रदान कराने की बात से इंसाफ को लेकर खुशी है, वहीं दूसरी तरफ दोषियों को सजा नहीं मिलने के कारण निराशा व डर का महौल बना हुआ है।


(उपेन्द्र कुमार और विजय भारती के साथ बातचीत पर आधरित)



डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

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