Tuesday, April 26, 2011
Friday, April 22, 2011
सामूहिक बलात्कार दीवानजी के लिए प्रेम प्रपंच
http://www.sarokar.net/2011/04/सामूहिक-बलात्कार-दीवानज/
इस बार लेनिन की रिपोर्ट में पेश है उस प्रेमा देवी की ख़ुदबयानी जिसकी सोलह साल की बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और जब थाने वो में रपट लिखाने पहुंची तो दीवान साहब ने बलात्कार पीडिता को कहा ‘ये तो प्रेम प्रपंच का मामला है. देख नहीं रहे हो, कैसा कपड़ा पहनी है। काहे अपने माँ-बाप को परेशान करती हो। बता दो कि तुमसे गलती हो गयी है, तुम अपनी मर्जी से गयी थी’.
प्रेमा देवी
मैं प्रेमा देवी, पत्नी-लालमणि भारद्वाज, ग्राम-असवारी, पोस्ट-कुआर बाजार, ब्लॉक-बड़ागाँव, थाना-फूलपुर, तहसील-पिण्डरा, जिला-वाराणसी (उ0प्र0) की रहने वाली हूँ। मेरी उम्र-55 वर्ष है। हमारे दो लड़की और एक लड़का है। पति मुम्बई में काम करते हैं। बेटा भी उन्हीं के साथ काम करता है। मैं अपने दोनों लड़कियों के साथ अपने घर पर रहती हूँ. बड़ी लड़की संजू 25 साल की है. उसकी शादी हो चुकी है, आती-जाती रहती है. छोटी नीलम 16 साल की है और शाहजहाँ गर्ल्स इण्टर कालेज कुआर में कक्षा दसवीं में पढ़ती थी। गाँव में लड़के-लड़कियों के ग़लत सम्बन्धों के बारे में सुन कर नीलम का विवाह मैं जल्दी करना चाहती थी।
16 सितम्बर, 2010 को नीलम की शादी के लिए रिश्ता वाले आए. हमारी लड़की नीलम उन्हें पसन्द आ गयी। उन्होंने हमारी लड़की को पाँच सौ एक रुपये तथा साथ में मिठाईयाँ भी दिये। इसके बाद शाम लगभग चार बजे तक वापस अपने घर चले गये।
उसी दिन शाम के लगभग सात बजे हमारी बेटी नीलम शौच के लिए पड़ोस की एक लड़की के साथ जाने लगी। तब मैंने नीलम से कहा कि लौटते वक़्त रोड की दुकान से एक माचिस लेते आना और जल्दी आना। पर घंटा बीत जाने पर भी नीलम नहीं आयी। मैं चिंतित हो रही थी। अपनी बड़ी संजू से मैंने कहा कि देखो अभी तक नीलम नही आयी। संजू ने कहा कि हो सकता है कि वो अपनी सहेली के घर चली गयी होगी। कुछ समय और बीत गया। इस बार मैंने संजू से कुछ नहीं कहा क्योंकि उसके पेट में 5 माह का गर्भ था। मैं स्वंय नीलम को खोजने रोड की तरफ़ निकल पड़ी। वहाँ न मिलने पर मैं उसकी सहेली के घर गयी। वहाँ भी नीलम नहीं मिली। मेरी चिन्ता बढने लगी। तब तक पता चला कि नीलम को मोटर साईकिल पर सवार दो लोगों ने दबोचकर जबरदस्ती मुँह दबाकर उठा ले गये। यह सुनते ही सड़क के बीचोंबीच मैं गश के कारण गिर पड़ी। मेरा माथा फट गया। तब तक चार पाँच लोग आ गये। फिर मैं एकाएक उठी, सबके पैर पकड़ने लगी कि जरा देखें कि मेरी बेटी को कौन उठाकर ले गया, किधर उठा कर ले गया। उस समय सावन-भादो का घनघोर अंधेरा था।
मैं पगली की तरह सड़क पर इधर-उधर दौड़-दौड़ कर नीलम को खोजने लगी। लेकिन हमारी बेटी का पता नही चला। मैं भागकर अपने घर आयी। आस-पड़ोस के ताना-मेहना के डर से रो भी नहीं पा रही थी। अपने घर में ही सर पटक-पटक कर भगवान का पूजा करने लगी। कुछ-कुछ देर में घर से बाहर, अगल-ब़गल, इधर-उधर घूम-घूम कर ढूंढती रही कि कहीं हमारी बेटी नीलम मिल जाये। जब कहीं नही मिली तब हमें लगा कि हमारा हार्ट अटैक हो जायेगा।
घर में कोई आदमी नहीं था नीलम को कहीं ढूँढे या पता करे। मैं अपने कलेजे पर पत्थर रख कर घर में बैठ गयी। आँख से आँसू तो गिर रहे थे मगर मुँह से आवाज़ नही़ आ रही थी। जब-जब कुत्ता भौंकता या खड़खड़ाहट की आवाज़ आती थी तो मैं अपना जंगला खोल लेती थी, बाहर निकल कर ढूंढने लगती थी।
घनघोर अंधेरी रात में कुछ भी दिखाई नहीं देता था। फिर जंगला उसी प्रकार खोल कर बैठी रहती थी। दर्द से मेरा सिर फटा जा रहा था। उस समय तक हमारे सिर से खून टपकता रहा था। बैठे-बैठे भोर के लगभग तीन बज गये। तभी ज़ोर से मेरा जंगला खड़खड़ाया और धड़ाम से गिरा। मैं दौड़कर बाहर निकली। जमीन पर टटोलने लगी। हमारे हाथों से एक शरीर टकरायी, वह नीलम थी। मैं अपने हाथों से उसके बदन व कपड़ो को टटोलने लगी। हमें लगा कि कोई उसे चाकू मारकर फेंक दिया। उसके दोनों हाथों को पकड़कर जमीन से घसीटते हुए घर के अन्दर ले गयी। उसका सिर हिला-डुला कर देखने लगी। नीलम एक दम बेहोशी की हालत में पानी में लथपथ थी। संजू और मैंने उसके कपड़े बदले। फिर रजाई और कम्बल से उसे पूरी तरह ढक दिया। कुछ देर बाद नीलम ने कराहना शुरू कर दिया। हमलोगों ने उससे पूछा कि तुम्हारे साथ क्या हुआ, बताओ। डरो मत, जो हुआ साफ-साफ बताओ।
नीलम कुछ नहीं बोली। फिर भी मैं लगातार प्रयास करती रही कि नीलम कुछ बोले कि कौन-कौन उठाकर ले गये थे, कहाँ ले गये थे। मगर भय से वो कुछ नहीं बोली। इसके बाद अहिरानी गाँव के सुरेश से मंगला जी को सुबह अपने घर बुलवायी। उनके आने पर नीलम से हम लोगों ने घुमा फिरा कर कुछ सवाल पूछे। तब नीलम ने बताया कि छोटेलाल पटेल और एक अन्य आदमी मुझे जबरदस्ती उठाकर ले गये और हमारा रेप किया। किसी तरह से मैं अपना जान बचा कर वहाँ से भागी। और फिर उसकी आँखों से झर-झर आंसू बहने लगे। हम सब भी रोने लगे।
इसके बाद मैं और मेरी बेटी नीलम थाना-फूलपुर में एफ0आई0आर0 कराने गयी। थाना-फूलपुर में मुंशी (दीवान) हमें समझाने लगा कि एफ0आई0आर0 मत कराओ नहीं तो इसका विवाह-शादी कहाँ होगा और इससे कौन शादी करेगा। तब तक दूसरा मुंशी (दीवान) कहने लगा, ‘यह अपनी मर्जी से भाग गयी थी। इसका रेप नहीं हुआ है। यह प्रेम-प्रपंच का मामला है। देख नहीं रहे हो, कैसा कपड़ा पहनी है। काहे अपने माँ-बाप को परेशान करती हो। बता दो कि तुमसे गलती हो गयी है, तुम अपनी मर्जी से गयी थी।‘ उसकी बातों को सुनकर हमारी बेटी फिर रोने लगी। तब दूसरे दीवान ने कहा, ‘देखो कैसे नखड़ा कर रही है।’ इसके बाद थाने के एस0आई0 आये और कठिराँव चौकी के अंतर्गत असवारी गाँव में जाने के लिए चौकी इंचार्ज बाल गोविन्द मिश्र को उन्होंने वायरलेस से सूचना दी।
चौकी इंचार्ज असवारी गाँव गये। छानबीन की और बताया किया कि लड़की के साथ रेप नहीं हुआ है, इसके साथ छेड़छाड़ हुआ है। तब छेड़छाड़ का मुकदमा पंजीकृत कराये और उसक मेडिकल बनाने हेतु पी0एच0सी0 पिण्डरा होमगार्ड के साथ भेज दिये। वहाँ महिला डॉ. न होने के कारण मेडिकल नहीं हो सका। फिर जिला चिकित्सालय में मेडिकल हुआ। इसके बाद मैं नीलम के साथ वापस गाँव गयी। गाँव का कोई भी व्यक्ति मिलता था तब उससे पूरी तरह नज़र नहीं मिला पाती थी।
अब भी कैप्शन ज़रूरी है? स्रोत: predslavice.cz
पड़ोस के लोग नीलम को ताना मारने लगे। हमारी बेटी नीलम हमसे आकर सारी बातें बताती है। लेकिन छोटेलाल पटेल की गिरफ्तारी का भय सबको बनने लगा है। नीलम के साथ जहाँ रेप हुआ, उधर मेरा खेत पड़ता है। जब-जब अपने खेत की तरफ़ जाती हूँ, हमें अपनी बेटी की दर्दनाक बातें सोच कर सब कुछ याद आ जाता है। उस समय हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता है और चक्कर आने लगता है। अपनी पीड़ा बता कर मेरी आँखो से आँसू गिरने लगते हैं। पर आपसे अपनी तकलीफ बांटकर कुछ हल्का महसूस कर रही हूं। बस यही सोचती रहती हूँ कि हमारे साथ जो घिनौना और अमानवीय कृत्य हुआ है, उसकी भरपायी कैसे हो पायेगी? कैसे न्याय मिल पाएगा मेरी बेटी को अब कैसे सब कुछ सामान्य हो जाएगा? हालांकि मैंने न्याय की उम्मीद छोड़ी नहीं है।
विशेष सहायोग: मंगला प्रसाद
डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है. Tags: बनारस, बलात्कार, महिला उत्पीड़न, मानवाधिकार, लेनिन
इस बार लेनिन की रिपोर्ट में पेश है उस प्रेमा देवी की ख़ुदबयानी जिसकी सोलह साल की बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और जब थाने वो में रपट लिखाने पहुंची तो दीवान साहब ने बलात्कार पीडिता को कहा ‘ये तो प्रेम प्रपंच का मामला है. देख नहीं रहे हो, कैसा कपड़ा पहनी है। काहे अपने माँ-बाप को परेशान करती हो। बता दो कि तुमसे गलती हो गयी है, तुम अपनी मर्जी से गयी थी’.
मैं प्रेमा देवी, पत्नी-लालमणि भारद्वाज, ग्राम-असवारी, पोस्ट-कुआर बाजार, ब्लॉक-बड़ागाँव, थाना-फूलपुर, तहसील-पिण्डरा, जिला-वाराणसी (उ0प्र0) की रहने वाली हूँ। मेरी उम्र-55 वर्ष है। हमारे दो लड़की और एक लड़का है। पति मुम्बई में काम करते हैं। बेटा भी उन्हीं के साथ काम करता है। मैं अपने दोनों लड़कियों के साथ अपने घर पर रहती हूँ. बड़ी लड़की संजू 25 साल की है. उसकी शादी हो चुकी है, आती-जाती रहती है. छोटी नीलम 16 साल की है और शाहजहाँ गर्ल्स इण्टर कालेज कुआर में कक्षा दसवीं में पढ़ती थी। गाँव में लड़के-लड़कियों के ग़लत सम्बन्धों के बारे में सुन कर नीलम का विवाह मैं जल्दी करना चाहती थी।
16 सितम्बर, 2010 को नीलम की शादी के लिए रिश्ता वाले आए. हमारी लड़की नीलम उन्हें पसन्द आ गयी। उन्होंने हमारी लड़की को पाँच सौ एक रुपये तथा साथ में मिठाईयाँ भी दिये। इसके बाद शाम लगभग चार बजे तक वापस अपने घर चले गये।
उसी दिन शाम के लगभग सात बजे हमारी बेटी नीलम शौच के लिए पड़ोस की एक लड़की के साथ जाने लगी। तब मैंने नीलम से कहा कि लौटते वक़्त रोड की दुकान से एक माचिस लेते आना और जल्दी आना। पर घंटा बीत जाने पर भी नीलम नहीं आयी। मैं चिंतित हो रही थी। अपनी बड़ी संजू से मैंने कहा कि देखो अभी तक नीलम नही आयी। संजू ने कहा कि हो सकता है कि वो अपनी सहेली के घर चली गयी होगी। कुछ समय और बीत गया। इस बार मैंने संजू से कुछ नहीं कहा क्योंकि उसके पेट में 5 माह का गर्भ था। मैं स्वंय नीलम को खोजने रोड की तरफ़ निकल पड़ी। वहाँ न मिलने पर मैं उसकी सहेली के घर गयी। वहाँ भी नीलम नहीं मिली। मेरी चिन्ता बढने लगी। तब तक पता चला कि नीलम को मोटर साईकिल पर सवार दो लोगों ने दबोचकर जबरदस्ती मुँह दबाकर उठा ले गये। यह सुनते ही सड़क के बीचोंबीच मैं गश के कारण गिर पड़ी। मेरा माथा फट गया। तब तक चार पाँच लोग आ गये। फिर मैं एकाएक उठी, सबके पैर पकड़ने लगी कि जरा देखें कि मेरी बेटी को कौन उठाकर ले गया, किधर उठा कर ले गया। उस समय सावन-भादो का घनघोर अंधेरा था।
मैं पगली की तरह सड़क पर इधर-उधर दौड़-दौड़ कर नीलम को खोजने लगी। लेकिन हमारी बेटी का पता नही चला। मैं भागकर अपने घर आयी। आस-पड़ोस के ताना-मेहना के डर से रो भी नहीं पा रही थी। अपने घर में ही सर पटक-पटक कर भगवान का पूजा करने लगी। कुछ-कुछ देर में घर से बाहर, अगल-ब़गल, इधर-उधर घूम-घूम कर ढूंढती रही कि कहीं हमारी बेटी नीलम मिल जाये। जब कहीं नही मिली तब हमें लगा कि हमारा हार्ट अटैक हो जायेगा।
घर में कोई आदमी नहीं था नीलम को कहीं ढूँढे या पता करे। मैं अपने कलेजे पर पत्थर रख कर घर में बैठ गयी। आँख से आँसू तो गिर रहे थे मगर मुँह से आवाज़ नही़ आ रही थी। जब-जब कुत्ता भौंकता या खड़खड़ाहट की आवाज़ आती थी तो मैं अपना जंगला खोल लेती थी, बाहर निकल कर ढूंढने लगती थी।
घनघोर अंधेरी रात में कुछ भी दिखाई नहीं देता था। फिर जंगला उसी प्रकार खोल कर बैठी रहती थी। दर्द से मेरा सिर फटा जा रहा था। उस समय तक हमारे सिर से खून टपकता रहा था। बैठे-बैठे भोर के लगभग तीन बज गये। तभी ज़ोर से मेरा जंगला खड़खड़ाया और धड़ाम से गिरा। मैं दौड़कर बाहर निकली। जमीन पर टटोलने लगी। हमारे हाथों से एक शरीर टकरायी, वह नीलम थी। मैं अपने हाथों से उसके बदन व कपड़ो को टटोलने लगी। हमें लगा कि कोई उसे चाकू मारकर फेंक दिया। उसके दोनों हाथों को पकड़कर जमीन से घसीटते हुए घर के अन्दर ले गयी। उसका सिर हिला-डुला कर देखने लगी। नीलम एक दम बेहोशी की हालत में पानी में लथपथ थी। संजू और मैंने उसके कपड़े बदले। फिर रजाई और कम्बल से उसे पूरी तरह ढक दिया। कुछ देर बाद नीलम ने कराहना शुरू कर दिया। हमलोगों ने उससे पूछा कि तुम्हारे साथ क्या हुआ, बताओ। डरो मत, जो हुआ साफ-साफ बताओ।
नीलम कुछ नहीं बोली। फिर भी मैं लगातार प्रयास करती रही कि नीलम कुछ बोले कि कौन-कौन उठाकर ले गये थे, कहाँ ले गये थे। मगर भय से वो कुछ नहीं बोली। इसके बाद अहिरानी गाँव के सुरेश से मंगला जी को सुबह अपने घर बुलवायी। उनके आने पर नीलम से हम लोगों ने घुमा फिरा कर कुछ सवाल पूछे। तब नीलम ने बताया कि छोटेलाल पटेल और एक अन्य आदमी मुझे जबरदस्ती उठाकर ले गये और हमारा रेप किया। किसी तरह से मैं अपना जान बचा कर वहाँ से भागी। और फिर उसकी आँखों से झर-झर आंसू बहने लगे। हम सब भी रोने लगे।
इसके बाद मैं और मेरी बेटी नीलम थाना-फूलपुर में एफ0आई0आर0 कराने गयी। थाना-फूलपुर में मुंशी (दीवान) हमें समझाने लगा कि एफ0आई0आर0 मत कराओ नहीं तो इसका विवाह-शादी कहाँ होगा और इससे कौन शादी करेगा। तब तक दूसरा मुंशी (दीवान) कहने लगा, ‘यह अपनी मर्जी से भाग गयी थी। इसका रेप नहीं हुआ है। यह प्रेम-प्रपंच का मामला है। देख नहीं रहे हो, कैसा कपड़ा पहनी है। काहे अपने माँ-बाप को परेशान करती हो। बता दो कि तुमसे गलती हो गयी है, तुम अपनी मर्जी से गयी थी।‘ उसकी बातों को सुनकर हमारी बेटी फिर रोने लगी। तब दूसरे दीवान ने कहा, ‘देखो कैसे नखड़ा कर रही है।’ इसके बाद थाने के एस0आई0 आये और कठिराँव चौकी के अंतर्गत असवारी गाँव में जाने के लिए चौकी इंचार्ज बाल गोविन्द मिश्र को उन्होंने वायरलेस से सूचना दी।
चौकी इंचार्ज असवारी गाँव गये। छानबीन की और बताया किया कि लड़की के साथ रेप नहीं हुआ है, इसके साथ छेड़छाड़ हुआ है। तब छेड़छाड़ का मुकदमा पंजीकृत कराये और उसक मेडिकल बनाने हेतु पी0एच0सी0 पिण्डरा होमगार्ड के साथ भेज दिये। वहाँ महिला डॉ. न होने के कारण मेडिकल नहीं हो सका। फिर जिला चिकित्सालय में मेडिकल हुआ। इसके बाद मैं नीलम के साथ वापस गाँव गयी। गाँव का कोई भी व्यक्ति मिलता था तब उससे पूरी तरह नज़र नहीं मिला पाती थी।
अब भी कैप्शन ज़रूरी है? स्रोत: predslavice.cz
पड़ोस के लोग नीलम को ताना मारने लगे। हमारी बेटी नीलम हमसे आकर सारी बातें बताती है। लेकिन छोटेलाल पटेल की गिरफ्तारी का भय सबको बनने लगा है। नीलम के साथ जहाँ रेप हुआ, उधर मेरा खेत पड़ता है। जब-जब अपने खेत की तरफ़ जाती हूँ, हमें अपनी बेटी की दर्दनाक बातें सोच कर सब कुछ याद आ जाता है। उस समय हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता है और चक्कर आने लगता है। अपनी पीड़ा बता कर मेरी आँखो से आँसू गिरने लगते हैं। पर आपसे अपनी तकलीफ बांटकर कुछ हल्का महसूस कर रही हूं। बस यही सोचती रहती हूँ कि हमारे साथ जो घिनौना और अमानवीय कृत्य हुआ है, उसकी भरपायी कैसे हो पायेगी? कैसे न्याय मिल पाएगा मेरी बेटी को अब कैसे सब कुछ सामान्य हो जाएगा? हालांकि मैंने न्याय की उम्मीद छोड़ी नहीं है।
विशेष सहायोग: मंगला प्रसाद
डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है. Tags: बनारस, बलात्कार, महिला उत्पीड़न, मानवाधिकार, लेनिन
Thursday, April 14, 2011
सरोकार की जनपत्रकारिता मुहिम: बनारस में कार्यशाला
विगत 9-10 अप्रैल को विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न के शिकार मेहनतकश ग़रीबों, दलितों और वंचितों की आवाज़ को व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचाने एंव उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रतिबद्ध ‘मानवाधिकार जन निगरानी समिति (पीवीसीएचआर)’ की ओर से दो दिवसीय सामुदायिक मीडिया कार्यशाला का आयोजन गया। बनारस स्थित पीवीसीएचआर कार्यालय में संपन्न हुए इस कार्यशाला में ‘छुट्टी हुई आवाज़ों का पैरोकार : सरोकार’ के श्री राकेश कुमार सिंह मुख्य फेसिलिटेटर/प्रशिक्षक रहे।
पहला दिन / पहला सत्र
कार्यशाला की ज़रूरत और अहमियत पर चर्चा करते डॉ. लेनिन कार्यशाला की शुरुआत में ‘मानवाधिकार जन निगरानी समिति’कार्यकारी निदेशक डॉ. लेनिन ने प्रशिक्षक राकेश सिंह एंव प्रशिक्षणाथियों का स्वागत करते हुए कार्यशाला के उद्देश्य के बारे में पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पीडि़त को न्याय दिलाने एंव प्रताड़ना मुक्त समाज के निर्माण करने हेतु दस्तावेजीकरण अति आवश्यक है। राकेश के सहयोग एंव मार्गदर्शन से दो दिवसीय कार्यशाला से हमे टेस्टीमनी, कहानी लेखन आदि लेखन को कई विधा की जानकारी मिलेगी जिससे हमारा दस्तावेजीकरण और भी मजबूत होगा। इसके पश्चात् सभी प्रशिक्षणथियों ने अपना परिचय दिया। पीवीसीएचआर की प्रबंध समिति की सदस्या सुश्री श्रुति नागवंशी ने कहा कि श्री राकेश के सहयोग से हमारा दस्तावेजीकरण और भी अधिक प्रभावशाली एवं जीवंत होगा।
कार्यशाला आरंभ करते हुए श्री राकेश ने कहा कि आमतौर पर दस्तावेजीकरण करते समय हम जो भाषा का प्रयोग करते हैं जो बोलचाल में नहीं करते। इसके चलते हमारे दस्तावेज़ों की रोचकता कम हो जाती है। नीरस लगने लगता है। टेस्टिमी (ख़दबयानी) दर्ज करते समय हमें पीडितों के शब्दों को पर्याप्त स्थान और इज्जत देनी चाहिए। उन्होंने ख़दबयानी दर्ज करते समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखने का सुझाव दिया :
मुमकिन हो तो पहली मुलाक़ात में उनसे उत्पीड़न की चर्चा न छेड़ें, यह काम दूसरी या तीसरी मुलाक़ातों में हो सकता है.
पीडि़त के टोले, मोहल्ले, गांव समाज एवं उसकी भौगोलिक, सामाजिक व राजनैतिक परिस्थतियों को ध्यान में रखें
टेस्टीमनी के उद्दश्यों के प्रति स्पष्ट रहें, यानी पीडित के प्रति अपनी पक्षधरता रखते हुए अपने लेखन में अपनी ओर से कोई जमा-घटा न करें
सामूहिक बैठक में लेखन स्मृति और छोटे-छोटे संकेतों के आधार पर करें। इन पर विस्तृत रिर्पोट उसी दिन बनाये अन्यथा कई ज़रूरी तथ्य छूट सकते है
इसके बाद डायरी लेखन पर चर्चा की गयी। श्री राकेश ने डायरी के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की और ये बताया कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं ओर संगठनों के लिए डायरी एक बेहद प्रभावी औजार साबित हो सकता है।
साक्षात्कार के बारे में राकेश ने बताया कि जिस व्यक्ति का साक्षात्कार हम लेने जा रहे हैं उसके संबंध में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर लेना हमेशा लाभदायक रहता है। यह हमें सवालों को फ्रेम करने में मददगार साबित हो सकता है। डॉ. लेनिन ने बताया कि साक्षात्कार लेने वाले को यह पता होना चाहिए कि वह किन बातों पर सामने वाले की राय लेना चाहते हैं।
ह्युमन स्टोरी के बारे में बात करते हुए श्री राकेश ने बताया कि यह हमारे काम में बेहद मददगार साबित हो सकता है। इससे हम व्यापक जनसमुदाय के साथ संबंध स्थापित कर सकते हैं और पीडितों के प्रति उन्हें संवेदनशील कर सकते हैं। बस ध्यान रहे कि इसे लिखते वक्त हम जबरन अपनी भाषा को हावी न होने दें। बेहतर होगा कि यहां भी आम बोलचाल की भाषा और बोलियों को पर्याप्त स्थान और इज्जत दिया जाए।
चर्चा सत्रइस सत्र में रिपोर्ट, फीचर, संस्मरण, सारांश तथा उद्धरण लेखन, इनकी अहमियत इत्यादि पर भी विस्तार से चर्चा की गयी। समय, स्थान, माध्यम और जरूरत के मुताबिक हम इन विधाओं का उपयोग कर सकते हैं।
सत्र के आखिर में अनुवाद और ट्रांस्क्रिप्शन पर भी बातचीत की गयी। अनुवाद करते वक्त कई मर्तबा हम जबरदस्ती ऐसी हिंदी का इस्तेमाल कर बैठते हैं जो केवल ओर केवल डिक्शनरी में दर्ज होते हैं और जिनका आम तौर पर कभी उपयोग भी नहीं होता है। इसलिए हमें ऐसे शब्दों ओर उनके इस्तेमाल से बचाना चाहिए। आम बोलचाल में प्रयोग में आने वाले शब्दों बेशक वे अंग्रेजी के ही क्यों न हो, अनुवाद को असरदार और उपयोगी बनाता है।
दूसरा सत्र
इस सत्र में फोटोग्राफी और विडियो के महत्त्व और उसके तकनीकी पक्ष पर विस्तार से आदान प्रदान किया गया। इस डिजिटल तकनीकी के दौर में फोटो और छोटी-छोटी फिल्में कई बार लंबे-चौडे़ आलेखों से बड़ा काम कर जाते हैं। लिहाज़ा, मीडिया के इन फॉर्म्स के बारे में भी हमें सहज और उदार होने की जरूरत है।
इसके बाद अभ्यास का सत्र चला, जिसमें प्रशिक्षणार्थियों ने विभिन्न विधाओं में लेखन किया जिन पर बाद में सामूहिक रूप से चर्चा हुई। प्रशिक्षणार्थियों ने एक दूसरे के लिखे को पढ कर सुनाया और फिर अपने सुझाव दिए।
कार्यशाला के दूसरे दिन की शुरुआत में सुश्री श्रुति नागवंशी ने कार्यशाला के प्रथम दिवस की सम्पूर्ण कार्यवाही का सार संकलन पेश किया। सत्र के प्रारम्भ में प्रशिक्षणर्थियों द्वारा पहले दिन के अन्तिम सत्र में अभ्यास के दौरान लिखे गये- नोट, फीचर, साक्षात्कार आदि की प्रस्तुति की गयी। इस प्रक्रिया में प्रशिक्षणर्थियों ने दूसरों का लिखा सुनाया। जिस पर प्रशिक्षाणर्थियों एवं प्रशिक्षक ने अपने फीडबैक दिये। राकेश ने कुछ संस्मरणों और डायरियों के माध्यम से लेखन कला और अभिव्यक्ति में भाषा और शब्दों की अहमियत को बड़े ही रोचक अंदाज़ में समझाया।
सत्र के दूसरे और अंतिम चरण में न्यू मीडिया तकनीकी और खास कर हिंदी कंप्युटिंग पर श्री राकेश ने सजह ढंग में बातचीत की। ऑनलाइन हिंदी लेखन के लिए उपयोगी टूल्स और उनके उपयोग वाला ये सत्र बेहद लाभदायक रहा। अंत में सहभागियों ने कार्यशाला के अपने अनुभवों को साझा किया। अपने हिदी कंप्युटिंग पर चर्चा के दौरान श्रुति नागवंशी और राकेश समापन वक्त्व्य में सरोकार के श्री राकेश ने कहा कि देश की बहुसंख्य आबादी की रोज़मर्रा, उनके मसले ओर उनके संघर्षों पर पर मीडिया के बड़े दायरे में व्याप्त खामोशी किसी से छुपी नहीं है। जनपक्षधर पत्रकारिता का दावा करने वाले संस्थानों के रुख भी समय-समय पर स्पष्ट होते रहते हैं। ऐसे में सरेाकर जैसी छोटी सी पहल की जिम्मेदारी बढ जाती है। वैसे भी सरोकार का यह मानना है कि हमें अपनी मदद खु़द ही करनी होगी। इन्हीं ज़रूरतों ओर जिम्मेदारियों का एहसास करते हुए सरोकार ने साल कि अंत तक मीडिया कार्यर्ताओं की एक प्रभावी टोली खड़ा करने की मुहिम शुरू की है। बनारस का यह वर्कशॉप उस कड़ी की शुरुआत है।
इस दो दिवसीय कार्यशाला का औपचारिक समापन करते हुए डॉ. लेनिन ने सरोकार और राकेश के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया और कहा कि इस कार्यशाला से पीवीसीएचआर की टीम निश्चित रूप से बेहतर ढंग से काम कर पाएगी। उनहोंने कहा कि विभिन्न प्रकार के अत्याचार और ज़ोर-जुल्म के शिकर लोगों को न्याय दिलाने में टेस्टिमनी एक महत्त्वपूर्ण औज़ार की तरह उपयोग में आते हैं इसलिए टेस्टिमनी का असरदार होना बेहद ज़रूरी है। यह वर्कशॉप उस लिहाज़ के उपयोगी रहा है। उन्होंने कार्यशाला के सहभागियों के प्रति भी धन्यवाद व्यक्ति किया। कार्यशाला में सुश्री श्रुति नागवंशी, शिरीन शबाना खान, उपेन्द्र, अनुप, सत्यप्रकाश, रोहित, विजय, और मृत्युंजय ने भागीदारी की।
मृत्युंजय सामाजिक कार्यकर्ता हैं और फिलवक्त बनारस में रह कर मानवाधिकारों के मसले पर काम कर रहे हैं. इनसे mreetyunjay@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता
Saturday, April 9, 2011
पुलिसिया जुल्म से लड़ा और जीता रामलाल
http://www.sarokar.net/2011/04/पुलिसिया-जुल्म-से-लड़ा-औ/
इस मर्तबा लेनिन ने पुलिसिया जुल्म के शिकार उस रामलाल की कहानी भेजी है जिसने हार नहीं मानी. प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों से लेकर, मुख्यमंत्री, राज्य मानवाधिकार आयोग और दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक; अपने साथ हुए ज़ोर-जुल्म की शिकायत लेकर गए रामलाल. आखिरकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप से उनके साथ ज़्यादती करने वाले पुलिसकर्मियों पर क़ानून कार्रवाई शुरू हो पायी और रामलाल को मुआवज़ा भी मिल सका. सच है कि मुआवज़े से पीड़ा की भरवाई तो नहीं हो सकती लेकिन इसका प्रतीकात्मक अर्थ तो है ही. और संघर्ष अभी जारी है.
रामलाल, पुत्र - श्री छेदी बिंद, गाँव – सागर सेमर, पोस्ट – हिनौती, थाना – पडरी, जिला-मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। 2 मई 2009 को रात लगभग 10 बजे थाना-चुनार (मिर्जापुर) के पुलिसकर्मी जबरदस्ती इन्हें अपने गाड़ी में बिठा ले गए। उसी रात लगभग 11.00 बजे इनके घर में तोड़फोड़ किया गया, बक्से में पड़े 7,000/- रुपये (जो उधार लिया गया था), 5 साड़ी, 1/2 किलो चाँदी की हंसुली, पायल, चाँदी की सिकड़ी तथा उनके लड़का का चाँदी की हाथ का बल्ला उठा लाये। उस रात 2 बजे इन्हें हवालात में बन्द कर दिया गया। कुछ समय बाद 2 सिपाही आकर हथकड़ी लगाकर रात में जीप में बिठाकर दरोगाजी श्री सुर्दशन के निवास स्थान पर ले गये। वहां से ये लोग डगमगपुर स्थित एक सुनसान क्षेत्र में एक फैक्ट्री के पास ले गए और वहाँ इनको डराते व धमकाते हुए दोष कबुलवाने की कोशिश करने लगे। उस समय राम लाल का पूरा शरीर पसीना से लथपथ हो गया। डर था कि कहीं मारकर फेंक न दिया जाय। आज भी वे उस दिन को याद करके सिहर उठते हैं। डराने-धमकाने के आधा घण्टा बाद पुलिस वाले इन्हें बिहारी ढाबा पर ले गये, जहाँ पुलिसकर्मी अपने लिये चाय और इन्हें कांच की गिलास में शराब दी पीने के लिए। इन्होंने कभी शराब नहीं पी थी। मना करने पर एक सिपाही आया और गाली देते हुए मारने लगा। दूसरा सिपाही जबरदस्ती मुँह में लगाकर दो गिलास शराब पिला दिया। उस समय स्थिति जैसे मरने की हो गयी थी और उसी स्थिति में अन्य 12 लोगों के घर में छापेमारी की गयी।
अगले रोज़ 30 मई, 2009 को लगभग 12 बजे दरोगाजी ने इन्हें दफ़्तर में बुलवाया, इनकी दायी हथेली पर कुर्सी रखकर बैठ गये और कड़क कर इनसे पूछा, ‘बताओ डकैती का सामान कहाँ है? कौन-कौन से लोग इसमें शामिल हैं?’ हथेली में सदा तब जो दर्द उठा वो आज तक बरकरार है। इतने से भी जी नहीं भरा तब सिपाहियों को बुलाकर इन्हें कम्पाउन्ड में भेजा, जहाँ इनकी डण्डे से जमकर इनकी पिटाई की गयी। सिर छोड़ कर इनके पूरे शरीर पर आगे-पीछे से डंडे बरसाए गये। इनके दायीं हाथ के अँगूठे में चोट आयी, जो कई महीनों तक सूजा रहा। बुरी तरह मारपीट करने के बाद इन्हें हवालात में डाल दिया गया। दिन भर खाना नहीं दिया गया। उसी दिन लगभग ड़ेढ बजे रात में दारोगाजी ने फिर उनको अपने आवास पर बुलवाया तथा कड़क कर पूछताछ की। यहाँ तक दबाव बनाया कि ये झूठ या सच कुछ भी बक दें। वहां लगभग डेढ़ घण्टे तक इन्हें रखा गया और उसके बाद सिपाही थप्पड़ व डण्डा मारते हुए थाना ले गये। हवालात में डालने से पहले फिर से डण्डे से इनकी पिटाई की गयी। जब पीड़ा सहन न हो पाया तो ये बेसुध होकर ज़मीन पर गिर गए। बिना कुछ खाये-पिए 15 कैदियों के साथ रात भर हवालात में बन्द रहे।
अगले दिन 31 मई, 2009 को दारोगाजी ने इन्हें फिर बुलवाया तथा थाना परिसर में रखे पत्थर पर बैठने को कहा। वहाँ दो बार इन्हें बिजली का करेंट दिया गया। इनका कण्ठ सुख रहा था लेकिन मांगने पर भी पानी नहीं दिया गया। तीसरी बार फिर करेंट दिया गया। जिससे ये बेहोश हो गये। पाँच दिनों तक बेहोशी में ही रहे। कुछ दिनों तक इन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा था और ये परेशान रहने लगे। सप्ताह भर अस्पताल में रह कर घर आये। पुलिस वालों की मनबढ़ी और और उनका जुल्म थमा नहीं था। इनको छोड़ने के एवज़ में उन्होंने इनके ससुर श्री लक्ष्मण व भाई जीतू से 13,000/- रुपये लिये। घर से उठाये गये सामानों में हसुली, पायल और बल्ला अब तक नहीं मिला है।
रामलाल 25 मई, 2009 को मानवाधिकार जननिगरानी समिति वाराणसी के कार्यालय में पुलिसिया यातना और शोषण के खिलाफ मदद के लिए आ रहे थे तो रास्ते में पुलिस की वर्दी को देखकर सहम गये। कार्यालय में भी अपनी बात बताने से डर रहे थे। काफ़ी देर के बाद वे अपनी कहानी बता पाए वो भी बहुत मुश्किल से। बताया कि ‘अपनी कहानी कहने व सुनाने के बाद डर पैदा होता है। बाहर जाने से डर लगता है। अकेले इलाज के लिये भी बाहर नहीं जाता हूँ।’
इनकी स्थिति को देखते हुए इन्हें पीवीसीएचआर के कार्यालय में टेस्टिमोनियल थेरेपी दी गयी। जिसे इन्हें मनोवैज्ञानिक संबल मिला और फिर उन्होंने कहा, ‘दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही हो, वे सीख लें कि किसी भी इंसान के साथ नाजायज़, ग़ैरक़नूनी और अमानवीय व्यवहार वे न करें। ऐसा करने पर उन्हें भी दण्ड मिले।’ साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ‘गाँव और पूरे जवार में मेरी कहानी पढ़ी जाये, मारपीट के कारण जो इज़्ज़त गयी है, वह लौट तो नहीं सकती। लेकिन लोग मेरे साथ हुए ज़ोर-जुल्म को जानें कि पुलिस कैसे बेगुनाह लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती है।’ उन्होंने ये भी कहा कि वे अब पहले से बेहतर महसूस कर रहे हैं।’
थाने से बाहर अपने पिता और भाई के साथ बाहर आते रामलाल
पुलिसिया अत्याचार के मामले में न्याय हेतु समिति ने विभिन्न स्तरों पर काम शुरू किया गया। 4 अगस्त, 2009 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली के अलावा प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय तथा पुलिस महानिरीक्षक, राज्य मानवाधिकार आयोग, राज्य के प्रमुख सचिव तथा पुलिस अधीक्षक कार्यालय से क़ानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई के लिए लिखा-पढी शुरू कर दी गयी है। समिति के पत्र पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक को 21 अगस्त, 2009 को नोटिस जारी किया था। जवाब में पुलिस अधीक्षक कार्यालय द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट के साथ 21 दिसम्बर, 2009 को एक पत्र जन निगरानी समिति के पास आयी जिसमें 6 सप्ताह में समिति से उस रिपोर्ट पर टिप्पणी मांगी गयी थी। जवाब में 26 दिसम्बर, 2009 को समिति की ओर से विस्तृत टिप्पणी भेजा गयी। टिप्पणी रिपोर्ट भेजने के पश्चात जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत एक आवेदन भी भेजा गया था। जिस पर आयोग ने प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को मानवाधिकार उल्लंघन का मामला दर्ज करते हुए 18 (ए)1 मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत मुआवज़ा देने का आदेश पारित किया। साथ ही प्रदेश के मुख्य सचिव को 27 जनवरी, 2010 को एक शो कॉज़ नोटिस भी भेजा गया। जिस पर 20 फरवरी, 2011 को थाना पडरी में रामलाल को 10,000/- का ट्रेज़री चेक पुलिस की ओर से प्रदान किया गया।
अपने साथ हुए उत्पीड़न के बाद रामलाल घर से बाहर निकलने में डरते थे। लेकिन बदले हुए हालात में वे थाने जाकर मुआवज़े का चेक लेकर आये। इस बदली स्थिति में इनका कहना था, ‘‘हम भी पुलिस से लड़ सकते हैं और आज हम जीत गये। हमारा संघर्ष पूरे इलाक़े में चर्चित हो गया कि हमने पुलिस अत्याचार से लड़ाई की है। जब हम चेक लेने गये थे तब वहां सादी वर्दी में एक पुलिस वाले ने पूछा था कि किस बात की चेक मिल रही है। जिस पर पडरी थाना के एक अन्य पुलिसकर्मी ने कहा था कि रामलाल को सरकार के तरफ़ से चेक मिल रहा है। तब उस पुलिस वाले ने कहा था – -‘ओह! रामलाल, पुत्र-छेदी बिन्द, सुर्दशन दरोगा वाला मामला।’ यह सुनकर हमें लगा कि हमारा मामला सभी जानते हैं। सभी अच्छे से बात कर रहे थे, उस समय हमें बहुत अच्छा लगा। पिताजी और भाई के साथ थाना परिसर से निकलते हुए हम बहुत खु़श थे और हमें बहुत शांति मिली है।”
सहयोग: उपेन्द्र कुमार
डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है. Tags: पुलिस उत्पीड़न, मिर्जापुर, रामलाल, संघर्ष और जीत
इस मर्तबा लेनिन ने पुलिसिया जुल्म के शिकार उस रामलाल की कहानी भेजी है जिसने हार नहीं मानी. प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों से लेकर, मुख्यमंत्री, राज्य मानवाधिकार आयोग और दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक; अपने साथ हुए ज़ोर-जुल्म की शिकायत लेकर गए रामलाल. आखिरकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप से उनके साथ ज़्यादती करने वाले पुलिसकर्मियों पर क़ानून कार्रवाई शुरू हो पायी और रामलाल को मुआवज़ा भी मिल सका. सच है कि मुआवज़े से पीड़ा की भरवाई तो नहीं हो सकती लेकिन इसका प्रतीकात्मक अर्थ तो है ही. और संघर्ष अभी जारी है.
पहले वर्दी ने मजबूर किया, अब वर्दी मजबूर हुई
रामलाल, पुत्र - श्री छेदी बिंद, गाँव – सागर सेमर, पोस्ट – हिनौती, थाना – पडरी, जिला-मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। 2 मई 2009 को रात लगभग 10 बजे थाना-चुनार (मिर्जापुर) के पुलिसकर्मी जबरदस्ती इन्हें अपने गाड़ी में बिठा ले गए। उसी रात लगभग 11.00 बजे इनके घर में तोड़फोड़ किया गया, बक्से में पड़े 7,000/- रुपये (जो उधार लिया गया था), 5 साड़ी, 1/2 किलो चाँदी की हंसुली, पायल, चाँदी की सिकड़ी तथा उनके लड़का का चाँदी की हाथ का बल्ला उठा लाये। उस रात 2 बजे इन्हें हवालात में बन्द कर दिया गया। कुछ समय बाद 2 सिपाही आकर हथकड़ी लगाकर रात में जीप में बिठाकर दरोगाजी श्री सुर्दशन के निवास स्थान पर ले गये। वहां से ये लोग डगमगपुर स्थित एक सुनसान क्षेत्र में एक फैक्ट्री के पास ले गए और वहाँ इनको डराते व धमकाते हुए दोष कबुलवाने की कोशिश करने लगे। उस समय राम लाल का पूरा शरीर पसीना से लथपथ हो गया। डर था कि कहीं मारकर फेंक न दिया जाय। आज भी वे उस दिन को याद करके सिहर उठते हैं। डराने-धमकाने के आधा घण्टा बाद पुलिस वाले इन्हें बिहारी ढाबा पर ले गये, जहाँ पुलिसकर्मी अपने लिये चाय और इन्हें कांच की गिलास में शराब दी पीने के लिए। इन्होंने कभी शराब नहीं पी थी। मना करने पर एक सिपाही आया और गाली देते हुए मारने लगा। दूसरा सिपाही जबरदस्ती मुँह में लगाकर दो गिलास शराब पिला दिया। उस समय स्थिति जैसे मरने की हो गयी थी और उसी स्थिति में अन्य 12 लोगों के घर में छापेमारी की गयी।
अगले रोज़ 30 मई, 2009 को लगभग 12 बजे दरोगाजी ने इन्हें दफ़्तर में बुलवाया, इनकी दायी हथेली पर कुर्सी रखकर बैठ गये और कड़क कर इनसे पूछा, ‘बताओ डकैती का सामान कहाँ है? कौन-कौन से लोग इसमें शामिल हैं?’ हथेली में सदा तब जो दर्द उठा वो आज तक बरकरार है। इतने से भी जी नहीं भरा तब सिपाहियों को बुलाकर इन्हें कम्पाउन्ड में भेजा, जहाँ इनकी डण्डे से जमकर इनकी पिटाई की गयी। सिर छोड़ कर इनके पूरे शरीर पर आगे-पीछे से डंडे बरसाए गये। इनके दायीं हाथ के अँगूठे में चोट आयी, जो कई महीनों तक सूजा रहा। बुरी तरह मारपीट करने के बाद इन्हें हवालात में डाल दिया गया। दिन भर खाना नहीं दिया गया। उसी दिन लगभग ड़ेढ बजे रात में दारोगाजी ने फिर उनको अपने आवास पर बुलवाया तथा कड़क कर पूछताछ की। यहाँ तक दबाव बनाया कि ये झूठ या सच कुछ भी बक दें। वहां लगभग डेढ़ घण्टे तक इन्हें रखा गया और उसके बाद सिपाही थप्पड़ व डण्डा मारते हुए थाना ले गये। हवालात में डालने से पहले फिर से डण्डे से इनकी पिटाई की गयी। जब पीड़ा सहन न हो पाया तो ये बेसुध होकर ज़मीन पर गिर गए। बिना कुछ खाये-पिए 15 कैदियों के साथ रात भर हवालात में बन्द रहे।
अगले दिन 31 मई, 2009 को दारोगाजी ने इन्हें फिर बुलवाया तथा थाना परिसर में रखे पत्थर पर बैठने को कहा। वहाँ दो बार इन्हें बिजली का करेंट दिया गया। इनका कण्ठ सुख रहा था लेकिन मांगने पर भी पानी नहीं दिया गया। तीसरी बार फिर करेंट दिया गया। जिससे ये बेहोश हो गये। पाँच दिनों तक बेहोशी में ही रहे। कुछ दिनों तक इन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा था और ये परेशान रहने लगे। सप्ताह भर अस्पताल में रह कर घर आये। पुलिस वालों की मनबढ़ी और और उनका जुल्म थमा नहीं था। इनको छोड़ने के एवज़ में उन्होंने इनके ससुर श्री लक्ष्मण व भाई जीतू से 13,000/- रुपये लिये। घर से उठाये गये सामानों में हसुली, पायल और बल्ला अब तक नहीं मिला है।
रामलाल 25 मई, 2009 को मानवाधिकार जननिगरानी समिति वाराणसी के कार्यालय में पुलिसिया यातना और शोषण के खिलाफ मदद के लिए आ रहे थे तो रास्ते में पुलिस की वर्दी को देखकर सहम गये। कार्यालय में भी अपनी बात बताने से डर रहे थे। काफ़ी देर के बाद वे अपनी कहानी बता पाए वो भी बहुत मुश्किल से। बताया कि ‘अपनी कहानी कहने व सुनाने के बाद डर पैदा होता है। बाहर जाने से डर लगता है। अकेले इलाज के लिये भी बाहर नहीं जाता हूँ।’
इनकी स्थिति को देखते हुए इन्हें पीवीसीएचआर के कार्यालय में टेस्टिमोनियल थेरेपी दी गयी। जिसे इन्हें मनोवैज्ञानिक संबल मिला और फिर उन्होंने कहा, ‘दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही हो, वे सीख लें कि किसी भी इंसान के साथ नाजायज़, ग़ैरक़नूनी और अमानवीय व्यवहार वे न करें। ऐसा करने पर उन्हें भी दण्ड मिले।’ साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ‘गाँव और पूरे जवार में मेरी कहानी पढ़ी जाये, मारपीट के कारण जो इज़्ज़त गयी है, वह लौट तो नहीं सकती। लेकिन लोग मेरे साथ हुए ज़ोर-जुल्म को जानें कि पुलिस कैसे बेगुनाह लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती है।’ उन्होंने ये भी कहा कि वे अब पहले से बेहतर महसूस कर रहे हैं।’
थाने से बाहर अपने पिता और भाई के साथ बाहर आते रामलाल
पुलिसिया अत्याचार के मामले में न्याय हेतु समिति ने विभिन्न स्तरों पर काम शुरू किया गया। 4 अगस्त, 2009 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली के अलावा प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय तथा पुलिस महानिरीक्षक, राज्य मानवाधिकार आयोग, राज्य के प्रमुख सचिव तथा पुलिस अधीक्षक कार्यालय से क़ानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई के लिए लिखा-पढी शुरू कर दी गयी है। समिति के पत्र पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक को 21 अगस्त, 2009 को नोटिस जारी किया था। जवाब में पुलिस अधीक्षक कार्यालय द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट के साथ 21 दिसम्बर, 2009 को एक पत्र जन निगरानी समिति के पास आयी जिसमें 6 सप्ताह में समिति से उस रिपोर्ट पर टिप्पणी मांगी गयी थी। जवाब में 26 दिसम्बर, 2009 को समिति की ओर से विस्तृत टिप्पणी भेजा गयी। टिप्पणी रिपोर्ट भेजने के पश्चात जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत एक आवेदन भी भेजा गया था। जिस पर आयोग ने प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को मानवाधिकार उल्लंघन का मामला दर्ज करते हुए 18 (ए)1 मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत मुआवज़ा देने का आदेश पारित किया। साथ ही प्रदेश के मुख्य सचिव को 27 जनवरी, 2010 को एक शो कॉज़ नोटिस भी भेजा गया। जिस पर 20 फरवरी, 2011 को थाना पडरी में रामलाल को 10,000/- का ट्रेज़री चेक पुलिस की ओर से प्रदान किया गया।
अपने साथ हुए उत्पीड़न के बाद रामलाल घर से बाहर निकलने में डरते थे। लेकिन बदले हुए हालात में वे थाने जाकर मुआवज़े का चेक लेकर आये। इस बदली स्थिति में इनका कहना था, ‘‘हम भी पुलिस से लड़ सकते हैं और आज हम जीत गये। हमारा संघर्ष पूरे इलाक़े में चर्चित हो गया कि हमने पुलिस अत्याचार से लड़ाई की है। जब हम चेक लेने गये थे तब वहां सादी वर्दी में एक पुलिस वाले ने पूछा था कि किस बात की चेक मिल रही है। जिस पर पडरी थाना के एक अन्य पुलिसकर्मी ने कहा था कि रामलाल को सरकार के तरफ़ से चेक मिल रहा है। तब उस पुलिस वाले ने कहा था – -‘ओह! रामलाल, पुत्र-छेदी बिन्द, सुर्दशन दरोगा वाला मामला।’ यह सुनकर हमें लगा कि हमारा मामला सभी जानते हैं। सभी अच्छे से बात कर रहे थे, उस समय हमें बहुत अच्छा लगा। पिताजी और भाई के साथ थाना परिसर से निकलते हुए हम बहुत खु़श थे और हमें बहुत शांति मिली है।”
सहयोग: उपेन्द्र कुमार
डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है. Tags: पुलिस उत्पीड़न, मिर्जापुर, रामलाल, संघर्ष और जीत
Saturday, April 2, 2011
NHRC reponse in complain in case of kamlesh Musahar
NHRC reponse in complain in case of kamlesh Musahar
Please visit given below URL to read the testimony of Kamlesh Mushar
http://www.sarokar.net/2011/03/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b9-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b8%e0%a4%b9%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%aa%e0%a4%b0/
Please visit given below URL to read the testimony of Kamlesh Mushar
http://www.sarokar.net/2011/03/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b9-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b8%e0%a4%b9%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%aa%e0%a4%b0/
Police torture case of Mushar and NHRC intervention
Police torture case of Mushar and NHRC intervention
Please visit given below URL for more information:
http://www.pvchr.net/2011/03/due-to-terror-of-police-dalit-asha.html
http://www.sarokar.net/topics/%e0%a4%ae%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a4%be/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%89%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%aa%e0%a5%80%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a4%a8/
http://www.sarokar.net/2011/02/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3-%e0%a4%b6%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82/
Please visit given below URL for more information:
http://www.pvchr.net/2011/03/due-to-terror-of-police-dalit-asha.html
http://www.sarokar.net/topics/%e0%a4%ae%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a4%be/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%89%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e2%80%8d%e0%a4%aa%e0%a5%80%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a4%a8/
http://www.sarokar.net/2011/02/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3-%e0%a4%b6%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82/
NHRC intervention in case of sexual abuse of child
NHRC intervention in case of sexual abuse of child
PVCHR filed the complain to National Human Rights Commission, New Delhi in the case of sexual abuse of Mr.Arjun Rajbhar girs child. He is resident of Baghwanala Urban slum, Varanasi. Mr. Arun Rajbhar is recieving threat when he deposed for the witness.
PVCHR filed the complain to National Human Rights Commission, New Delhi in the case of sexual abuse of Mr.Arjun Rajbhar girs child. He is resident of Baghwanala Urban slum, Varanasi. Mr. Arun Rajbhar is recieving threat when he deposed for the witness.
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