इस मर्तबा लेनिन ने पुलिसिया जुल्म के शिकार उस रामलाल की कहानी भेजी है जिसने हार नहीं मानी. प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों से लेकर, मुख्यमंत्री, राज्य मानवाधिकार आयोग और दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक; अपने साथ हुए ज़ोर-जुल्म की शिकायत लेकर गए रामलाल. आखिरकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप से उनके साथ ज़्यादती करने वाले पुलिसकर्मियों पर क़ानून कार्रवाई शुरू हो पायी और रामलाल को मुआवज़ा भी मिल सका. सच है कि मुआवज़े से पीड़ा की भरवाई तो नहीं हो सकती लेकिन इसका प्रतीकात्मक अर्थ तो है ही. और संघर्ष अभी जारी है.
पहले वर्दी ने मजबूर किया, अब वर्दी मजबूर हुई
रामलाल, पुत्र - श्री छेदी बिंद, गाँव – सागर सेमर, पोस्ट – हिनौती, थाना – पडरी, जिला-मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। 2 मई 2009 को रात लगभग 10 बजे थाना-चुनार (मिर्जापुर) के पुलिसकर्मी जबरदस्ती इन्हें अपने गाड़ी में बिठा ले गए। उसी रात लगभग 11.00 बजे इनके घर में तोड़फोड़ किया गया, बक्से में पड़े 7,000/- रुपये (जो उधार लिया गया था), 5 साड़ी, 1/2 किलो चाँदी की हंसुली, पायल, चाँदी की सिकड़ी तथा उनके लड़का का चाँदी की हाथ का बल्ला उठा लाये। उस रात 2 बजे इन्हें हवालात में बन्द कर दिया गया। कुछ समय बाद 2 सिपाही आकर हथकड़ी लगाकर रात में जीप में बिठाकर दरोगाजी श्री सुर्दशन के निवास स्थान पर ले गये। वहां से ये लोग डगमगपुर स्थित एक सुनसान क्षेत्र में एक फैक्ट्री के पास ले गए और वहाँ इनको डराते व धमकाते हुए दोष कबुलवाने की कोशिश करने लगे। उस समय राम लाल का पूरा शरीर पसीना से लथपथ हो गया। डर था कि कहीं मारकर फेंक न दिया जाय। आज भी वे उस दिन को याद करके सिहर उठते हैं। डराने-धमकाने के आधा घण्टा बाद पुलिस वाले इन्हें बिहारी ढाबा पर ले गये, जहाँ पुलिसकर्मी अपने लिये चाय और इन्हें कांच की गिलास में शराब दी पीने के लिए। इन्होंने कभी शराब नहीं पी थी। मना करने पर एक सिपाही आया और गाली देते हुए मारने लगा। दूसरा सिपाही जबरदस्ती मुँह में लगाकर दो गिलास शराब पिला दिया। उस समय स्थिति जैसे मरने की हो गयी थी और उसी स्थिति में अन्य 12 लोगों के घर में छापेमारी की गयी।
अगले रोज़ 30 मई, 2009 को लगभग 12 बजे दरोगाजी ने इन्हें दफ़्तर में बुलवाया, इनकी दायी हथेली पर कुर्सी रखकर बैठ गये और कड़क कर इनसे पूछा, ‘बताओ डकैती का सामान कहाँ है? कौन-कौन से लोग इसमें शामिल हैं?’ हथेली में सदा तब जो दर्द उठा वो आज तक बरकरार है। इतने से भी जी नहीं भरा तब सिपाहियों को बुलाकर इन्हें कम्पाउन्ड में भेजा, जहाँ इनकी डण्डे से जमकर इनकी पिटाई की गयी। सिर छोड़ कर इनके पूरे शरीर पर आगे-पीछे से डंडे बरसाए गये। इनके दायीं हाथ के अँगूठे में चोट आयी, जो कई महीनों तक सूजा रहा। बुरी तरह मारपीट करने के बाद इन्हें हवालात में डाल दिया गया। दिन भर खाना नहीं दिया गया। उसी दिन लगभग ड़ेढ बजे रात में दारोगाजी ने फिर उनको अपने आवास पर बुलवाया तथा कड़क कर पूछताछ की। यहाँ तक दबाव बनाया कि ये झूठ या सच कुछ भी बक दें। वहां लगभग डेढ़ घण्टे तक इन्हें रखा गया और उसके बाद सिपाही थप्पड़ व डण्डा मारते हुए थाना ले गये। हवालात में डालने से पहले फिर से डण्डे से इनकी पिटाई की गयी। जब पीड़ा सहन न हो पाया तो ये बेसुध होकर ज़मीन पर गिर गए। बिना कुछ खाये-पिए 15 कैदियों के साथ रात भर हवालात में बन्द रहे।
अगले दिन 31 मई, 2009 को दारोगाजी ने इन्हें फिर बुलवाया तथा थाना परिसर में रखे पत्थर पर बैठने को कहा। वहाँ दो बार इन्हें बिजली का करेंट दिया गया। इनका कण्ठ सुख रहा था लेकिन मांगने पर भी पानी नहीं दिया गया। तीसरी बार फिर करेंट दिया गया। जिससे ये बेहोश हो गये। पाँच दिनों तक बेहोशी में ही रहे। कुछ दिनों तक इन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा था और ये परेशान रहने लगे। सप्ताह भर अस्पताल में रह कर घर आये। पुलिस वालों की मनबढ़ी और और उनका जुल्म थमा नहीं था। इनको छोड़ने के एवज़ में उन्होंने इनके ससुर श्री लक्ष्मण व भाई जीतू से 13,000/- रुपये लिये। घर से उठाये गये सामानों में हसुली, पायल और बल्ला अब तक नहीं मिला है।
रामलाल 25 मई, 2009 को मानवाधिकार जननिगरानी समिति वाराणसी के कार्यालय में पुलिसिया यातना और शोषण के खिलाफ मदद के लिए आ रहे थे तो रास्ते में पुलिस की वर्दी को देखकर सहम गये। कार्यालय में भी अपनी बात बताने से डर रहे थे। काफ़ी देर के बाद वे अपनी कहानी बता पाए वो भी बहुत मुश्किल से। बताया कि ‘अपनी कहानी कहने व सुनाने के बाद डर पैदा होता है। बाहर जाने से डर लगता है। अकेले इलाज के लिये भी बाहर नहीं जाता हूँ।’
इनकी स्थिति को देखते हुए इन्हें पीवीसीएचआर के कार्यालय में टेस्टिमोनियल थेरेपी दी गयी। जिसे इन्हें मनोवैज्ञानिक संबल मिला और फिर उन्होंने कहा, ‘दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही हो, वे सीख लें कि किसी भी इंसान के साथ नाजायज़, ग़ैरक़नूनी और अमानवीय व्यवहार वे न करें। ऐसा करने पर उन्हें भी दण्ड मिले।’ साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ‘गाँव और पूरे जवार में मेरी कहानी पढ़ी जाये, मारपीट के कारण जो इज़्ज़त गयी है, वह लौट तो नहीं सकती। लेकिन लोग मेरे साथ हुए ज़ोर-जुल्म को जानें कि पुलिस कैसे बेगुनाह लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार करती है।’ उन्होंने ये भी कहा कि वे अब पहले से बेहतर महसूस कर रहे हैं।’
थाने से बाहर अपने पिता और भाई के साथ बाहर आते रामलाल
पुलिसिया अत्याचार के मामले में न्याय हेतु समिति ने विभिन्न स्तरों पर काम शुरू किया गया। 4 अगस्त, 2009 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली के अलावा प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय तथा पुलिस महानिरीक्षक, राज्य मानवाधिकार आयोग, राज्य के प्रमुख सचिव तथा पुलिस अधीक्षक कार्यालय से क़ानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई के लिए लिखा-पढी शुरू कर दी गयी है। समिति के पत्र पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक को 21 अगस्त, 2009 को नोटिस जारी किया था। जवाब में पुलिस अधीक्षक कार्यालय द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट के साथ 21 दिसम्बर, 2009 को एक पत्र जन निगरानी समिति के पास आयी जिसमें 6 सप्ताह में समिति से उस रिपोर्ट पर टिप्पणी मांगी गयी थी। जवाब में 26 दिसम्बर, 2009 को समिति की ओर से विस्तृत टिप्पणी भेजा गयी। टिप्पणी रिपोर्ट भेजने के पश्चात जन सूचना अधिकार अधिनियम-2005 के तहत एक आवेदन भी भेजा गया था। जिस पर आयोग ने प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को मानवाधिकार उल्लंघन का मामला दर्ज करते हुए 18 (ए)1 मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत मुआवज़ा देने का आदेश पारित किया। साथ ही प्रदेश के मुख्य सचिव को 27 जनवरी, 2010 को एक शो कॉज़ नोटिस भी भेजा गया। जिस पर 20 फरवरी, 2011 को थाना पडरी में रामलाल को 10,000/- का ट्रेज़री चेक पुलिस की ओर से प्रदान किया गया।
अपने साथ हुए उत्पीड़न के बाद रामलाल घर से बाहर निकलने में डरते थे। लेकिन बदले हुए हालात में वे थाने जाकर मुआवज़े का चेक लेकर आये। इस बदली स्थिति में इनका कहना था, ‘‘हम भी पुलिस से लड़ सकते हैं और आज हम जीत गये। हमारा संघर्ष पूरे इलाक़े में चर्चित हो गया कि हमने पुलिस अत्याचार से लड़ाई की है। जब हम चेक लेने गये थे तब वहां सादी वर्दी में एक पुलिस वाले ने पूछा था कि किस बात की चेक मिल रही है। जिस पर पडरी थाना के एक अन्य पुलिसकर्मी ने कहा था कि रामलाल को सरकार के तरफ़ से चेक मिल रहा है। तब उस पुलिस वाले ने कहा था – -‘ओह! रामलाल, पुत्र-छेदी बिन्द, सुर्दशन दरोगा वाला मामला।’ यह सुनकर हमें लगा कि हमारा मामला सभी जानते हैं। सभी अच्छे से बात कर रहे थे, उस समय हमें बहुत अच्छा लगा। पिताजी और भाई के साथ थाना परिसर से निकलते हुए हम बहुत खु़श थे और हमें बहुत शांति मिली है।”
सहयोग: उपेन्द्र कुमार
डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है. Tags: पुलिस उत्पीड़न, मिर्जापुर, रामलाल, संघर्ष और जीत