Thursday, April 14, 2011
सरोकार की जनपत्रकारिता मुहिम: बनारस में कार्यशाला
विगत 9-10 अप्रैल को विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न के शिकार मेहनतकश ग़रीबों, दलितों और वंचितों की आवाज़ को व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचाने एंव उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रतिबद्ध ‘मानवाधिकार जन निगरानी समिति (पीवीसीएचआर)’ की ओर से दो दिवसीय सामुदायिक मीडिया कार्यशाला का आयोजन गया। बनारस स्थित पीवीसीएचआर कार्यालय में संपन्न हुए इस कार्यशाला में ‘छुट्टी हुई आवाज़ों का पैरोकार : सरोकार’ के श्री राकेश कुमार सिंह मुख्य फेसिलिटेटर/प्रशिक्षक रहे।
पहला दिन / पहला सत्र
कार्यशाला की ज़रूरत और अहमियत पर चर्चा करते डॉ. लेनिन कार्यशाला की शुरुआत में ‘मानवाधिकार जन निगरानी समिति’कार्यकारी निदेशक डॉ. लेनिन ने प्रशिक्षक राकेश सिंह एंव प्रशिक्षणाथियों का स्वागत करते हुए कार्यशाला के उद्देश्य के बारे में पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पीडि़त को न्याय दिलाने एंव प्रताड़ना मुक्त समाज के निर्माण करने हेतु दस्तावेजीकरण अति आवश्यक है। राकेश के सहयोग एंव मार्गदर्शन से दो दिवसीय कार्यशाला से हमे टेस्टीमनी, कहानी लेखन आदि लेखन को कई विधा की जानकारी मिलेगी जिससे हमारा दस्तावेजीकरण और भी मजबूत होगा। इसके पश्चात् सभी प्रशिक्षणथियों ने अपना परिचय दिया। पीवीसीएचआर की प्रबंध समिति की सदस्या सुश्री श्रुति नागवंशी ने कहा कि श्री राकेश के सहयोग से हमारा दस्तावेजीकरण और भी अधिक प्रभावशाली एवं जीवंत होगा।
कार्यशाला आरंभ करते हुए श्री राकेश ने कहा कि आमतौर पर दस्तावेजीकरण करते समय हम जो भाषा का प्रयोग करते हैं जो बोलचाल में नहीं करते। इसके चलते हमारे दस्तावेज़ों की रोचकता कम हो जाती है। नीरस लगने लगता है। टेस्टिमी (ख़दबयानी) दर्ज करते समय हमें पीडितों के शब्दों को पर्याप्त स्थान और इज्जत देनी चाहिए। उन्होंने ख़दबयानी दर्ज करते समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखने का सुझाव दिया :
मुमकिन हो तो पहली मुलाक़ात में उनसे उत्पीड़न की चर्चा न छेड़ें, यह काम दूसरी या तीसरी मुलाक़ातों में हो सकता है.
पीडि़त के टोले, मोहल्ले, गांव समाज एवं उसकी भौगोलिक, सामाजिक व राजनैतिक परिस्थतियों को ध्यान में रखें
टेस्टीमनी के उद्दश्यों के प्रति स्पष्ट रहें, यानी पीडित के प्रति अपनी पक्षधरता रखते हुए अपने लेखन में अपनी ओर से कोई जमा-घटा न करें
सामूहिक बैठक में लेखन स्मृति और छोटे-छोटे संकेतों के आधार पर करें। इन पर विस्तृत रिर्पोट उसी दिन बनाये अन्यथा कई ज़रूरी तथ्य छूट सकते है
इसके बाद डायरी लेखन पर चर्चा की गयी। श्री राकेश ने डायरी के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की और ये बताया कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं ओर संगठनों के लिए डायरी एक बेहद प्रभावी औजार साबित हो सकता है।
साक्षात्कार के बारे में राकेश ने बताया कि जिस व्यक्ति का साक्षात्कार हम लेने जा रहे हैं उसके संबंध में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर लेना हमेशा लाभदायक रहता है। यह हमें सवालों को फ्रेम करने में मददगार साबित हो सकता है। डॉ. लेनिन ने बताया कि साक्षात्कार लेने वाले को यह पता होना चाहिए कि वह किन बातों पर सामने वाले की राय लेना चाहते हैं।
ह्युमन स्टोरी के बारे में बात करते हुए श्री राकेश ने बताया कि यह हमारे काम में बेहद मददगार साबित हो सकता है। इससे हम व्यापक जनसमुदाय के साथ संबंध स्थापित कर सकते हैं और पीडितों के प्रति उन्हें संवेदनशील कर सकते हैं। बस ध्यान रहे कि इसे लिखते वक्त हम जबरन अपनी भाषा को हावी न होने दें। बेहतर होगा कि यहां भी आम बोलचाल की भाषा और बोलियों को पर्याप्त स्थान और इज्जत दिया जाए।
चर्चा सत्रइस सत्र में रिपोर्ट, फीचर, संस्मरण, सारांश तथा उद्धरण लेखन, इनकी अहमियत इत्यादि पर भी विस्तार से चर्चा की गयी। समय, स्थान, माध्यम और जरूरत के मुताबिक हम इन विधाओं का उपयोग कर सकते हैं।
सत्र के आखिर में अनुवाद और ट्रांस्क्रिप्शन पर भी बातचीत की गयी। अनुवाद करते वक्त कई मर्तबा हम जबरदस्ती ऐसी हिंदी का इस्तेमाल कर बैठते हैं जो केवल ओर केवल डिक्शनरी में दर्ज होते हैं और जिनका आम तौर पर कभी उपयोग भी नहीं होता है। इसलिए हमें ऐसे शब्दों ओर उनके इस्तेमाल से बचाना चाहिए। आम बोलचाल में प्रयोग में आने वाले शब्दों बेशक वे अंग्रेजी के ही क्यों न हो, अनुवाद को असरदार और उपयोगी बनाता है।
दूसरा सत्र
इस सत्र में फोटोग्राफी और विडियो के महत्त्व और उसके तकनीकी पक्ष पर विस्तार से आदान प्रदान किया गया। इस डिजिटल तकनीकी के दौर में फोटो और छोटी-छोटी फिल्में कई बार लंबे-चौडे़ आलेखों से बड़ा काम कर जाते हैं। लिहाज़ा, मीडिया के इन फॉर्म्स के बारे में भी हमें सहज और उदार होने की जरूरत है।
इसके बाद अभ्यास का सत्र चला, जिसमें प्रशिक्षणार्थियों ने विभिन्न विधाओं में लेखन किया जिन पर बाद में सामूहिक रूप से चर्चा हुई। प्रशिक्षणार्थियों ने एक दूसरे के लिखे को पढ कर सुनाया और फिर अपने सुझाव दिए।
कार्यशाला के दूसरे दिन की शुरुआत में सुश्री श्रुति नागवंशी ने कार्यशाला के प्रथम दिवस की सम्पूर्ण कार्यवाही का सार संकलन पेश किया। सत्र के प्रारम्भ में प्रशिक्षणर्थियों द्वारा पहले दिन के अन्तिम सत्र में अभ्यास के दौरान लिखे गये- नोट, फीचर, साक्षात्कार आदि की प्रस्तुति की गयी। इस प्रक्रिया में प्रशिक्षणर्थियों ने दूसरों का लिखा सुनाया। जिस पर प्रशिक्षाणर्थियों एवं प्रशिक्षक ने अपने फीडबैक दिये। राकेश ने कुछ संस्मरणों और डायरियों के माध्यम से लेखन कला और अभिव्यक्ति में भाषा और शब्दों की अहमियत को बड़े ही रोचक अंदाज़ में समझाया।
सत्र के दूसरे और अंतिम चरण में न्यू मीडिया तकनीकी और खास कर हिंदी कंप्युटिंग पर श्री राकेश ने सजह ढंग में बातचीत की। ऑनलाइन हिंदी लेखन के लिए उपयोगी टूल्स और उनके उपयोग वाला ये सत्र बेहद लाभदायक रहा। अंत में सहभागियों ने कार्यशाला के अपने अनुभवों को साझा किया। अपने हिदी कंप्युटिंग पर चर्चा के दौरान श्रुति नागवंशी और राकेश समापन वक्त्व्य में सरोकार के श्री राकेश ने कहा कि देश की बहुसंख्य आबादी की रोज़मर्रा, उनके मसले ओर उनके संघर्षों पर पर मीडिया के बड़े दायरे में व्याप्त खामोशी किसी से छुपी नहीं है। जनपक्षधर पत्रकारिता का दावा करने वाले संस्थानों के रुख भी समय-समय पर स्पष्ट होते रहते हैं। ऐसे में सरेाकर जैसी छोटी सी पहल की जिम्मेदारी बढ जाती है। वैसे भी सरोकार का यह मानना है कि हमें अपनी मदद खु़द ही करनी होगी। इन्हीं ज़रूरतों ओर जिम्मेदारियों का एहसास करते हुए सरोकार ने साल कि अंत तक मीडिया कार्यर्ताओं की एक प्रभावी टोली खड़ा करने की मुहिम शुरू की है। बनारस का यह वर्कशॉप उस कड़ी की शुरुआत है।
इस दो दिवसीय कार्यशाला का औपचारिक समापन करते हुए डॉ. लेनिन ने सरोकार और राकेश के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया और कहा कि इस कार्यशाला से पीवीसीएचआर की टीम निश्चित रूप से बेहतर ढंग से काम कर पाएगी। उनहोंने कहा कि विभिन्न प्रकार के अत्याचार और ज़ोर-जुल्म के शिकर लोगों को न्याय दिलाने में टेस्टिमनी एक महत्त्वपूर्ण औज़ार की तरह उपयोग में आते हैं इसलिए टेस्टिमनी का असरदार होना बेहद ज़रूरी है। यह वर्कशॉप उस लिहाज़ के उपयोगी रहा है। उन्होंने कार्यशाला के सहभागियों के प्रति भी धन्यवाद व्यक्ति किया। कार्यशाला में सुश्री श्रुति नागवंशी, शिरीन शबाना खान, उपेन्द्र, अनुप, सत्यप्रकाश, रोहित, विजय, और मृत्युंजय ने भागीदारी की।
मृत्युंजय सामाजिक कार्यकर्ता हैं और फिलवक्त बनारस में रह कर मानवाधिकारों के मसले पर काम कर रहे हैं. इनसे mreetyunjay@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता