Monday, May 23, 2011

विस्थापन के दर्द की कहानी



मेरा नाम रामकृपाल (उम्र-50 वर्श), पुत्र-स्व0 राम अवध, ग्राम-चिंतौरा, पोस्ट-मुबारकपुर, तहसील-टांडा, जिला-अम्बेडकर नगर (उ0प्र0) का निवासी हूँ। मै पढ़ा लिखा नही हूँ, मेरी पत्नी का नाम कलावती है। मेरी दो लड़किया मीरा (उम्र-30 वर्श) और मीना (उम्र-15 वर्श) व एक लड़का धमेन्द्र (उम्र-17 वर्श) के है। मैं मजदूरी व रिक्षा चलाकर अपने परिवार को चलाता हूँ।

हम लोग मांझा के निवासी थे, लेकिन वहाँ नदी के किनारे बसे होने के कारण बरसात के समय में नदी के बाढ़ आ जाने के वजह से हमारा खेत व गाँव डूब जाता था। उस समय हम लोगो को ईधर-उधर भागना पड़ता था। उसी समय उन्नीस सौ पचहत्तर में हमारे तहसील के एस0डी0एम0 बाबा हरदेव सिंह से हम लोग मिले और अपनी समस्या को कहे। जिस पर एस0डी0एम0 साहब ने तत्काल उसी समय हम लोगो को अपने गाँव से एक कि0मी0 दूर चिंतौरा में खाली सरकारी जमीन पर छिहत्तर माँझी परिवारो को बसाए, किन्तु किसी को जमीन का कागज नही मिला था। हम लोग वहाँ झोपड़ी बनाकर रह रहे थे।

आज से तीन वर्ष पहले सन् दो हजार सात में हमारी झोपड़ी के दक्खीन में आफताब की जमीन थी, जिनकी जमीन एस0डी0एम0 के अर्दली धीरज एक बिस्वा व एल0आई0सी0 के एजेन्ट ओम प्रकाश गुप्ता ने डेढ़ बिस्वा बैनाम कराए। जमीन को घेरवाकर हमारी झोपड़ी की ओर अपनी बाउन्ड्री का दरवाजा खोल दिए। जिस पर मैने विरोध किया की हमारे झोपड़ी की ओर दरवाजा क्यो खोल रहे है। तब धीरज व ओम प्रकाश द्वारा मुझे भद्दी-भद्दी गालियां दिया जाने लगा और धीरज ने एस0डी0एम0 का अर्दली होने के कारण पुलिस को फोन करके मुझे पकड़वा दिया। पुलिस आयी और मुझे पकड़कर थाने ले गयी रातभर मुझे थाने में रखने के बाद सुबह छोड़ा। इस प्रकार मुझे एस0डी0एम0 के अर्दली धीरज व ओमप्रकाश ने सात बार जेल भेजवाया लेकिन मेरे घर वाले हमारे क्षेत्र के सांसद शंखलाल मांझी के यहाँ फोन कर देते थे और मुझे सांसद जी छुड़वा देते थे। पुलिस वाले न मुझे गाली देते, न मारते थे, बल्कि मेरा सहयोग करते थे। केवल एस0डी0एम0 के दबाव में आकर मुझे पकड़कर लाते थे। बार-बार पुलिस वालों के पकड़कर थाने लाने के वजह से गाँव वाले मेरी हँसी लेते थे। मुझे जान से मारने की धमकी दिया और जमीन छोड़कर भाग जाने को कहाँ, लेकिन मैं डरा नही, मैं हिम्मत करके लड़ता रहा और जमीन का मुकदमा मैंने एस0डी0एम0 के यहाँ कर दिया और मुकदमा लड़ रहा हूँ। मुझे हमेशा चिंता रहती है और रात में नीद भी नही आती है। इस जमीन के लिए मैं कुल 47,000/- रु0 से अधिक दिया, जिससे मुझे काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता था।

9 अगस्त, 2010 को दोपहर 12 बजे धीरज (अर्दली) व ओम प्रकाश ने करीब 20 की संख्या में लोगों को लेकर आए और मेरी झोपड़ी को ट्रैक्टर से गिरवा दिए। झोपड़ी के अन्दर चुल्हा, बारह हजार ईटा, गद्दा, लकड़ी, बास, खटीया आदि पर मिट्टी गिरवाकर पटवा दिए। जब मैने विरोध किया तो मुझे धमकी देने लगे। मैंने उसी दिन तुरन्त डी0एम0 को प्रार्थना पत्र दिया। डी0एम0 ने मौके की जाँच का आश्वासन दिया, किन्तु कोई जाँच नही हुयी। तीन दिन बाद मैं एस0डी0एम0 के यहाँ प्रार्थना पत्र दिया। जिस पर एस0डी0एम0 ने अर्दली धीरज का पक्ष लेते हुए बोले-‘‘तुम समझौता कर लो, मंै तुम्हे एक बिस्वा जमीन कही दिलवा दूँगा।’’ यह सुनकर मै सन्न रह गया। दिनांक 18 अगस्त, 2010 को एस0डी0एम0 से पुनः मिला तो उन्होंने तहसीलदार व लेखपाल के साथ मुझे जमीन देखने के लिए भेज दिए। मुझे जमीन के जगह गड्ढ़ा दिखाया गया। मैने वह जमीन लेने से इन्कार कर दिया।

आज यह घटना सुनाकर मुझे अच्छा लग रहा है। मुझे मेरी जमीन मिले और मेरे साथ न्याय हो।


संझार्शरत पीडि़त: रामकृपाल

साक्षात्कारकर्ता:बरखा सिंह $ सत्य प्रकाष