मानवाधिकार जननिगरानी समिति के गर्वनिंग बोर्ड सदस्य श्री मंगला राजभर, मैनेजमेंट कमेटी सदस्या सुश्री शिरिन शबाना खान एवं सुश्री कात्यायनी ने पत्रकार भवन कचहरी परिसर जौनपुर में संस्था द्वारा आयोजित प्रेसवार्ता में विकास खण्ड-रामपुर, ग्राम-सकरा में मुसहर परिवारों के बीच संस्था द्वारा किये जा रहे विकास कार्यो मुसहर परिवारों की चुनौतिपूर्ण स्थितियों की रिपोर्ट रखी।
उन्होंने बताया कि-समिति द्वारा मुसहर परिवारों को सरकारी योजनाओं और कानूनों की जानकारी सामुदायिक बैठकों/लोक विद्यालय के माध्यम से दी जाती है। जिससे सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न विकास कार्यक्रमों योजनाओं को लेकर अपना जीवन स्तर ऊँचा उठा सकें, उनकी गरीबी दूर हो। इसी दौरान (वर्ष 2009) मुसहर परिवारों ने बताया कि ग्राम के दबंग व्यक्तियों के साथ ही ग्राम प्रधान द्वारा बार-बार यह दबाव बनाया जा रहा है कि वे मनरेगा में बिना काम किये ही अपनी मजदूरी बैंक से निकालकर उन्हें दे देवे। विदित हो कि इन मजदूर मुसहर परिवारों में से कुछ परिवारों का जाॅब कार्ड ग्राम प्रधान द्वारा बनवाकर अपने पास ही रखा था। जिस पर वे मनमानी तरीके से काम के दिनों, मजदूरी की इंट्री कर नाजायज तरीके से (बिना काम के ही) भुगतान कराना चाहते थे। मजदूरों ने कानून के डर से बिना लालच में आये इसकी लिखित शिकायत जिलाधिकारी से की, जिसके बाद ग्रामप्रधान का खाता सीज हो गया। शिकायत के बाद ही उन्हें पहली बार उनका जाॅब कार्ड उनके हाथ में मिला।
वर्ष 2010 में सकरा के ही श्री ओम प्रकाश सिंह के रिश्तेदार (साले) दिल्लकपुरा, थाना-केराकत निवासी श्री इन्द्रमणि सिंह ने 15 मुसहरों को परिवार सहित ईंट भट्ठे पर बंधुवा बनाकर ईटों की पथाई करायी और सीजन खतम होने पर पूरी मजदूरी दिये बिना ही उन्हें मार-पीटकर भगा दिया। (मजदूर दिलकुमार की स्व0 व्यथा-कथा संलग्न है) जिसकी शिकायत जिलाधिकारी सहित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली से की गई। आयोग द्वारा मामले पर जाँच कर जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी गई है।
देश में बंधुवा मजदूरी उन्मूलन के लिए बंधुवा मजदूरी अधिनियम 1976 के अन्तर्गत प्रत्येक बंधुवा मजदूर को मुक्त कराकर उन्हें पुर्नवासित किये जाने का प्रावधान हैं, जिसकी जवाबदेही प्रशासन की हैं।
वर्ष 2010 अक्टूबर में मुसहर परिवारों की अमानवीय अवस्था को देखते हुए समिति द्वारा यहाँ कार्यक्रम की गतिविधियां तेज की गयी, जिसके अन्तर्गत यहाँ सर्वप्रथम शिक्षा से वंचित बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा देने का काम शुरू किया गया। इस कार्य में बालाधिकारों पर कार्यरत अन्र्तराष्ट्रीय संस्था ‘‘ग्लोबल फण्ड फाॅर चिल्ड्रेन ;ळथ्ब्द्ध’’ ने आर्थिक सहायता की। जिससे बच्चों को प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा शिक्षा शिक्षण सामग्री दिये जाने की शुरूआत हुई। यहाँ पोषण के लिए खाद्य सामग्री भी दी जाती है।
वर्तमान में संस्था द्वारा मुसहर परिवारों के सहयोग से सावित्री बाई फूले जनमित्र शिक्षण केन्द्र (अनौपचारिक) की स्थापना की गई। जिसमें 6-14 वर्ष के 22 बच्चें शिक्षा ग्रहण कर रहे है, और 25 बच्चें पूर्व प्राथमिक स्तर के शिक्षा कार्यक्रम से जुड़े है। साथ ही 6 बच्चों को ग्राम के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में (मुख्यधारा) नामांकित कराया गया है। जिससे वे सरकारी सुविधाओं सहित शिक्षा ग्रहण कर सकें। ऐसे में 0-5 वर्ष के 52 बच्चों में पोषण एवं विकास के लिए प्ब्क्ै विभाग द्वारा कोई प्रयास नही चलाया जा रहा है।
‘‘शिक्षा कार्यक्रम से जुड़ने पर मुसहर परिवारों का अपने बच्चों का शिक्षा एवं विकास का दृष्टिकोण बदलना शुरू हो गया है। उनके आँखों में भी पढ़-लिखकर जानकारी हासिल करने के सपने साफ दिखाई देने लगे हंै। जिससे ग्राम के वे तबके जो आजाद भारत में भी इंसानों को गुलाम बनाकर रखना चाहते है वे विचलित हो उठे हैं और मुसहरों को परेशान करने की मंशा से फर्जी आरोप और मुकदमों में फँसाने का असफल प्रयास भी कर रहे हैं।’’
मुसहर परिवारों की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी 22 वयस्कों (महिला-पुरूष) के पास मतदाता नही है। जो गाँव-देश का नागरिक होना सुनिश्चित कराता है। जिसके बाद भी वे किसी योजना के हकदार होते है। किसी राजनितिक या जनप्रतिनिधि को उनके वोट की जरूरत नही है। मुसहरों को राज्य व्यवस्था, अपने जनप्रतिनिधियों के चुनाव की समझ शायद नही होती है। ऐसा उनका सोचना होगा, तभी तो शायद किसी ने यह प्रयास नही किया। पिछले कुछ समय पहले सरकार द्वारा अभियान चलाकर ठस्व् (लेखपाल, शिक्षक) द्वारा मतदाता पहचान पत्र दुरूस्तीकरण किया जा रहा था, लेकिन तब भी इस बस्ती में कोई सरकारी कर्मचारी इस बाबत नही पहुचा।
आजीविका और सामुहिक सम्पदा संसाधनों से बदहाल स्थिति होने के बावजूद भी 15 मुसहरों के पास अभी भी जाॅब कार्ड नही है। जबकि काम न मिल पाने के कारण ये ईंट भटठों में पेशगी के ऐवज में बंधुवा मजदूर बनने को मजबूर होते है। जिनके कार्ड जाॅब कार्ड है भी उन्हें भी मनरेगा में काम नही मिलता। प्रधान और रोजगार सेवक के लिए शासनादेश का कोई मायने नही है। वे मिलीभगत कर मनरेगा के धन का दुरूपयोग करने में ही व्यस्त है। जिसका सीधा उदाहरण है कि, आज भी जाॅब कार्ड युक्त/संतृप्त व्यक्तियों में से कुछ के बैंक खाते नही खोले गये है। वही जिनके खाते खोले गये है, उन्ही बैंक खातों में उन मजदूरों का भी भुगतान कराया जाता जिनके खाते नही खोले गये है, यह सरासर मनरेगा कानून के उल्लंघन का मामला है। काम की मांग और हनन के मामलों पर इनके द्वारा कई बार शिकायत की गयी है। लगभग दो माह पूर्व तथाकथित सोशल आडिट में ब्लाॅक कोआर्डिनेटर की मौजूदगी में कानून निर्देशित नियमों के व्यवहारिक उपयोग एवं सत्यता की जाँच में भी मजदूरों ने अपनी समस्या को रखा, लेकिन कोई सुनवाई नही की गई।
2002 के सर्वे के अनुसार 48 मुसहर परिवारों में केवल दो परिवारों के पास ही बी0पी0एल0 राशन कार्ड है जिसमें भी राशन समय से नही मिलता। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश (मु0सं0-196 भारत सरकार बनाम च्न्ब्स्) के बाद भी अति वंचित मुसहर समुदाय के 44 परिवार राशन कार्ड से वंचित है। जिससे वे परिवार खुले बाजार में मंहगे दाम में राशन खरीदकर खाने को मजबूर है। जिसका सीधा प्रभाव उनके पेट-स्वास्थ्य पर पड़ता है। क्योकि कई बार कुछ खाने का अनाज न होने के कारण उनके चुल्हे में आग नही जलायी जा पाती।
महामाय गरीब आर्थिक मदद योजना के सर्वे में भी केवल 5 परिवारों को ही सूची में शामिल कर मदद पहुचायी जा रही है।
33 परिवारों के पास कोई भी जमीन सिवाय उस जमीन के जिस पर उनकी झोपड़ी नही है। जिसके कारण वे छोटी मोटी खेती से अनाज या सब्जी पैदा नही कर पाते। 16 परिवारों को जमीन आवंटन है, लेकिन वे जमीन पानी के अभाव में बंजर पड़ी है जबकि मनरेगा कानून के अन्र्तगत इस जमीन को उपजाऊ बनाने का कार्य कर इनकी आजीविका व जीवन स्तर में वृद्धि की जा सकती है।
प्रेसवार्ता में सकरा ग्राम से महातीम मुसहर, डब्बल दिलकुमार, सोमारू सहित, सावित्री बाई फूले जनमित्र शिक्षण केन्द्र के शिक्षक प्रमोद कुमार रत्नाकर एवं कंचन भारती आदि उपस्थित रहे।
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