Tuesday, February 24, 2015

यातना अब और नहीं, कानून राज लागु करो!

मनुष्य का मनुष्य द्वारा यातना कमजोर के ऊपर मजबूत के द्वारा अपनी इच्छा को लागू करने का आवश्यक माध्यम है | (सर्वोच्च न्यायालय)

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने ठीक ही कहा है कि पुलिस एक चौराहे पर खड़ी है, जहाँ से वह मानवाधिकार की रक्षा कर सकती है या फिर उसका हनन|

प्रिय साथियों,
जैसा कि आप सभी भली-भांति जानते हैं कि भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत के निष्पक्ष छवि एवं प्रजातांत्रिक मूल्यों के संवहन-संवर्धन एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के मज़बूतीकरण हेतू संयुक्त राष्ट्र में अन्तर्राष्ट्रीय यातना विरोधी कन्वेंशन (UNCAT) को भारत में लागू करने हेतू हस्ताक्षर किया है | किन्तु अभी तक अनुमोदन नहीं किया गया है/

जिसके क्रम में भारत सरकार ने अनुमोदन के मद्देनज़र 2010 में यातना विरोधी क़ानून को लागू करने के लिए विभिन्न सुझाव समितियों एवं माननीय सांसदों द्वारा सहमति हेतू प्रस्तावित किया था | यह विधेयक लोकसभा में तो पास हो गया है, लेकिन राज्य सभा में यह महत्वपूर्ण विधेयक अभी लंबित है और स्टेंडिंग कमेटी ने अपनी रपट दे दिया है | यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा पूरे विश्व के सभी देशों को यातना विरोधी कानून को अपने देश में लागू करने के लिए निर्देशित किया है | यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र समिति ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि घरेलू क़ानून के अंतर्गत अपराध की परिभाषा को कम से कम संयुक्त राष्ट्र के यातना की परिभाषा के अनुरूप होना चाहिये | संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार परिषद् के यूनिवर्सल पीरियोडिक रिव्यू (UPR) में भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र यातना विरोधी कन्वेंशन (UNCAT) के अनुमोदन का वादा किया है/

      यह स्पष्ट है कि मानवाधिकार व कानून के राज को लागू करने की सबसे बड़ी एजेंसी पुलिस है| इसलिए आई०पी०सी० की धारा 330-331 के तहत पुलिस यातना/उत्पीड़न का निषेध है| वही पुलिस सी.आर.पी.सी. की धारा-161 के तहत अपराध स्वीकृति कराती है, तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 26 के तहत न्यायालय में साक्ष्य नहीं है, यदि वह मजिस्ट्रेट के सामने न नहीं दिए गए हैं | फिर यह सवाल उठता है कि आखिर पुलिस यातना/उत्पीड़न का सहारा क्यों लेती है?

पुलिस यातना से सम्बंधित कारणों में पुलिस विभाग में संसाधनों की कमी, राजनैतिक हस्तक्षेप एवं पुलिस विभाग से इतर एक निष्पक्ष व वैज्ञानिक जाँच एजेंसी की कमी प्रमुख कारणों में से हैं |इसके साथ ही साथ हमारा सामन्ती व पितृसत्तात्मक समाज खुद यातना/उत्पीड़न कि स्वीकारोक्ति देता है|
यातना/उत्पीड़न की परिभाषा संयुक्त राष्ट्र यातना विरोधी कन्वेंशन के अनुछेद 1(1) में वर्णित है| जिसके अनुसार कोई ऐसा कार्य जान बुझकर किसी व्यक्ति पर शारीरिक या मानसिक पीड़ा देना, जिसका उद्देश्य उससे या तीसरे व्यक्ति से अपराध स्वीकृति करना या ऐसे कार्य के लिए सजा देना, जो उसने या किसी तीसरे व्यक्ति ने किया हो या करने का संदेह हो | इसमे यदि अधिकारिक क्षमता वाले व्यक्ति का परोक्ष या प्रत्यक्ष भागीदारी होना शामिल है/

      किन्तु भारत में पुलिस उत्पीडन के इतिहास को देखें, तो 1857 के विद्रोह को दमनकारी तरीके से कुचलना व पुनः इसकी पुनरावृति नहीं हो, इसके लिए 1861 में पुलिस मैनुवल एक्ट बनाया गया और अंग्रेजी तानाशाही प्रणाली के थानों का निर्माण हुआ पुलिस विभाग का अध्ययन करें, तो देखेंगे कि जिन पदों पर अंग्रेजी पुलिस वाले हुआ करते थे और उनके पास जितनी ताकत हुआ करती थी, उतनी ही ताकत आज पुलिस उच्च अधिकारियो के पास है और जिन पदों पर भारतीय पुलिसकर्मी हुआ करते थे जिन्हें अंग्रेज पुलिसकर्मी भारतीय जनता को यातना देने के लिए मजबूर करते थे और जब चाहते थे भारतीय पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर या निलंबित कर दिया करते थे, उसी प्रकार आज आजादी के इतने वर्षो बाद भी भारतीय संविधान व भारतीय कानून में 1861 के पुलिस मैनुवल क़ानून में कोई भी संशोधन नहीं हुआ, जिसका पारिणाम है कि आज भी भारतीय पुलिस ब्रिटिश उपनिवेशवादी हुक्मरानों के पदचिन्हों पर चल रही है और जन विरोधी प्रशासन के इशारों पर किसी भी प्रकार के लोकतांत्रिक आवाज को कुचल दिया जाने का कार्य ही उनका प्रमुख सिद्धत बन गया है/

      वही सी.आर.पी.सी. की धारा 176(ए) में संशोधन कर हिरासत में मौत के हर मामले की न्यायिक जाँच का प्रावधान किया गया है, किन्तु पुरे उ० प्र० में यह किसी मामले में लागू नहीं हो रहा है| साथ ही सी.आर.पी.सी. की धारा 97 के तहत किसी व्यक्ति को गैरकानूनी हिरासत के मामले में मजिस्टेट द्वारा सर्च वारंट का प्रावधान है| वही डी०के० बसु बनाम पश्चिम बंगाल में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी के समय आवश्यक निर्देश जारी किये है, जिसका अनुपालन पुलिस द्वारा अनिवार्य है | राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एनकाउंटर” के मामले में पुलिस पर भी प्राथमिकी दर्ज करते हुए निष्पक्ष संस्था से जाँच का निर्देश दिया है| हिरासत व जेल में मौत के पोस्टमार्टम कि रपट कि विडियोग्राफी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजने का निर्देश है| ह्यूमन राइट्स एक्ट की धारा 18 के तहत मानवाधिकार हनन के मामले में अंतरिम राहत का प्रावधान है| संविधान का अनुछेद-21 गरिमापूर्ण व सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है/

अगर आकड़ो को देखें, तो अधिकांश यातना गरीब, मजलूम अल्पसंख्यकों, दलित व पिछडो को दी जाती है| हाल के आंकड़े चिंता का विषय हैं कि वर्त्तमान में भारतीय जेलों में गरीब, दलित, आदिवासी तथा अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के कैदियों की संख्या सबसे अधिक है | जबकि बड़े माफिया प्रभावशाली अपराधी तत्व इसके शिकार नहीं होते, केवल एक-दो अपवादों को छोडकर इससे साधारण जनता पुलिस भय से आक्रांत रहती है और पुलिस प्रभावशाली तत्वों से मिलकर समाज में भ्रष्टाचार के द्वारा कानून के राज की धज्जियां उड़ा रही है| एक सभ्य समाज में बिना पुलिस यातना को रोके कानून का राज स्थापित नहीं किया जा सकता है | शासन-प्रशासन द्वारा पुलिस यातना को रोक पाने में असमर्थता एवं पुलिस यातना का जारी रहना वास्तव में भ्रष्टाचार के साथ जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसे भयावह स्थिति एवं कमज़ोर राज्य शासन को स्थापित करना है| जो पूर्णरुपेर्ण से कानून के राज के खिलाफ है|

आइये! हम मिलकर पुलिस की यातना को खत्म करने पुलिस सुधार और कानून के राज को लागू करने के संघर्ष को आगे बढ़ाये|

आप क्या कर सकते है?
1.      26 जून को धरना प्रदर्शन, संगोष्ठी, नुक्कड़ सभा के द्वारा पीछे वर्णित पत्र पर हस्ताक्षर कर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को भेजे व समाचार पत्रों में प्रेस विज्ञप्ति दें और अपनी गतिविधियों की सुचना हमें भी प्रेषित करें/
2.      भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में 1997 में समझौते पर हस्ताक्षर किये है, किन्तु अभी तक अनुमोदित नहीं किया है| यातना विरोधी संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन समझौते 1997 के अनुमोदन हेतू राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र भेजे एवं दबाव हेतु धरना प्रदर्शन, संगोष्ठी, जुलुस आदि का आयोजन करे|
3.      अपने आस-पास हो रहे उत्पीडन एवं उससे जुड़े तंत्र व मानसिकता का विरोध करें इसकी सुचना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,सूचना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली को भी प्रेषित करें/
4.      समाचर पत्रों में यातना के विरुद्ध सम्पादक के नाम पत्र भेजे एवं समाचार प्रकाशित करायें
5.      यातना एवं उसके फलस्वरूप पुलिस उत्पीडन के खिलाफ प्रचार-प्रसार करे एवं जुड़ी घटनाओ के तथ्यों का आकलन का रपट समाचार पत्रों, सरकार पत्रों, सरकार आयोग व समिति प्रेषित करे|
6.      सर्वोच्च न्यायलय के निर्देशो व आदेशो, यातना विरोधी कानून, अन्तराष्ट्रीय घोषणाओं के बारे में लोगो को जानकारी दे/
7.      पुलिस आयोग कि रपट लागू करना और पुलिस विभाग में निष्पक्ष जाँच के लिए निष्पक्ष एजेंसी का गठन के लिए दबाव बनाना|
8.      पुलिस विभाग को कानून का राज लागू करने के लिए संसधनो को मुहैया कराने के लिए शासन पर दबाव बनाना/
9.      पुलिस के काम के घंटे निर्धारित कर उन्हें अनुकूल माहौल में काम करने व मानसिक पुनर्वास हेतू सरकार को नीति-नियम स्तर पर बदलाव हेतू पैरवी करना /
10.  जनमित्र पुलिसिंग तंत्र विकसित करने हेतू स्वयंसेवी संघठनो एवं संस्थाओं शैक्षणिक ईकाइयों के साथ सामंजस्यपूर्ण राज्य व जिले स्तर पर यूनिट बनाया जाने हेतू सरकार से पैरवी व जन दबाव बनाना/ 
 
जारीकर्ता:- मानवाधिकार जननिगरानी समिति/जनमित्र न्यास, सा० 4/2 ए० दौलतपुर वाराणसी – 221002 (उ०प्र०) |

Saturday, February 7, 2015

मॉडल विद्यालय में लोक विद्यालय

30 जनवरी, 2015 को खरगपुर मुसहर बस्ती में लोक विद्यालय का आयोजन भोनू मुसहर के घर के पास किया गया जिसमें समुदाय के अगुआ सहित अनय लोग भी उपस्थित रहे। जिसमें मुद्दा निर्धारित पुलिस के पिछले कार्य व्यवहार व अब के कार्य व्यवहार व डी0के बसु गाइड लाइन व फार्मेट के आधार पर रहा। बैठक की शुरुआत सर्व प्रथम परिचय सबसे से शुरु हुआ बारी-बारी से लोग अपना नाम पता बताये साथ-साथ थाने का पता बताये समुदाय द्वारा बताया गया कि थाने का भवन काफी पुराना हे और जहा बन्द करते है वहा पर एक ही कमरे में शौचालय और पेशाब घर दोनों है जिसमें काफी गन्दगी रहती है थाने में मच्छर भी बहुत अधिक लगते है। थाने के भवन का ढाॅचा जर्जर है।



 समुदाय के सुरेन्दर बंशू, भोनू, रन्नों बगैरह बताये कि आज 7 वर्ष पहले जब हम लोग थाने में जाते थे तो पुलिस वाले गाली देकर थाने से वाहर भगा देते थे। उनके द्वारा कोई सुनवाई नहीं कि जा रही थी लेकिन जब से मानवाधिकार जन निगरानी समिति  द्वारा बस्ती में कार्य किया जाने लगा तब से पुलिस वाले थाने पर जाने पर वह शिकायत दर्ज कराने पर पुलिस द्वार जाॅच कि जाती है और अब सुनवाई होन लगी है। समुदाय के बिन्दू जो दाये हाथ के विकलांग है बताये कि थाने पर तैनात सिपाही कर्मी द्वारा आज भी गलत व्यवहार किया जाता है उन्होने ने बताया कि सन 2014 में मेरे पिता बंशू मुसहर का तबियत खराब पर हाजिर न होने पर वारेन्ट आया था इसी मामले में पुलिस वाले मेरे पिता को पकड़कर थाने में बन्द किये थे। जब मैं अपने पिता को सुबह नाश्ता लेकर थाने गया तो गेट पर तैनात सिपाही कर्मी गाली देकर बाहर भगया दिया मुझे मेरे पिता से मिलने की बात तो अलग हे नाश्ता भी नहीं दिये। मेरे नाजर मे तैनात पुलिस वालो का व्यवहार अच्छा नहीं है साथ-साथ उन्होने यह भी बताया कि हमारे बस्ती में जब कोई घटना घटती है तो बस्ती है तो बस्ती की रन्नों, भोनू 100 नम्बर पर फोन करके घटना की सूचना दिये है। सूचना के आधार पर पुलिस वाले आते हैं और उनकीे द्वारा उचित कार्यवाही कि जाती है। साथ ही उन्होने बताया कि पुलिस वाले डी0 के0 गाइड लाइन का अनुपालन नहीं करते है। जैसे हम जानते है कि पुलिस वाले को मेडिकल गिरफ्तारी के समय कराना चाहिए थाने में गाली देते हैं मारते पीटते है सफाई करवाते है अच्छा खाना नहीं देते है। पीडि़त व्यक्ति से मिलने नही देते। जब कोई आवेदन लेकर थाने में जाना पढता है तो पैसा लेते है और पैसा ने देने पर कोई कार्यवाही नही कि जाती है। मेरे नजर से पुलिस वाले डी0 के बसु गाइड लाइन का पालन नहीं करते है।



बरसाती बताये कि आज के 10 साल पहले पुलिस वाले जब बस्ती में आते थे तो बस्ती के लोग पुलिस वालों के डर से घर छोड़कर भाग जाते थे कि कही ऊख के खेत रहर के खेत में छिपकर रहते थे और यही बात बस्ती के भोनू बताये कि बस्ती में जब पुलिस आती थी तो गाली गलौज भी देती थी लेकिन जब से मानवाधिकार जननिगरानी समिति बस्ती में काम करने लगी उसके 1 वर्ष के बाद से पुलिस के व्यवहार में काफी सुधार आया है।



मुंशी बताये कि जब मानवाधिकार जननिगरानी समिति के लोग काम नही करते थे तो हम लोग अपने झोपड़़ी में सोये रहते थे तो पुलिस वाले आकर झोपड़ी में घुसकर चाहे पति या पत्नी का पैर मिलता था गाली देते हुए पैर पकड़कर झोपड़ी के बाहर खिच लेते थे और भद्दी- भद्दी गाली देकर औरतो से पुछते थे कि कहा भगा दि हो। मुंशी ने कहा कि अब पुलिस रोड़ पकड़कर आती जाती है लेकिन बस्ती में किसी को पकड़ते नही है। अब वह बस्ती मे आते है तो प्रेम से बातचीत करते है। भोनू ने कहाॅ कि 2 वर्ष पहले पुलिस वाले हमारे ऊपर फर्जी मुकदमा का केस कर दिये थे। घरसौना में राजभर बस्ती के व्यक्ति की हत्या हुई थी जिसमें फुलपुर थाने कि पुलिस रात में एक जीप सहित पुलिस वाले आये और बिना कुछ पुछे हमे गाली देते हुए घेर लिये जहां मै अपनी पत्नी के साथ सोया था रात के 12ः20 हो रहे थे। पुलिस वाले हमे इनकाउण्टर करने के लिए बहाना बनाकर घर से 2 किलोमीटर दुर कनकपुर ग्राम के सुनसान जगह पर एक पेड़ में बाधंकर बोले कि अक्कर कहाँ है अगर नही बताओगे तो गोली मार देंगे उस समय दरोगा बोला कि मेरी दुर्गा माँ एक मुसहर का बलिदान माँग रही है मै कोई चोर चाई या बदमाश नही था इसलिए मुझे उनकी बातो से डर नही लगा मैने कहा कि मै अक्कर को नही जानता हूँ की वह कहाँ रहता है इतना ही नही फुलपुर थाने के अलावा चोलापुर थाने की पुलिस मेरे ऊपर फर्जी मुकदमा लाद रही है वह भी हत्या के मामले में जबकि हत्या भोरट गाँव में गोविन्द पाल का हुआ था जिसके बारे में मै जानता भी नही था पुलिस वालो का यह सिलसिला लगातार 4-5 वर्षो तक चलता रहा जब हमारे बस्ती में मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्वारा पहल किया गया तो पुलिस वालों केे व्यवहार में काफी बदलाव आया हैं उन्होने यह भी बताया कि मैं पुलिस वालों के झूठे व फर्जी केस के मामले में चैकाघाट जेल में 26 माह तक बन्द था मेरे ऊपर 9 मुकदमा फर्जी तरीके से लगाया गया था इसके अलावा गुण्ड़ा एक्ट लगाया गया आज भी दो मुकदमा चल रहा है और मुकदमें मानवाधिकार जननिगरानी समिति के पहल पर 7 मुकदमा खत्म हो गया है इतना ही नही मेरे भाई अक्कर मुसहर को भी हत्या के मामले में फर्जी केस फसाया गया था जो सात वर्ष तक जेल मे बन्द थे। आज भी मुकदमा चल रहा है अभी भी पुलिस वाले पूछताछ करने के लिए हमसे हमारे भाई के बारे में पुछते है और गाली गलौज तथा मारपीट करते है लेकिन जब से परियोजना शुरु हुआ तब से अब पुलिस वाले अच्छे से बातचीत करते है। नून्नों, बेइला, चन्दा, मुछुना वगैरह ने बताया कि अब हमारे बस्ती में पुलिस तभी आती है जब किसी घटना कि सूचना दि जाती है इसके पहले ऐसा नही था पुलिस वाले बिना सूचना के ही बस्ती में आते थे और घरों में घुस कर गाली देना, तलाशी लेना शुरु कर देते थे। लेकिन जब से परियोजना शुरु हुआ तो सूचना या आवेदन के बाद ही पुलिस आती है। उसका व्यवहार अब अच्छा रहता है जैसे पुलिस आने पर गाली नही देती। उचित कानूनी कार्यवाही करती है। भोनू, रन्नो, बिन्दु द्वारा बताया गया कि बस्त्ी में जब से मानवाधिकार जननिगरानी समिति के लोग आये इसके 1 वर्ष के बाद से धीरे-धीरे पुलिस का आना कम होता गया अब पुलिस आती भी है तो उसका व्यवहार अच्छा होता है जैसे पुलिस आने पर गाली नही देती। फर्जी केस नही करती है



समुदाय के लोग द्वारा जैसे बिन्दू बतायी कि हमारे गाँव में 100 नम्बर का इस्तेमाल दो लोग करते है। भोनू, रन्नों द्वारा किया गया तो पुलिस मौके पर आयी और पुलिस द्वारा उचित कार्यवाही की गयी जब से परियोजना शुरु हुआ तब से पुलिस वालों में काफी बदलाव आया है।



समुदाय द्वारा सामुहिक रुप से बैठक में बताया गया कि हमारे बस्ती में जब से परियोजना शुरु हुआ तब से आज तक पुलिस अधिकारी द्वारा जाँच पुरे ईमानदारी से किया जाता है। इसके पहले पुलिस वाले जाँच के लिए आते थे तो एकतरफा जाँच करके उल्टा मुकदमा हम लोगों के ऊपर लगाते थे लेकिन अब कही न कही पुलिस वाले हम लोगों से भी डरते है कि ईमानदारी से जाँच नही किया गया तो यह लोग दुर तक भी जा सकते है और जिसमें मेरी जवाबदेही हो सकती है। बिन्दू वंशू रन्नो भोनू मुडूना के लोग बताये कि पुलिस वाले क्ज्ञ वसु गाइड लाइन पालन आज भी नही करते है। आज भी थाने पर जाने पर पुलिस वाले गाली देते है रिर्पोट नही लिखते।
सुरेन्दर ने कहां कि अभी तक हमारे गाँव के 7 लोगों को पुलिस द्वारा घर से उठाकर मारते पिटते हुए, गाली गलौज करते हुए थाने लाया गया जिसमें 2 लोगों को सजा हुई और 5 लोगो को फसाँया गया है जिसमें परदेशी की मृत्यु हो गयी है और भोनू, अक्कर, मुरारी, दुन्नु, तेरस, मुन्नू, संतोष, मुंशी को पुलिस यातना दी गयी है।
भोनू के मर्डर के केस में पुलिस द्वारा मारा पीटा गया व फर्जी केस में फँसाया गया जिसमें 7 मुकदमा में बरी हो गये 2 मुकदमा कोर्ट में विचाराधीन है।



अक्कर को मर्डर के केस में 7 साल की सजा हुई जो बिल्कुल निर्दोष थे। मुरारी को मन्दिर घण्टा की चोरी में पुलिस द्वारा फर्जी केस में फँसाया गया जबकि लोग निर्दोष थे इनको तीन दिन तक थाने में बन्द कर मारा पीटा गया चालान हुआ जमानत पर छुटे यह झंझौर के बच्चा सिंह का टैªक्टर चलाते थे जिसका मजदूरी बच्चा सिंह द्वारा नही दिया जाता था जब यह टैªक्टर चलाने से मना किया तो पुलिस से मिलकर इनके ऊपर फर्जी मुकदमा लगाया गया व पुलिस यातना दी गयी।



मोनू बताये कि हमारे गांव में जैेसे हत्या, चोरी के मामले मे पुलिस द्वारा 7 लोगों को फर्जी केस मे फँसाया गया जिसमें मोनू को हत्या, गैंस्टर इत्यादि में 9 केस में 26 महीने का जेल व वेल मंजूर के तहत आजीवन कारावास का सजा सुनाया गया जिसमें 5000 जुर्माना जमा किया गया। मानवाधिकार जननिगरानी समिति के पहल पर 7 केस खत्म हुआ आज भी 2 केस चल रहा है। बाकी लोग जमानत कराकर तारीख पर जाते है
समुदाय के लोग बताये कि चन्दा, मुडुना, मंुशी, भीनू, रन्नो, वंशू, बिन्दू बिना डर भय के लोग थाने जाने लगे यह प्रक्रिया जब से मानवाधिकार जननिगरानी समिति के लोग बस्ती थाने पर जाने लगे अपनी शिकायत थाने में एस.एस.पी., डी.आई.जी. के यहां दर्ज कराने लगेे।



जब परियोजना शुरु हुआ था तब भी डर के मारे बस्ती के लोगो में पुलिस के भय से कोई भी समस्या को लेकर चैकी/थाने पर अपनी शिकायत लिखवाने कोई नही जाता था कि पुलिस कही हमको थाने में बन्द न कर दे लेकिन परियोजना के तहत लगातार समुदाय के समस्याओं पर पहल किया गया जिसमें लोगों को डर व भय खत्म हुआ और अब लोग थाने पर बिना भय के थाने पर जाकर अपना आवेदन देने लगे आवश्यकता पड़ने पर बस्ती के सभी लोग एकजुट होकर थाने पर जाते है।



समुदाय के रन्नों, अलीपारी, गीता, भोनू ने कहां कि जब परियोजना शुरु नही था तब पुलिस वालें जब बस्ती में आते थे तो महिलायें, बच्चों को भी गालियां देते थे लेकिन जब मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्वारा लगातार काम किया गया तो पुलिस वालो का व्यवहार महिलाओं, बच्चों के साथ अच्छा रहता है।

बैठक में समुदाय के लोगो द्वारा बताया कि अगर हमारे बस्ती में कोई हादसा हो जाये तो अब जानकारी के तहत हम लोग बेहिचक थाने में जाकर पैरवी कर सकते है।